कल एक बच्ची कोने में खड़ी सुबक रही थी। उसके पापा "लो बीपी" के चलते आई.सी.यू. में भर्ती हैं। हमने उसको समझाया। चुप कराने का प्रयास किया। कहा -"चिंता मत करो। सब ठीक हो जायेगा।" फिर भी वह सुबकती रही। फिर मैं उसके पापा की बीमारी के बारे में पूछने लगा। वह सुबकते हुए बताती रही।पता चला वह एक स्कूल में टीचर है।
मैंने पूछा -क्लास में कितने बच्चे हैं?
उसने बताया-35
इस पर मैंने कहा। 35 नहीं अब तो 36 हो गये। तुम बच्चों की तरह रो रही। टीचर भी अब बच्ची में ही गिनी जायेगी न!
यह सुनते ही वह सुबकना स्थगित करके मुस्कराने लगी। फिर सुबकना बंद ही कर दिया।
अवसाद का तारतम्य तोड़ने के लिए अक्सर बेवकूफी की बातें भी बड़ा काम आती हैं।
आज मिलने पर फिर मैंने पूछा- तुम्हारे स्कूल में प्रार्थना कौन सी होती है।
"वी शैल ओवरकम वन डे।" उसने बताया।
फिर प्रार्थना यहाँ कैसे भूल गयी?
सुनकर वह फिर मुस्कराने लगी और मेरी माँ की तबियत के बारे में पूछने लगी।
[ पांच साल पहले का किस्सा । जब अम्मा के इलाज के लिये हम इंदौर अस्पताल में डेरा डाले थे। ]
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10217097224356217
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