Monday, November 18, 2019

दुनिया की सबसे धूर्त सड़क पर




सैन्फ़्रान्सिस्को पहाड़ पर बसा शहर है। कुछ सड़कें ऐसी मानों किसी पहाड़ी की चढाई-उतराई उठा के धर दी गयी हो। कट-पेस्ट करके। किसी घिसी हुई क्लच वाली कार तो कहो सड़क चढ ही न पाये। हमारी सैंट्रो सुंदरी तो चढ़ने के पहले ही मना कर दे -'हम न चढ़ब।'

वीएफ़जे में ट्रकों की जांच के लिये टेस्ट ट्रैक याद आ गयी। वहां टेस्ट ट्रैक में खड़ी चढाइयां हैं यह जांचने के लिये कि गाड़ी चढाई-उतराई में कैसे काम करेगी ! सैनफ़्रांसिस्को की सड़कें देखकर लगा कि जगह-जगह टेस्ट ट्रैक बनाये गये हों।
सड़कें आम तौर पर चौड़ी हैं। चौड़ी सड़कों वाले शहर में एक बहुत संकरी सड़क भी है। वन वे मतलब एकतरफ़ा। पहाड़ी नदी की तरह बलखाती यह सड़क अपने मोड़ों के चलते बदनाम है। सड़क का नाम है Lombard Crooked Street . अमेरिका की इस धूर्त सड़क को देखने लाखों लोग आते हैं। यह दुनिया की सबसे टेढी-मेढी सड़क मानी जाती है।
मानी जाने की बात अलग लेकिन सैनफ़्रान्सिस्को में ही लोम्बार्ड गली से भी अधिक टेड़ी -मेढी गलियां हैं। लेकिन एक बार बदनाम हुये तो हो गये। यह् ऐसे ही हुआ कि अरबों-खरबों के घपलों के बीच भी चन्द लाखों की ढगी करने वाले नटवरलाल जैसे लोग ज्यादा बदनाम हों।
सड़क के दोनों तरफ़ मकान हैं। मोड़ों पर रंग-बिरंगे फ़ूल हैं। सड़क के किनारे पैदल चलने की सीढियां हैं। सात-आठ मोड़ हैं। इनमें गाड़ियां केवल ऊपर से नीचे ही चलती हैं। एक समय में केवल एक ही गाड़ी गुजर सकती है।
इस संकरी सड़क को देखकर युसुफ़ी साहब की तंग गलियों वाली यह बात याद आ गयी:“उस शहर की गलियां इतनी तंग थीं कि अगर मुख्तलिफ़ जिंस (विपरीत लिंगी) आमने-सामने से आ जायें तो निकाह के अलावा कोई गुंजाइश नहीं रहती।“
अब चूंकि गाड़ियों के निकाह नहीं होते इसलिये गाड़ियां एक-दूसरे के पीछे अकेली उतरतीं रहीं।
सड़क की कुल लम्बाई एक किलोमीटर से भी कम होगी। लेकिन हल्ला इतना कि पूछो नहीं। बनारस की गलियां कम टेढी-मेढी थोड़ी हैं। अगले मोड़ पर खड़ा आदमी नहीं दिखता। हमारे गांव के पास एक गांव का नाम ही सकरी है। वहां भी एक गाड़ी ही निकल सकती है एक समय में।
सड़क मोड़ देखते हुये महाराष्ट्र के घाट सेक्सन याद आ गये। वहां हर मोड़ पर लिखा रहता है- ’पुढे रास्ता वलणम आहे। वाहना हलू न !’ –आगे रास्ते टेढा है। वाहन धीरे चलाइये।
सड़क पर जगह-जगह सावधान रहने के सूचना पट्ट लगे थे- ’कृपया गाड़ियों में कोई बैग न छोंड़ें। यहां शीशे तोड़कर चोरियां होती हैं।’
पता चला कि यहां गाड़ियों के शीशे तोड़कर चोरियां बहुत होती हैं। सावधानी हटी-दुर्घटना घड़ी। यह समस्या इतनी आम है कि पुलिस भी रिपोर्ट लिखकर छोड़ देती है। इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाती। गाड़ियों से चोरी की समस्या का कारण आर्थिक असमानता ही है। कुछ लोग इतने विपन्न हैं कि जो मिला वही लेकर भाग जाते हैं।
