Sunday, March 10, 2019

अनूप शुक्ल मजे लेकर लिखते हैं- सुभाष चन्दर

 


[जनवरी महीने में पुस्तक मेले में वरिष्ठ व्यंग्यकार, आलोचक सुभाष चन्दर जी के हाथ में जबरियन अपनी किताबें थमा कर कैमरा आन करवा कर बगल में खड़े हो गये। सुभाष जी को मेरे लेखन पर अपनी उदार आशु टिप्पणी की। सुभाष जी से जबरियन कराई गयी तारीफ़ का जितना वीडियो मिला वह यहां पेश है। वीडियो रिकार्डिंग उपलब्ध कराने के लिये कुश का आभार 🙂 ] Subhash Chander , Kush Vaishnav
मेरे हाथ में ’बेवकूफ़ी का सौंदर्य’ है और ’झाड़े रहो कलट्टरगंज’ है। ’झाड़े रहो कलट्टरगंज’ और ’बेवकूफ़ी का सौंदर्य’ दोनों में क्वालिटी है कि दोनों में बेवकूफ़ी के अलावा भी एक सौंदर्य है, वह है शिल्प का सौंदर्य। अनूप शुक्ल अपने शिल्प के कारण व्यंग्य में जाने जाते हैं। व्यंग्य की एक मजेदार जो शैली है जिसमें आप थोड़े गहरे में जाकर मजा लेते हुये लिखते हैं, चुटकी लेते हुये लिखते हैं अनूप शुक्ल उस धारा के प्रवर्तक तो नहीं कहूंगा उस धारा को आगे बढाने का काम अनूप शुक्ल ने किया है। इनका मैं दो चीजों का फ़ैन हूं। पहली चीज कि मजे लेकर लिखते हैं , आनन्द लेकर लिखते हैं । जब भी आप आनन्द लेकर लिखेंगे तो पाठक को भी आनन्द दे सकेंगे। आप कहेंगे कि व्यंग्य तो प्रहार का काम है लेकिन जब पाठक व्यंग्य के नाम पर किताब उठाता है तो वह आनन्द भी लेना चाहता है , प्रहार का भी अपना एक अलग सुख होता है। जब आप देखते हैं कि अमिताभ बच्चन किसी गरीब की मदद करने के लिये किसी गरीब को पिटते देखकर उस( दूसरे) पर हाथ छोड़ता है , उसको मारता है तो इस पर आपके अन्दर कहीं न कहीं बैठा कमजोर इंसान है वह सोचता है कि मेरी जगह देखो ये आ गया। तो व्यंग्य का आनन्द इस तरीके से भी है।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10216333717269017

No comments:

Post a Comment