वैसे तो सैनफ़्रांसिस्को समुद्र किनारे बसा है। लेकिन यहां समुद्र किनारे सामान्यतया व्यापारिक गतिविधियों के केन्द्र हैं। कल कैलीफ़ोर्निया के समुद्र तट के नजारे देखने निकले। मोंट्रे Monterey बीच गये टहलने। रहने की जगह से 120 मील लगभग। 120 मील मतलब 60 कोस मतलब लगभग 190 किमी। कानपुर से इलाहाबाद की दूरी धर लीजिये।
निकलते-निकलते दोपहर हो गयी।
शहर से निकलते हुये एक सड़क दिखी। बीच का हिस्सा लाल। पता चला कि सड़क के यह हिस्सा केवल बस के लिये है। दूसरी गाड़ी चली तो जुर्माना !
बहरहाल वह सड़क सामने थी। हमको उस पर जाना नहीं था। हम दायें मुड़कर चल दिये। दूरी बताई 2 घंटा 21 मिनट लगभग। गूगल मैप के सहारे आगे बढे।
अमेरिका में रास्ते केवल गूगल मैप और नेट के सहारे ही तय किये जाते हैं। शहर में भी अगर नेट न हो तो लोगों के लिये चलना मोहाल हो जाये। कोई बताने वाला नहीं। अपने यहां की तरह नहीं कि एक से पूछो तो पांच लोग रास्ता बताने के लिये मौजूद। कभी-कभी पांच में पांचों लोग अलग रास्ता बताते हैं। आपकी मर्जी किसकी सलाह मानकर आगे बढते हैं। विविधताओं का देश है भाई अपना। फ़िर एक जगह का एक रास्ता कैसे हो सकता है।
शहर के बाहर निकलते ही अमेरिकी देहात का महासागर शुरु हो गया। लेकिन रागदरबारी की तरह यहां कोई ट्रक सड़क पर खड़ा नहीं मिला। सड़क पर गाड़ियां खड़ी होने पर चालान हो जाते होंने शायद यहां ! एक जगह सड़क बन रही थी। पूरा अमला खड़ा था। सड़क रिपेयर के लिये बन्द थी।
एक जगह गाड़ी में पेट्रोल भरवाया। पेट्रोल पम्प पर कोई इन्सान नहीं था। क्रेडिट कार्ड फ़ंसाओ। नोजल गाड़ी में धरो और भर लो जितना भरना हो पेट्रोल। हमने भरवाया। 10.744 गैलन के 42.75 डालर। मतलब 40.67 लीटर के 3078 रुपये। मतलब लगभग 76 रुपये लीटर ! कहने का मतलब भारत में पेट्रोल के दाम के लगभग बराबर !
पेट्रोल पम्प पर रेस्ट रूम भी था। एकदम चकाचक। न कहीं कोई गन्दगी न कोई लफ़ड़ा। यह बात यहां हमने हर जगह देखी। शहर से 200 किलोमीटर दूर समुद्र किनारे सूनसान में भी बने रेस्ट रूम का फ़्लस और ड्रायर चालू हालत में दिखे। सफ़ाई का जज्बा यहां लोगों की आदत में शामिल है।
सड़क किनारे दोनों ओर बड़े-बड़े खेत। सैंकडों मीटर तक एक ही खेत । एक ही फ़सल। जगह जगह स्प्रिंकलर से सिंचाई होती दिखी। कुछ साझे के घर दिखे, गांव सरीखे। लेकिन वहां कोई बैलगाड़ी नहीं दिखी न कोई गाय-बैल। सब जगह लाइन से कारें खड़ी थीं।
मोंट्रे पहुंचकर पार्किंग में गाड़ी खड़ी की। सामने ही दो युवा किसी वाद्ययंत्र को बजाते हुये गाना गा रहे थे। हमने उनका फ़ोटो लिया। बच्चे ने टोंका कि ऐसे बिना कुछ दिये फ़ोटो लेना अनइथिकल है।
अच्छे खाते-पीते घर के बच्चे पैसे के लिये गाना गा रहे हैं यह मेरे घ्यान में ही नहीं आय। लेकिन बाद में देखा उनके पास कुछ डालर जमीन में धरे थे। हमने भी एक डालर दिया और कुछ देर उनसे बतियाये। उनका वीडियो भी बनाया पूछकर। उनमें से एक का कहना था कि वे गाना अपनी खुशी के लिये गाते हैं।
बच्चे जहां गाना गा रहे थे वहां एक स्मारक बना है। कुछ लोगों की मूर्तियां हैं। पता चला कि ये मूर्तियां उन लोगों की हैं जिन लोगों के चलते यह जगह प्रसिद्ध हुई। सबसे ऊपर जान स्टेनबेक (John Steinbeck) की मूर्ति है।
जानस्टेनबेक प्रसिद्द अमेरिका लेखक थे। उनको 1962 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला। 1945 में लिखे हास्य उपन्यास Cannery Row से यह जगह लोगों के बीच प्रसिद्द हुई। यह अलग बात कि स्मारक का उद्घाटन 2014 में हुआ जबकि स्टेनबेक 1968 में ही इस दुनिया से विदा हो गये।
शायद लेखकों के स्मारक हर जगह एक ही गति से बनते हैं।
