Wednesday, March 16, 2016

मैडम फ़टाफ़ट पढ़ाती हैं

पहाड़ पर टेसू के पेड़
आज निकलने में कुछ देर हो गयी। जब साइकिल स्टार्ट की तब सड़क चलने लगी थी। लोग तेजी से लौट रहे थे। हमारे आगे कुछ बुजुर्ग खरामा-खरामा टहलते हुये जा रहे थे। सब फ़ुल पैंट पहने हुये थे। कल से पता नहीं जिस किसी को देखते हैं तो पहली निगाह पैंट पर जाती है।

सड़क पर मेरी परछाई मुझसे बड़ी होकर दिख रही थी। साइकिल इतनी बड़ी कि उसके पहिये पूरी सड़क की चौड़ाई को पार करके पेड़ तक पहुंच गयी थी। सूरज जब उगता है या अस्त होता है तो लोगों को परछाई को इसी तरह बढ़ा चढ़ाकर दिखाता है। कोई जब आपकी ज्यादा तारीफ़ करे तो समझ लेना चाहिये अगला या तो नौसिखिया है या खत्तम हो गया है।

शोभापुर रेलवे क्रासिंग के पार पहाड़ पर टेसू के पेड़ दूसरे पेड़ों के साथ मजे से झूम रहे थे। सुबह की हवा और सुगन्ध का नाश्ता करने के बाद सूरज की किरणों की मिठाई खाकर उनके चेहरे पर तृप्ति का भाव पसरा हुआ था। पत्तियां तक चिकनाई हुई थीं।


दीपा किताब पढ़ रही है
दीपा से मिलने गये आज। उसके लिये नेशनल बुक ट्र्स्ट की दो किताबें लाये थे। छोटी-छोटी कविताओं और कहानी की चित्रकथायें। किताबें दीं तो खड़े-खड़े पढ़ती रही। हमने पढ़ने को कहा तो ठीक से पढ़ नहीं पाई। अच्छर चीन्हती नहीं। हमने कहा - ’मिलाकर पढ़ा करो। धीरे-धीरे।’ बोली-’ मैडम फ़टाफ़ट पढ़ाती हैं। समझ में नहीं आता।’

पास के मजदूर सुबह का खाना बना रहे थे। उनके दो साथी वापस चले गये हैं। चार हफ़्ते रहने के बाद। ये लोग होली के बाद जायेंगे। सुबह का खाना बना रहे थे ये लोग। अरहर की दाल बना रहे थे। भात इसके बाद पकायेंगे।
अरहर की दाल गांव से लाये हैं अपने साथ। वहां 300 रुपये पसेरी मिलती है खड़ी अरहर। मतलब 60 रुपये किलो। खुद उगाते हैं लोग इसलिये इस भाव मिल जाती है।

पिछले दिनों अरहर की मंहगाई पर अनेकों व्यंग्य लेख लिख मारे लोगों ने। लेकिन कैसे पैदा होती है, क्यों मंहगी होती है यह शायद पता नहीं होगा लोगों को। यह भी सही है जिन्होंने अरहर की मंहगाई पर लेख लिखे होंगे उनमें से शायद किसी के यहां अरहर बनना , कम से कम मंहगाई के कारण, बंद नहीं हुआ होगा।


सुबह का खाना बनाते कामगार
महेश नाम बताया कामगार ने। 25 साल उमर है। आठवीं पास है। आठ साल पहले शादी हुई। दो बच्चे हैं। छह साल और चार साल के। पत्नी गांव में रहती हैं। बच्चों और पापा, मम्मी आदि के साथ। कोई नशा नहीं करते। दांत सूरज की रोशनी में चमक रहे थे। साथ के लोग भी महेश की तरह ही दो-दो बच्चे वाले हैं। उनके ही हम उम्र।
हम महेश से कहते हैं कि दीपा को पढ़ा दिया करो। वे बोले- ’यह एक कान से सुनती है, दूसरे से निकाल देती है।’ दीपा कहती है-’ ये लोग काम पर जाते हैं। पढ़ायेंगे कब?’ वे कहते हैं-’ शाम को तो लौट आते हैं।’ तय हुआ कि शाम को पढाई होगी।

हम महेश से पूछना चाहते हैं कि उसकी हाबी क्या है? पूछते हैं कि खाली समय में क्या करते हो? वह कहता है-’ खाली समय रहता कहां है? सुबह खाना बनाते हैं। दिन में काम करते हैं। लौटकर फ़िर खाना। रात हो जाती है सो जाते हैं। फ़िर वही दिनचर्या।’

बहुत अलग नहीं है यह जिन्दगी भी अकबर इलाहाबादी के इस शेर से:
बीए किया ,नौकर हुये
पेंशन मिली और मर गये।

स्कूल जाते बच्चे
लौटते में क्रासिंग बन्द मिली। मेरे पीछे एक आटो में केन्द्रीय विद्यालय के बच्चे स्कूल जाने के लिये बैठे थे। आठ बच्चे एक आटो में। सबसे आगे वाले बच्चे से पूछा तो बोला- ’सिक्थ बी में पढ़ते हैं।’ हमने पूछा-’ सब लोग ६ में पढ़ते हो? ’नहीं मैं फ़ोर्थ में पढ़ती हूं’- पीछे से बच्ची ने जल्दी से कहा। उसको शायद डर लगा कि कहीं हड़बड़ी में उसकी क्लास न बदल जाये।

बच्चों के इम्तहान हैं। नौ बजे से। हमने कहा-’ अभी तो साढे सात ही बजे हैं। क्या करोगे इतनी जल्दी जाकर? वो बोले-खेलेंगे। प्रेयर होगी।

हमने पूछा - कौन सी प्रेयर होती है?

वो बोले-’इतनी शक्ति हमें देना दाता।’

पीछे एक बड़ा बच्चा ऊंघता हुसा था बैठा था। अनमना सा। हमने पूछा- ’क्या नींद आ रही है? बहुत पढे क्या?’
वह कुछ बोला नहीं। बस हल्के से मुस्करा दिया।

सिक्स्थ बी वाले बच्चे ने बताया - ’भैया ऐसे ही रहते हैं। चुप। बहुत कम बोलते हैं।’

हमने कहा-’ तो तुम लोग बोला करो! ’

वो बोला-’ बोलते हैं। लेकिन भैया बोलते ही नहीं।’

द्सवीं में पढ़ता है बच्चा। चुप रहता है। क्या कारण है यह उसके साथ के ही लोग समझ सकते हैं। लेकिन अभी भी उसका चेहरा मेरी आंखों के सामने आ रहा है। चुप। थोड़ा उदास। बहुत उदासीन।

सड़क पर एक आदमी अपने छोटे बच्चे को साइकिल के कैरियर पर बैठाये स्कूल भेजने जा रहा था। बच्चा दोनों तरफ़ पैर किये बैठा था।

एक बच्चा हरक्युलिस साइकिल पर पैडल मारता चला रहा था। कक्षा 6 में पढ़ता है। एक साल से आ रहा है साइकिल पर। आगे डोलची और डंडा रहित साइकिल मतलब बच्ची साइकिल मानी जाती है। हमने पूछा- ’दीदी की है साइकिल?’

’नहीं मेरी मम्मी की है।’ बच्चे ने बताया। यह भी कि वे हाउस वाइफ़ हैं। कहीं काम नहीं करतीं।

सूरज भाई के साथ चाय पीते हुये पोस्ट पूरी कर रहे हैं। सुबह हो गयी।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207548618127029

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