Tuesday, July 23, 2019
लेह की सुबह
Monday, July 22, 2019
लेह में पहला दिन
जैसा लोगों ने बताया था उससे लगा कि लेह पहुंचते ही सांस लेने में तकलीफ होने लगेगी। चलते हुए हांफने लगेंगे। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। मौसम एकदम चमकदार और चकाचक था। हमको लगा कि मौसम के यह दांत दिखावटी हैं। कुछ देर बाद असली रंग दिखेगा। हम उसके इंतजार में थे।
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Sunday, July 21, 2019
लेह-लद्दाख वाया लखनऊ-दिल्ली
लेह-लद्दाख घूमे पिछले हफ्ते। कानपुर से लखनऊ, दिल्ली होते हुए लेह पहुंचे। लेह का मौसम बहुत हाहाकारी बताया था हमारे दोस्तों ने जो पिछले महीने यहाँ से घूमकर गये थे। सर्दी इतनी कड़क बताई थी कि हम तमाम स्वेटर और ठंड वाले कपड़े लादकर लाये थे। लेकिन जब लेह पहुंचे तो मौसम एकदम आशिकाना सा था। बड़ी गर्मजोशी से खिली धूप ने स्वागत किया। सर्दी कहीं दाएं-बाएं हो गई थी। शायद उसको भी हमारी और सूरज भाई की दोस्ती का अंदाज लग गया था।
Monday, July 08, 2019
'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी ' का सड़क पर विमोचन
कल पंकज बाजपेयी से मिले। बहुत दिन बाद। गए तो ठीहे पर नहीं थे। ठीहा मतलब डिवाइडर जहाँ वो बैठे मिलते हैं। ठीहे पर नहीं मिले तो इधर-उधर देखा। लगा कि कहीं निकल गए होंगे। लेकिन ज्यादा खोजना नहीं पड़ा। वहीं मोड़ पर सड़क पार करते दिख गए। आवाज दी तो रुक गए। लौटे। पास आकर बोले -' कहां चले गए थे? बहुत दिन बाद आये।'
Saturday, July 06, 2019
सपने में साहित्य
सबेरे उठे तो देखा पानी बरस रहा था। बहुत धीमे-धीमे। गोया कोई बुजुर्ग (मल्लब अकल बुजुर्ग) लेखक समसामयिक साहित्य की दशा पर टसुये बहा रहा हो। बुजुर्गवार को बड़ा ख़राब टाइप फील हो रहा है कि साहित्य का स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। दर्द गिरने का, पतन का उत्ता नहीं है जित्ता इस बात का कि सारा पतन उससे बिना पूछे हुआ जा रहा है। मल्लब उनको मार्गदर्शक साहित्यकार बना दिया गया हो। साजिशन।
बीच में पानी तेज हुआ। लगा बुजुर्ग हड़काने लगे हों। लेकिन जल्दी ही हांफकर फिर टसुये मोड में आ गये। पानी सहज गति से गिरने लगा।
ऊपर वाली पतन कथा में करेला में नीम इस बात पर कि पतन में भी सामूहिकता की भावना गायब होती देखकर बुजुर्ग का मन खून के आंसू रोने का कर रहा था । वे रोने की तैयारी भी कर चुके थे। बस शुरू ही होने वाले थे कि उनको याद आया कि खून की रिपोर्ट में हीमोग्लोबिन कम निकला था। मन मसोसकर सिर्फ टसुये बहाकर रह गए।
पानी गिर रहा था। तेज गिर रहा था। मानो बादल पानी गिराकर कहीं फूट लेना चाहते हों। जैसे सरकारें विकास करके निकल लेती हैं किसी इलाके से। सड़क खोदकर, तालाब पाटकर, घपले करके, व्यवस्था चौपटकर और जाते-जाते यह 'नियति टॉफ़ी' थमाकर :
घुमक्कड़ी की दिहाड़ी
Thursday, July 04, 2019
अवसाद का तारतम्य और बेवकूफी की बातें
कल एक बच्ची कोने में खड़ी सुबक रही थी। उसके पापा "लो बीपी" के चलते आई.सी.यू. में भर्ती हैं। हमने उसको समझाया। चुप कराने का प्रयास किया। कहा -"चिंता मत करो। सब ठीक हो जायेगा।" फिर भी वह सुबकती रही। फिर मैं उसके पापा की बीमारी के बारे में पूछने लगा। वह सुबकते हुए बताती रही।पता चला वह एक स्कूल में टीचर है।