अन्य लोगों ने भी इस जगह को अपने तरह से मशहूर किया। इन लोगों के अलवा कुछ समुद्री जीवों की मूर्तियां भी थीं। एक मेढक भी दिखा कोने में बैठा हुआ। क्या पता मेढकों की दुनिया में वह किस तरह प्रसिद्ध हुआ हो। शायद उनकी दुनिया में भी कोई नोबल इनाम बंटता हो। अलग तरह से टर्राने पर अलग इनाम मिलता हो।
कुछ देर फ़ोटोबाजी के बाद अपन वहीं एक भारतीय रेस्टोरेंट में खाना खाया। पनीर, रोटी, पराठा। एकदम हिन्दुस्तानी स्वाद। रेस्टारेंट के काउंटर पर बोतले अलग अंदाज में टंगी थीं। बस खुलने को आतुर। यहां के रेस्टोरेंट्स में हमने कहीं भी नाबालिक उम्र के बच्चे को काम करते नहीं देखा। बहुत कड़क कानून हैं इस मामले में यहां।
खाने के बाद अपन 17 वी मील की ड्राइव पर निकले। समुद्र किनारे चलती सड़क पर कई दर्शनीय स्थल हैं। हर स्थल पर उसके बारे में विवरण। संक्षिप्त इतिहास। हर जगह पर मुख्य सड़क से हटकर बनी सड़क पर पार्किंग स्थल। 17 वीं मील वाली सड़क का रास्ता पता करते समय नेट गोल हो गया। सड़क भूलभुलैया हो गयी। कुछ देर वहीं भटकते रहे।
वहीं पर सड़क किनारे हिरन टहलते दिखे। ताज्जुब हुआ कि आबादी के इतने नजदीक हिरन बेखौफ़ टहल रहे थे। मन किया हिरनों से ही रास्ता पूछ लें –’हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी’ कहते हुये। लेकिन पूछने से पहले ही नेट आ गया। हम सही रास्ते की तरफ़ चल दिये।
सबसे पहले एक बीच मिला। उसमें कैलीफ़ोर्निया के बीच के संरक्षण की बातें लिखीं थीं। फ़िर स्पेनिश बे बीच मिला। चट्टानों के बीच लहरें उछलती-कूदती किनारे तक आ रहीं थीं। किनारे छूकर लौट जा रही थीं। वर्ड रॉक में चट्टानों पर खूब सारी चिडियां चौपाल लगाये बैठी दिखीं। एक जगह सील बे दिखा जहां खूब सारी सील आरामफ़र्मा थीं। उनके आराम में खलल डाले बिना हम आगे बढ गये।
कुछ दूरी बाद साइप्रस के पेड़ दिखे। एक चट्टान पर एक अकेला साइप्रस का पेड़ दिखा।' लोन साइप्रस' के नाम से मशहूर इस पेड़ की उमर 250 साल है। ढाई सदी से यह पेड़ अकेला खड़ा है। दुनिया में न जाने कितनी घटनाओं के किस्से हवाओं ने इसको आकर सुनाये होंगे। सबको सुनकर यह पेड़ चुपचाप अकेला खड़ा है। पेड़ भी अपने बुजुर्ग को इज्जत की निगाह से देखते खड़े दिखे। पेड़ों में मार्गदर्शक मण्डल की व्यवस्था नहीं होती होगी।
वहीं बीच पर सैम मोर्स (1885-1969) के नाम एक समर्पण है जिन्होंने इस पेबल बीच को बनाने और बचाने में अपना योगदान दिया।
आगे एक भुतहा पेड़ था। उसको भी बड़ी इज्जत से नाम बताकर रखा गया। अपने यहां तो ऐसे भुतहे पेड़ हर गांव में होंगे लेकिन उनकी इज्जत नहीं होती !
विकसित देशों के समुद्र तट अपने किनारों पर दिगम्बर मुद्रा में धूप-स्नान करते लोगों के लिए ख्यात नाम हैं ।घण्टों समुद्र तट पर टहलते हुए ऐसे लोग कहीं नहीं दिखे । धूप की अनुपस्थिति और वीकेंड न होना शायद इसका कारण रहा हो।
इस बीच बरसात शुरू हो गयी। शाम भी हो गयी। हम वापस लौट लिए। हमारा अगला पड़ाव था संजीव अग्रवाल Sanjeev Agrawal का घर। हमारे कालेज के साथी संजीव से 9 साल बाद मुलाकात हो रही थी। अपनी ब्रांच इलेक्ट्रिकल के टॉपर रहे संजीव ने अपनी 34 पहले की शराफत और शैतानी बरकरार रखी है अपनी कातिल मुस्कान सहित।
संजीव के घर में ही गुलाबी शहर के बाशिंदे बिंदास देवेश गोयल Devesh Goyal और उनके परिवार से मुलाकात हुई। साथ मुकेश गर्ग Mukesh Garg से भी। मुकेश दौड़धूप और यात्राप्रेमी हैं। उनके फेसबुक पेज पर हाफ मैराथन की फोटो है। मानसरोवर यात्रा भी कर चुके हैं।
बतकही और खाते-पीते कब देर रात हो गयी पता ही नहीं चला। तमाम यादें दोहराई गयीं। बाल-बच्चों के बारे में जानकारियां साझा हुईं। चलते समय शानदार खाने के लिए भाभी जी को कई बार धन्यवाद देते हुए हम विदा हुए। परदेश में यह एक शानदार यादगार मुलाकात रही।
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