रास्ते में एक इमारत में मरम्मत का काम हो रहा था। इमारत के चारो तरफ़ काम करने वालों की सुरक्षा के लिये लकड़ी के पटरे लगे थे। यह तो अपने यहां भी होता है तमाम जगह। लेकिन एक और बात यहां दिखी कि मरम्मत की जा रही इमारत को चारों तरफ़ से कपड़े से ढंककर रखा गया था ताकि मरम्मत की धूल रास्ते में न उड़े।
धूर्त सड़क देखकर फ़िर सैन होजे गये। वहां अमल-अरणिमा हैं। Amal Chaturvedi-Arnima Chaturvediअमल हमारे वरिष्ठ साथी रहे चतुर्वेदी जी के पुत्र हैं। जबलपुर से पढने के बाद अमेरिका आये। यहां एमएस किया और पीएचडी करने के बाद एक कम्पनी में रिसर्च कर रहे हैं। रिसर्च कैंसर की रोकथाम से सम्बन्धित है। खोज इस बात की हो रही है कि इन्सान के डीएनए से भविष्य में होने वाले कैंसर की सम्भावनायें यदि हों तो पता चल सके और उनका इलाज हो सके। अमल की पत्नी अरणिमा भी जबलपुर में पढी हैं। एनटीपीसी की नौकरी छोड़कर अब यहां से मास्टर्स करने की योजना बना रही हैं।
अमल के घर के आसपास तमाम खूबसूरत इमारतें हैं। बगल में कुछ दूर पर सैंमसंग की भव्य इमारत है। लेकिन वहां कोई इंसान दिखा नहीं। पता चला कि अभी वहां आफ़िस शुरु नहीं हुआ है। सुरक्षा के लिये एक रोबोट टहलता दिख जाता है कभी-कभी।
भव्य इमारतों के बीच में एक बहुत बड़ा फ़ार्म हाउस है। फ़ार्म हाउस में खूब बड़ा खाली मैदान है। पीछे संतरे का बगीचा है। पेड़ों में संतरे लगे हैं। कोई बाउंडरी नहीं। लेकिन कोई भी संतरों को तोड़कर भागता नहीं दिखा। अमल ने बताया कि इस तरह के बगीचों के पास के पास जाना भी खतरनाक है। वो गोली मार सकता है। प्राइवेट संपत्ति में अतिक्रमण रोकने पर इस तरह की बात आम है।
यहां गोली मारने की घटनायें वैसे भी अक्सर होती रहती हैं। स्कूलों में बच्चे अपने साथियों को गोली मार देते हैं। शहरों में भी कोई पगला जाता है। यहां के मूल निवासियों को बाहर से आये लोगों के प्रति गुस्सा भी है इस बात का कि ये लोग उनकी नौकरियां खा जा रहे हैं। बड़ी कम्पनियों के लोग इसीलिये अपने परिचय पत्रों में कम्पनी का नाम नहीं लगाते। अपनी पहचान छुपाते हैं ताकि उनको खतरा न हो।
बगीचे के बीच बने एक घर में ऊपर अपने यहां के पुराने जमाने के टेलिविजन के एंटीना की तरह का कोई एंटीना लगा था। क्या पता इनके यहां भी टेलिविजन कार्यक्रम देखते हुये एंटीना हिलाकर पूछता हो –’अब आया कि नहीं? ’ अन्दर से आवाज आती हो-’थोड़ा-थोड़ा आ रहा है। हां, हां अब आ गया। यहीं छोड़ दो।’
जिस रेस्टोरेंट ( करी अप नाउ )में हम लोगों ने खाना खाया वहां भारतीय खाना मिलता है। घुसते ही दीवार पर नशे की लत से बचाने की मंशा का कोलाज बना है। ’आफ़्टर व्हिस्की , ड्राइविंग रिस्की’ जैसे नारों के साथ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है- ’मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं।’ मतलब गाड़ी संभल के चलाओ।
