’आलोक पुराण’ की कड़ी में पेश हैं आज उनकी किताब ’ मर्सीडीज घोड़े बनाम 800 सीसी घोड़े’ के कुछ पंच मने चुनिंदा संवाद। इन किताब को और इसके अलावा भी दीगर लोगों को बांचते हुये लगा कि अपने समय के लेखकों को पढते हुये हम हड़बड़ी में रहते हैं। जिस तरह वे शुरुआत में ब्रांडेड हो गये उसी चश्मे से देखते रहते हैं उन्हें। लेखकों को तसल्ली से पढा जाना चाहिये। चाहे वे ,,,,,,, हों या ,,,,,,,कोई और। खाली जगह में आप किसी भी लेखक का नाम भर सकते हैं। अपना भी।
फ़िलहाल आइये सीधे पंचबैंक पर:
1. पहले नकलची मेहनती होते थे, अब इतने आलसी हो लिये हैं कि सीधे गूगल सर्च से नकल कर रहे है।
2. व्यंग्यकार की जिन बातों को सीरियसली लिया जाना चाहिए, उन पर लोग हंसने लगते हैं।
3. नयी पीढ़ी की दिक्कतें बहुत हैं। तमाम तरह की लाइनों में लगकर इसकी संवेदनशीलता जाती रही है। एडमीशन के लाइन, बाहर निकलने के लिए लाइन, नौकरी के लिए लाइन, नौकरी से बाहर जाने के लिए लाइन। लाइन ही लाइन, मिल तो लें।
4. लेखक के जीवन के बहुत कष्टकारी क्षण होते हैं, वो, जब उसे किसी और को लेखक मानना पड़े। लेखक इसी खुशफहमी पे तो जीता है, जो है, वही है। बाकी सब लिक्खाड़ हो सकते हैं, पर लेखक नहीं।
5. कई लेखक बहुत स्मार्ट होते हैं, पहले ही अपनी किताब की भूमिका लिखकर लाते हैं और कहते हैं जी आप तो बस साइन कर दो। लिख तो हमने ली है, पर आपके नाम से ही जायेगी।
6. अपना इलाका छोड़ते ही आइटम या बंदा मशहूर हो लेता है। अपने इलाके में फेमस होने में दिक्कत होती है।
7. अपना इलाका छोड़ते ही बंदे में अपार साहस आ जाता है। जैसे दिल्ली में बेहद शरीफ माने जाने वाले लोग थाईलैंड जाते ही ऐसी ऐसी हरकतें करने लगते हैं कि परम लुच्चे तक शरमा जायें, उन्हे देखकर।
8. आजकल जो कैमरा दिखता है, वह मोबाइल फोन भी होता है। वह म्यूजिक प्लेयर भी होता है। वह एफएम रेडियो भी होता है। मतलब कैमरा कैमरा कम, और आइटम ज्यादा होता है। प्योर कैमरा तलाशना आजकल ऐसा ही मुश्किल काम है, जैसे सच्चरित्र नेता को तलाशना।
9. इंडिया में अगर पुल, हाईवे, सड़क की बात करो, तो वो भी नेता तक पहुंच जाती है। सारी राहें नेता की तरफ जाती हैं। नेता हर तरफ जाता है। सड़क से लेकर हवाई जहाज तक में खाता है। हर बात में नेता का जिक्र निकल ही आता है।
10. इंडिया में किसी विषय पर बोलने के लिए उसे जानना जरुरी नहीं है। जो ओलंपिक में कभी कोई खेल ना खेला हो, वह ओलंपिक समिति का अध्यक्ष बन जाता है।
11. प्रेम करना इधर बहुत हार्ड हो गया है, क्योंकि सौ रुपये का एक आईलवयू वैलंटाइन कार्ड हो गया है। वह चवन्नी का नहीं आता। चवन्नी का तो अब उसका लिफ़ाफ़ा भी नहीं आता। लकी थे वो प्रेमी, जो चवन्नी में काम निपटा कर चले गये। अब तो कोई लिमिट नहीं है ।
12. देश-भक्ति कायदे से की जाये, तो बहुत टनाटन रिजल्ट दे जाती है।
13. हमने अपने देश से प्रेम करना चाहिए। ऐसी बात अकसर कही जाती है। और पंद्रह अगस्त के आसपास तो बहुत जोर से कही जाती है।
14. सब अपनी मर्जी के देश तलाश लेते हैं और उनसे प्रेम करने लगते हैं। गली के लुच्चे लफंगे सुंदरियों को ही देश मानते हैं, और उनसे प्रेम दिखाते हैं, बदले में पिटाई खाते हैं। देश-प्रेम की राह कंटकों भरी है। सीधी राह नहीं है। इस राह में पिटाई है, जेल है।
15. कई नेतागण तमाम गैस एजेंसियों और पेट्रोल पंपों को देश मानते हैं और उनसे प्रेम करने में जुट जाते हैं। कई नेता अफसर किसी हाऊसिंग सोसायटी के फ्लैटों को देश मान लेते हैं, और उनसे प्रेम करने लगते हैं। कभी प्रेम सफल हो जाता है, कभी नाकाम भी हो जाता है।
16. नेता लोग शहर के बीचों बीच के प्लाट को देश समझते हैं और उससे प्रेम करने में जुट जाते हैं। पर जैसा कि कहा जाता है कि सच्चा प्रेम सीधा सादा नहीं होता। प्रेम में प्रतिद्वंद्वी आ जाते हैं। विरोधी पार्टी के नेता भी उसी प्लाट से प्रेम करने लग जाते हैं और दो रकीबों या दो प्रतिद्वंदियों में आपस में जंग छिड़ जाती है।
17. हर बंदा अपने हिसाब से देश को तलाश कर उससे प्रेम में जुट सकता है। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि यह देश-प्रेम बहुत ही फ्लैक्सिबल होता है। फ्लैक्सिबल तो यूं रबड़ भी होती है, पर उसमें इतनी कमाई नहीं होती, जितनी देश-प्रेम में होती है। सारे सीनियर देश-प्रेमियों के खाते स्विस बैंक में होते हैं, सारे रबड़ कारोबारियों के खाते स्विस बैंक में नहीं होते।
आलोक पुराणिक से सवाल-जबाब यहां पढेंhttps://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212457436844429
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