Monday, April 09, 2018

कुछ घण्टे लाइब्रेरी में

झंडा गीत के रचयिता श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' की स्मृति में नाम रखा गया है शायद।
कल फूलबाग वाली लाइब्रेरी गए देखने। पहली बार। लाइब्रेरी का नाम सुना था। दिमाग में छवि थी कि बड़ी लाइब्रेरी होगी। लाइब्रेरियन होंगे। हाल होगा बैठ के पढने के लिए। किताबें इशू करने के लिए काउंटर टाइप कुछ होगा। इसी तरह की और सहज कल्पनायें।
लाइब्रेरी देखते ही सभी कल्पनाओं का कत्लेआम टाइप हो गया। लाइब्रेरी में एक बुजुर्ग टाइप बैठे थे। एक बहुत 'बुजुर्ग रजिस्टर' पर पेंसिल से नाम लिखवाया। लाइबेरी दर्शन की अनुमति दे दी।
लाइब्रेरी की किताबें पहली मंजिल के बरामदे में खुली और कुछ बन्द आलमारियों जमा थीं। किताबों पर जमीं धूल इस बात की गवाही दे रही थी कि सालों से उनको छुआ नहीं गया था। 'हुएहैं शिला सब चंद्रमुखी' की तर्ज पर किताबें किसी पाठक का इंतजार कर रहीं थीं कि कोई आकर उनको उल्टे-पलटे तो कम से कम धूल तो हटे। किताबों को अस्थमा तो होता नहीं जो धूल के मारे खांस-खांस कर लोगों को अपनी उपस्थिति का इजहार कराएं।
हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू की सब मिली-जुली संस्कृति का प्रचार कर रहीं थीं। विषय भी कोई तय नहीं। हिंदी की कहानी की किताब उर्दू की इतिहास की किताब की किताब से गलबहियां थीं। 'विंस्टन चर्चिल के भाषण के संकलन' के ऊपर 'उसने कहा था और अन्य कहानियां' सवार थी। इसी तरह का और भी मिलजुलपन।
पता चला कि पहले लाइब्रेरी जिलाधिकारी के अंदर में थी। अब कानपुर विकास प्राधिकरण देखता है। लाइब्रेरी का रखरखाव केडीए उसी तरह करता दिखा जैसे नालियों, सडको का करता है।
कोई भी स्वचालित वैकल्पिक पाठ उपलब्ध नहीं है.
ये धूल जमी है किताब पर
कई रोचक किताबें दिखीं। 60 के दशक की एक किताब 'पैदल दुनिया का सफर' दिखी। 2/- की किताब। इसमें लेखक ने बताया कि वह कैसे पैदल दुनिया टहलने निकला। उनको विनोबा भावे ने कहा -'या तो पूरे ख़र्च का इंतजाम करके निकलो या फिर खाली हाथ।' खाली हाथ निकलोगे तो भी जनता भूखा नहीं रखेगी।
यात्रा पर निकलने के समय उनकी पत्नी गर्भवती थीं। पत्नी ने लिखा कि अगर पेट से नहीम होती तो वो भी साथ चलती। कई देश घूमने के बावजूद एक ही किताब लिखी गयी यह ताज्जुब है। अपन तो एक शहर का हिस्सा देखते ही पन्ने भर डालते हैं। पहले के लोग 'करते ज्यादा, गाते कम थे।'
एक किताब का शीर्षक दिखा -'कंस के समय महिलाओं की स्थिति।' और भी तमाम रोचक मनोरंजक और जानकारी वाली किताबें दिखीं।
माखन लाल चतुर्वेदी रचनावली पढ़ते हुए लगा कि कितनी ओज पूर्ण भाषा में संबोधन है। साहित्यकार को लाइट हाउस बताया। आज भी साहित्यकार लाइटहाउस हैं लेकिन अधिकतर की बिजली गुल है। समाज को रास्ता बताने वाला साहित्यकार खुद रास्ता खोजने के लिए गूगल मैप का मोहताज है। रचनावली फौरन खरीदने का तय किया।
लगभग 50 हजार किताबों वाली लाइबेरी की सदस्यता लेनी है। 750/- जमा होंगे। 50/- रुपये साल का किराया। कम से कम किताब पलेटने से धूल ही झड़ेंगी किताबों की। कभी कपड़ा ले जाएंगे और धूल झाड़ेंगे भी।
फिलहाल तो दफ्तर जाना है। इसलिए इत्त्ता ही।


No comments:

Post a Comment