आज सुबह अलार्म बजा। नींद खुली। फ़िर आंख भी। लगाया हमने ही था लेकिन फ़िर भी गुस्सा आया अलार्म पर।
अलार्म ने तो अपनी ड्यूटी बजाई फ़िर भी उस पर आया गुस्सा ऐसा ही था जैसे संस्थान सुरक्षा के लिये खड़ा चौकीदार अपने ही अफ़सर से परिचय पत्र दिखाने के लिये कहने पर अफ़सर सोचता है।
जगने पर पहले थोड़ा कोसा अलार्म को। बदमाश ने जगा दिया सुबह-सुबह।
वैसे हल्का वाला ही था गुस्सा! कोई हसीन ख्वाब देख रहे होते तो शायद भारी वाला आता। गुस्गुसे भी अलग-अलग वैराइटी के आते हैं आजकल। एक तरह के गुस्से से काम भी तो नहीं चलता न आजकल ! हर तरह का गुस्सा रखना पड़ता स्टॉक में। जब जरूरत पड़ी वैसा आ गया। यह बात गुस्से ही नहीं, हर मनोभाव पर लागू होती है आजकल।
बहरहाल, जब नींद टूट ही गयी तो उठना ही पड़ा। टूटी हुई नींद भी प्रेम के धारे की तरह होती है। दोबारा नहीं जुड़ती। वैसे आजकल प्रेम के संबंध टूटने पर जोड़ने का रिवाज भी नहीं है। यूज एंड थ्रो के जमाने में ’प्रेम संबंध’ की रिपेयरिंग में बहुत समय लगता है। जित्ते में पुराने संबंध की मरम्मत हो, उत्ते में कई नये संबंध बन जाते हैं।
उठ कर बाहर झांका तो अंधेरा था। अंधेरा क्या कोहरे और सर्दी की गठबंधन सरकार चल रही थी। इस संयुक्त सरकार का मुखिया अंधेरे का था या कोहरे का , पता नहीं चला।
अंधेरा तो खैर हमेशा दिख जाता है। लेकिन कोहरा जाड़े में ही मिलता है। लोग बहुत कोसते हैं कोहरे को। गाड़ियां , जहाज सब देर करवाता है बदमाश कोहरा। सूरज की किरणों के रास्ते में रुकावट पैदा करता है। जीवन की तेजी को कम करता है।
लेकिन देखा जाये तो जाड़े में जिन्दगी के लिये कोहरा उत्ता ही जरूरी है जित्ता सड़क पर चलने के लिये घर्षण। कोहरा ऊष्मा का कुचालक होता है। हमारी गर्मी को बाहर जाने से रोकता है। बाहर की सर्दी को हम तक आने में बाधा पहुंचाता है। कोहरा एक तरह से चादर है जो धरती अपने बच्चों को जाड़े से बचाने के लिये ओढा देती है।
सरकारी कामकाज में काहिली तमाम ग्रांट को घपले वाले कामों में खप जाने से रोकती है। काहिली का धवल पक्ष है यह। काहिली के चलते जब काम ही नहीं होगा तो भुगतान भी नहीं होगा। भुगतान ही नहीं होगा तो खर्च भी बचेगा। खर्च बचा तो घपला बचा।
पिछले हफ़्ते हिन्दुस्तान, पाकिस्तान , अफ़गानिस्तान तक संयुक्त परिवार के बच्चों सरीखे कोहरे की एक ही चादर के नीचे पड़े रहे। प्रकृति ने तो अपने बच्चों के लिये एक सा इंतजाम किया जाड़े से बचने के लिये। लेकिन हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जाड़े से बचने के अपने उपाय करते रहे। एक ही रजाई में घुसकर गुत्थम-गुत्था करने वाले बच्चों की तरह आपस में लड़ते रहे। गोलीबारी, गर्मागर्म बयानबाजी में जुटे रहे। प्रकृति अपने बच्चों की इस नासमझी पर ओस के आंसू रोती रही।
कोहरा का जब भी जिकर होता है दुष्यन्त कुमार जी का शेर दहाड़ने लगता है:
"मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।"
इस शेर से ऐसा लगता है कि दुष्यन्त जी भलमनसाहत के चलते ऐसा कहे होंगे। आकाश में कोहरे की बात मत कहो, उसको बुरा लगेगा। लेकिन समय के साथ मायने बदलते हैं रचनाओं के। आज के समय में यह शेर बताता है कि ऐसा इसलिये मत कहो क्योंकि आकाश को बुरा लग गया तो मानहानि का मुकदमा ठोंक देगा। आकाश की सरकार है, एफ़ आई आर करवा देगा आकाश उसकी कमी बताने पर। सारी सचबयानी , पत्रकारिता धरी की धरी रह जायेगी।
आगे कोहरे की स्थिति देखने के लिये बाहर झांकते हैं तो सूरज भाई मुस्करा रहे हैं। कोहरा चुनाव खत्म होने के बाद जनसेवक की तरह गायब हो गया है।
अब जब कोहरा ही गायब हो गया तो उसकी बात करने से क्या फ़ायदा?