Wednesday, February 27, 2019

तुम्हारी याद गुनगुनी धूप सी पसरी है



आज दरवज्जा खोला तो देखा बाहर सूरज भाई जलवा नशीन हैं।
चारो तरफ़ धूप नहीं है लेकिन उजाला फ़ैला है। मानो सूरज भाई किरणों को छानकर कायनात में फ़ैला रहे हैं। छानने से धूप छन गयी है ,सूरज के पास रह गयी है । नीचे सिर्फ़ उजाला दिख रहा है। जैसे दूध से क्रीम छानकर बिना क्रीम का दूध सप्लाई करते हैं वैसे।
कमरे के दीवार पर रोशनी का एक टुकड़ा सटा हुआ है। मानो सूरज की मोहर हो और इस बात की पुष्टि कि उसने रोशनी सप्लाई कर दी है कमरे में। कमरे की दीवार जैसे सूरज भाई का हाजिरी रजिस्टर हो और सूरज भाई ने आते ही हाजिरी रजिस्टर पर अपनी ’चिडिया’ बैठा दी हो।
चिडिया से याद आया कि बरामदे के बाहर रेलिंग पर पिछले साल मिट्टी के दो बर्तन लाकर रखे हैं। उनमें पानी भर कर रख दिया है कि पक्षी आकर पियेंगे लेकिन जब से बर्तन रखा है आजतक कोई चिडिया नहीं दिखी बर्तन के पास। लगता है उनको पता नहीं कि यहां भी पानी मिलता है। शायद मुझे बरतन रखने के पहले उद्घाटन करना चाहिये। या फ़िर पानी के साथ-साथ कुछ दाना भी रखना चाहिये बर्तन के पास।
चाय की चुस्की लेते हुये सूरज भाई से मजे लेते हुये हमने कहा - भाई जी आप भी अपने आने-जाने की सूचना एस.एम.एस. से दिया करो न! सूरज भाई ठहाका मारकर हंसने लगे। बोले -हम क्या कोई आर्यावर्त की ट्रेन हैं जिनका आना-जाना अनिश्चित हो। हम तो रोज समय से आते हैं। तुम्हारे ही यहां कभी कोहरे का , कभी बादल का पर्दा पड़ा रहता है इसलिये तुम मुझे देख नहीं पाते हो और बातें बनाते हो। तुम अपनी जिन्दगी बहानेबाजी में ही गुजार देते हो।
मेरे साथ चाय पीते हुये सूरज भाई अपनी किरणों के कौतुक देख रहे थे। एक किरण बार-बार एक फ़ूल पर अलसाई ओस की बूंद के गोले पर सवारी करने की कोशिश कर रही थी। ओस की बूंद बार-बार हिल जा रही थी और किरण धप्प से फ़ूल की गोद पर गिर जा रही थी। ओस की बूंद खिलखिलाकर हंसने लगती और किरण के धप्प से गिरने से फ़ूल थोड़ा हिल जा रहा था। किरण फ़िर से ओस की बूंद पर सवार होने की कोशिश करने लगती।
कुछ देर बाद ओस की बूंद और किरण दोनों गायब हो गयीं। फ़ूल की पत्तियां शायद उनको कहीं जाता देख रही हों इसलिये हाथ हिलाकर टाटा सा करती दिखीं उनको।
देखते-देखते उजाले की जगह धूप पसर गयी है दसों दिशाओं में। हमने मौका देखकर सूरज भाई को अपनी कविता सुना दी:
तुम्हारी याद
गुनगुनी धूप सी पसरी है
मेरे चारो तरफ़।
कोहरा तुम्हारी अनुपस्थिति की तरह
उदासी सा फ़ैला है।
धीरे-धीरे
धूप फ़ैलती जा रही है
कोहरा छंटता जा रहा है।
सूरज भाई कविता सुनते ही छिटककर आसमान पर विराजने लगे और किरणों का डायरेक्शन संभाल लिया।
सुबह हो गयी।

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