मेरी किताब 'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी' को उप्र हिंदी संस्थान द्वारा वर्ष 2018 के गुलाब राय सर्जना पुरस्कार के लिए चयनित होने की सूचना मिली। इस पर 40000/- का इनाम मिलेगा। यह पुरस्कार निबन्ध विधा में है।
Saturday, September 21, 2019
'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी' को वर्ष 2018 का गुलाब राय सर्जना पुरस्कार
Saturday, September 14, 2019
हिन्दी दिवस के कुछ अनुभवों से
Thursday, September 12, 2019
बस निकल लो गुरु आगे जो होगा देखा जाएगा
लेह से भारत के आखिरी गांव थांग तक के रास्ते में कई बाइकर्स मिले। मोटरसाइकिल पर धड़धड़ाते जाते। खरदुंगला पास पर भी कई टोलियां मिलीं। उनमें कुछ लड़कियां भी थीं। इन बाइकर्स को देखकर लगा कि यही असल जिंदगी यही है, घूमना। यायावरी, घुमक्कड़ी। बाकी तो सब ऐं-वैं ही है।
मंडी हाउस की चाय और व्यंग्य का महाउपन्यास
आज दिल्ली में Subhash Chander जी से मिलना हुआ। जगह मंडी हाउस। व्यंग्य के प्रकांड पंडित सुभाष जी के लिए सितम्बर का महीना ' सहालग' का महीना होता है। कहीं मुख्य अतिथि तो कहीं विशिष्ट वक्ता। कहीं विषय प्रवर्तक तो कहीं उपसंहार कर्ता। पूरे महीने कहीं से आ रहे होते हैं या कहीं जा रहे होते हैं।
आधे घण्टे की यात्रा करके आये सुभाष जी से दस मिनट की मुलाकात हुई । इस बीच उन्होंने अपने दो अधूरे उपन्यासों का हवाला दिया। झटके में 30-35 पेज लिखे गए। फिर थम गए। फोन पर बातचीत में Shashi Pandey जी ने भी अपने उपन्यास के दस पेज के बाद ठहराव की बात बताई। Arvind Tiwari जी भी एक उपन्यास में ठहरे हुए हैं। गरज यह कि हिंदी व्यंग्य में जिस भी लेखक से बात की जाए तो पता चलता है कि उसका कोई उपन्यास कहीं ठहरा हुआ है। इस लिहाज से यह भी माना जा सकता है कि सच्चा व्यंग्य लेखक वही है जिसका कम से कम एक उपन्यास ठहरा हुआ है। उसी कड़ी में यह तय किया जा सकता है कि जिसके सबसे ज्यादा अधूरे उपन्यास हैं वह उतना बड़ा लेखक।
Tuesday, September 10, 2019
जो कुछ मिलना है अपनी क्षमताओं से, अपने संघर्ष से और अपने धैर्य से ही मिलना है -आलोक पुराणिक
[इंसान के व्यक्तित्व निर्माण में उसके बचपन का बड़ा हाथ होता है। आलोक पुराणिक के साथ भी अलग नहीं हुआ। कम उमर में पिता के न रहने पर बकौल आलोक पुराणिक ही
सन्तोष की सांस
कल घर से निकलते समय हमने अपनी गाड़ी का मुखड़ा देखा। दफ़्तर से लौटते समय एक आटो अनजान तरीके से मेरी गाड़ी को रगड़ता चला गया था कुछ ऐसे जैसे भीड़ भरी बसों में मर्दाने लोग जनानी सवारियों पर हाथ/बदन साफ़ करते चलते हैं। मेरी गाड़ी सही सलामत थी। मैंने ईश्वर को लाख-लाख शुक्रिया दिया। लेकिन फ़िर याद आया कि शुक्रिया तो खुदा को दिया जाता है। ईश्वर तो धन्यवाद ग्रहण करते हैं। भन्ना न गये हों कहीं धन्यवाद की जगह शुक्रिया देखकर। हमने फ़ौरन ईश्वर को डेढ-डेढ लाख धन्यवाद रवाना किया और अनुरोध किया कि हमारे शुक्रिया वापस कर दें ताकि हम उनको खुदा के हवाले कर दें। लेकिन शुक्रिया वापस आया नहीं। जमा हो गया होगा कहीं गुप्त खाते में ईश्वर के। बहुत गड़बड़झाला है ऊपर वाले के यहां।
Tuesday, September 03, 2019
भारत के आखिरी गांव तक
आगे सीमा पास का गांव पड़ा। लोग सड़क किनारे खेतों में काम करते दिखे। कोई बैठा हुआ। कोई बतियाता हुआ। एक जगह बच्चे स्कूल से आते दिखे। सड़क किनारे जाते कुछ लोगों के फोटो हमने चलती गाड़ी से लिये। कुछ बच्चियां घास के गट्ठर सर पर लादे आ रहीं थी। हमने उनके फ़ोटो लेने की कोशिश की तो उन्होंने घास के गट्ठर को कैमरे के सामने कर दिया या फिर पीठ कैमरे की तरफ कर दी।
तुर्तक में सेना की चौकी है। वहां सेना के लोग दूरबीन की सहायता से आसपास को चोटियों के बारे में बता रहे थे। यह चोटी हिंदुस्तान की है वह पाकिस्तान की। यहां पर पहले पाकिस्तान का कब्जा था। वह ऊंचाई पर बंकर है। ऊपर पहुंचने में दो-तीन दिन लगते हैं। स्थानीय लोगों की सहायता के बिना सेना का काम चलना मुश्किल। सेना के सहयोग के बिना स्थानीय लोगों की जिंदगी दुश्वार। दोनों एक दूसरे के सहयोगी।
सीमा चौकी पर कुछ ढाबे बने हुए है। सबमें चाय, मैगी , चाउ मीन जैसे खाने के सामान। दुकानें थांग गांव के लोगों हैं। उनमें आपस में ग्राहकों को कब्जियाने की कोई ललक नहीं। बल्कि जिस दुकान में हम रुके उसके मालिक ने ही हमको बताया - 'उस दुकान में खा लीजिये। उम्दा है।' हम उनकी सहजता के मुरीद हो गए और हमने कहा हम तो जो होगा यहीं खाएंगे ।
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