गाड़ी रुकने के इंतजार में बच्चियां |
10-12 साल की उम्र के बच्चे माँगने के काम में लग जाते हैं। जब गाड़ी नहीं रुकती हैं तो आपस में खेलते रहते हैं। लड़ाई-झगड़े करते हुए ट्रैफिक सिग्नल लाल होने का इंतजार करते हैं। गाड़ी रुकते ही लपकते हैं कपड़ा लेकर।
अब तो इस तरह किसी को कुछ देने के खिलाफ कानून बन गया है। लेकिन तमाम कानून होते ही हैं अपना उल्लंघन करवाने के लिए। कानून बनने से मांगना थोड़ी कम हो जाएगा।
राजनीति में वंशवाद पर आये दिन हल्ला मचता है। गरीबी में भयंकर वंशवाद है। गरीब घर की अनगिनत पीढियां गरीबी के ही फेंटे में फंसी हैं। गरीबी में वंशवाद खत्म करने के लिए कोई चिंतित नहीं दिखता।
ऐसे ही एक दिन शाम को दो बच्चियां मिलीं। चलते-फिरते माँगने का काम करती। कुछ मिल गया तो ठीक। वरना हंसती-खेलती-बतियाती आगे बढ़ जाती।
नफीसा और ताजबानों |
बातें करते पता चला उनके पिता फेरी लगाते हैं। हाइवे के किनारे झोपड़ी में रहते हैं घर वाले। शाम हुई तो अम्मी ने भेज दिया मांगने के लिए। सौ-पचास रोज मिल जाते हैं।
बच्चियों के नाम नफीसा और राजबानों हैं।एक के हाथ में दोने में आलू टिक्की और दूसरे के हाथ मे लिट्टी है। किसी दुकान वाले ने दी है। उसे तसल्ली से खाने के लिए पकड़े है हाथ में।
एक के छह भाई बहन हैं, दूसरी के चार। गरीबी है और मांगना आसान सा इसलिए चौराहे पर आ गईं। भीख मांगने वाले धन के समान वितरण में सहयोग का प्रयास टाइप करते हैं। कुछ लोगों के पास बहुत मात्रा में पैसा जमा है इसलिए उसको निकालने के लिए ज्यादा मांगने वाले चाहिए। इसीलिए शायद मांगने वालों की संख्या बढ़ रही है। मांग और आपूर्ति का नियम।
बच्चियां पढ़ने नहीं जाती। कभी नहीं गयी। सीधे जिंदगी के स्कूल में दाखिल हो गईं। जहां कोई एडमिशन फीस नहीं लगती।
समय बिताने के लिए कुछ बात करने टाइप करते हुए हम उनसे स्कूल जाने के लिए कहते हैं। पत्नी जी कहती हैं , चलो हमारे घर वहां रहना। स्कूल में नाम लिखा देंगे, पढ़ना।
बच्चियां कहती हैं-अम्मी से पूछकर बताएंगे।
इसके बाद से मुलाकात नहीं हुई उन बच्चियों से। लेकिन उन जैसे बच्चे रोज दिखते हैं।
बजट पेश होगा आज। उनमें गरीबों के लिए तमाम योजनाएं होंगी। लेकिन वे सब इन बच्चों तक पहुंच नहीं पहुंच नहीं पाती हैं। वहीं कहीं दिल्ली के जाम में फंस जाती हैं।
चौराहों पर मांगने वाले बच्चों की तादाद बढ़ती जाती है।
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