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साल सरपट निकल रहा था। हम उसको विदा करने नदी तट तक गए। नुक्कड़ पर ई रिक्शा दीवार की तरफ मुंह किये खड़े थे। बगल से निकले तब भी कोई कुछ बोला नहीं। शायद यह सोचकर कि कहीं कोई बोला तो कोई यह न कहे - ’चलो जरा शुक्लागंज तक होकर आते हैं।’
सड़क की बांयी तरफ मूँगफली कि दुकानें चल रही थीं। कुछ पर लोग मूँगफली भूंज रहे थे। भट्टी से आग की लौ निकल रही थी। ज्यादातर दुकानें महिलाएं चला रहीं थीं।
सामने शराब का ठेका था। हमें लगा आज भरा हो शायद। लेकिन उधर सन्नाटा खिंचा हुआ था। एक आदमी अलबत्ता बीच सड़क पर एक आदमी एक अदधे से दारु के घूंट भरता हुआ लपकता चला रहा था। शायद उसको साल खत्म होने की पहले बोतल खत्म करने की चिंता थी।
सड़क पर चहल-पहल बहुत कम थी। कुछ सवारियां ई रिक्शा पर शुक्लागंज की तरफ जा रही थीं। आने वाली तो बहुत कम थीं। इक्के-दुक्के लोग साइकिल पर आते-जाते दिखे।
गंगा जी कोहरे की चादर ओढ़े मजे की नींद सो रही थी। उनको नए साल की एडवांस में बधाई दी तो कुनमुना के फिर सो गई। दुबारा बोला तो हिलती-डुलती हुई बोली - ’अरे ये सब चोंचले तुमको ही मुबारक हो। हमको तो रोज बहना है। हमारा तो हर दिन नया साल है।’
पुल पर टैंकर वाली मालगाड़ी धड़धड़ाती चली जा रही थी। टैंकर के अंदर तेल को क्या पता कि नया साल आने वाला है। वह तो टैंकर के अंदर हिलता-डुलता चुपचाप अंधेरे में गुड़ीमुड़ी लेटा था।
लौटते में देखा कि पुल के पास दो लोग पत्तियां जलाते हुए आग ताप रहे थे। कुर्सी पर बैठा आदमी खड़ा हो गया। बोला - ’बैठिये। हम खड़े रहे।’
ह्म कहे – ‘आप बैठिये। हम ऐसे ही रुक गए।‘
वह फिर अंदर से दुसरी कुर्सी लाया तो फिर बैठ ही गए।
एक प्लास्टिक की कुर्सी बीच में तार से सिली हुई थी। लगा जैसे उसकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई हो। सर्जरी के बाद सिल दी गयी हो।
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पता चला दोनो लोग पिता-पुत्र हैं। बेटा पंक्चर बनाता है। साथ की जगह में मंदिर डाल लिया है शंकर जी का। कुछ कमाई उससे हो जाती है। गुस्सा है उसके मन में इस बात का कि लोग बगल में सौ रुपये की दारू पी जाते हैं लेकिन मंदिर में दान नहीं करते।
पिता की एक आंख का आपरेशन हुआ है। किसी धर्मार्थ संस्था के माध्यम से। सब खर्च उस संस्था ने वहन किया। उसको खूब दुआए दी दोनों ने।
पिता की उम्र 84 बताई। तीन साल पहले तक चुस्त थे । अब कम हो गयी ताकत। लड़का पिता की सेवा में लगा रहता है। इसी लिए शादी नहीं की। 38 का हो गया। पिता और भोले भण्डारी की सेवा में जीवन बिता रहा भला आदमी। मां भाई लोगों के साथ शुक्लागंज रहती हैं।
पिता से बात हुई तो बताया –‘हमारी अम्मा कलेट्टर गंज के पास पराठे बेंचती थी। गुलगुले भी बनाती थीं । खूब दुकान चलती थी।‘ 84 साल का बुजुर्ग बचपन की यादों में खोया बच्चा बन गया।
लौटकर सो गए। अभी सुबह उठे तो देखा नया दिन शुरू हो गया। नया साल भी। बन्दर डालें हिलाते हुए नए साल की शुभकामनाएं दे रहे हैं। हमने उनको भी ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोला तो वे चिंचियाते हुए वापस मुस्करा रहे हैं।
आपको भी नया साल मुबारक हो। मङ्गलमय हो।
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