हाइवे से लौटते हुये सबसे पहली लेन में डायमंड के आकार के निशान सड़क पर बने दिखे। अमेरिका और कनाडा में इस तरह की सड़कें खास तरह की सवारियों के लिये सुरक्षित होती हैं। खास तरह की गाड़ियां साइकिल, मोटरसाइकिल इलेक्ट्रिक गाड़ी , बस , बग्घी, आपात गाड़ियां (एम्बुलेंस आदि) जिनके चलने से या तो पर्यावरण प्रदूषण कम होता हो या फ़िर जो सुरक्षा की नजर से जरूरी हो। पर्यावरण के प्रदूषण के लिहाज से आमतौर पर दो या अधिक सवारियों वाली गाड़ियों के लिये सुरक्षित होती हैं ये सड़कें। ज्यादा लोग चलेंगे गाड़ी में तो प्रति व्यक्ति पर्यावरण कम होगा। कोई दूसरी गाड़ी चलने पर फ़ाइन ठुक जाता है यहां।
सड़कों पर यहां दूरियां मिनट में बताने का चलन है। सड़क किनारे एलसीडी सूचना पटों पर दूरियां मिनटों में दिखाई गयीं थीं। यह समय ट्रैफ़िक की औसत गति के हिसाब से होता है।
सैनफ़्रान्सिस्को लौटने तक शाम हो गयी थी। हम लोगों को समुद्र में टहलते क्रूज पर जाना था। समुद्र किनारे जाने के लिये गाड़ी खड़ी करना था। गाड़ियां यहां पर या तो सड़क किनारे पार्किंग की जगहों पर खड़ी की जाती हैं या फ़िर जगह-जगह बनी पार्किंग में। सड़क किनारे पार्किंग मुफ़्त है। लेकिन अक्सर पार्किंग की जगह मिलना मुश्किल होता है। सड़क किनारे की पार्किंग में भी ऐसी जगह पार्किंग नहीं कर सकते जहां आग बुझाने वाले पाइप लगे हैं, या जो किसी के लिये आरक्षित हैं। ऐसा करने पर जुर्माना हो सकता है।
सड़क पर पार्किंग की जगह मिली नहीं। एक पार्किंग स्टेशन पर खड़ी की गयी गाड़ी। 20 डालर ठुक गये। 20 डालर मतलब 1400 रुपये। पार्किंग के खर्चे पहले पता होते तो कानपुर से अपना एक गैरज उठाये लाते। सारा खर्च निकल आता।
समुद्र किनारे पहुंचकर पता चला कि क्रूज छह बजे चलेगा। ’ रेड एंड व्हाइट फ़्लीट’ कम्पनी का क्रूज था। इसकी स्थापना 1915 में हुई थी। एक सदी से अधिक के समय से यह अभी तक पारिवारिक व्यवसाय के रूप में ही चल रहा है।
क्रूज पर पहुंचने के कुछ देर बाद वह चल दिया। समुद्र में करीब डेढ घंट घूमते रहे। क्रूज से शहर की खूबसूरती, लाइटिंग, गोलडन गेट की खूबसूरती के अलावा और तमाम नजारे देखते रहे। काफ़ी और खाने का इन्तजाम भी वहीं था। डेक पर एक गायक गिटार बजाते हुये गाना गा रहा था। लोग समुद्र और आसपास की खूबसूरती निहारते हुये फ़ोटो खिंचा रहे थे। एक जोड़ा आपस में लगातार एक-दूसरे को चूमने में जुटा था। वहीं दूसरा जोड़ा यह काम किस्तों में कर रहा था।
हम लोगों ने जी भर कर समुद्र सौंदर्य निहारा। इसके बाद वीडियो काल करके अपने घर वालों और दोस्तों को लाइव इस खूबसूरती के दीदार कराये। डेढ घन्टे बाद उसने उतारकर क्रूज के फ़ोटोग्राफ़र ने हमको वह फ़ोटो दी जिसे उसने क्रूज पर चढते समय दी थी।
क्रूज से वापस आते हुये रात हो गयी थी। खाना-पीना पहले ही हो चुका था। दिन भर की घुमाई से थके थे ही। वापस आकर सो गये।

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