वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को निपटाकर हम आगे बढ़े। पेड़ों पर पीली पत्तियां माहौल को खूबसूरत बना रहीं थीं। गली-गली होते हुए हम मुख्य सड़क पर आए। हमारी अगली मंजिल वाल स्ट्रीट पर स्थित मशहूर सांड था।
सड़क पर भीड़ थी। फुटपाथ पर भी चहल-पहल थी। हमको लगा कि वो सांड न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज पर होगा। पूछते हुए वहां पहुंचे तो दूर तक सांड दिखा नहीं। पता किया तो एक न बताया कि उधर है 'उधर है चार्जिंग बुल।'
फुटपाथ पर चलते हुए हम 'उधर' की तरफ बढ़े। बढ़ते हुए हमें एक बार फिर लगा कि अमेरिका में फुटपाथ पर उनके मूल मालिकों -'पैदल यात्रियों' का ही कब्जा है। कोनों पर कहीं कुछ छुटपुट अस्थाई दुकानें भले दिखीं लेकिन फुटपाथ पैदल यात्रियों के लिए ही सुरक्षित है।
एक बात और जो हमें दिखी वहां वह यह कि हर फुटपाथ के कोने सड़क से इस तरह जुड़े थे कि कोई दिव्यांग व्हील चेयर से सड़क से फुटपाथ पर आ जा सके। ऐसा पूरे अमेरिका की फुटपाथों पर होगा शायद। अपने प्रवास के दौरान मैंने एक भी फुटपाथ ऐसा नहीं देखा जिसके कोने व्हीलचेयर की आवाजाही की सुविधा से युक्त न हों। फुटपाथ पर उखड़ी ईंट और बहती पाइपलाइन देखने को भी तरस गए अपन अमेरिका में।
'चार्जिंग बुल' के चारों तरफ लोगों की भीड़ थी। लोग उसको देखते हुए उसके साथ फोटो खिंचाने में लगे थे। जयमाल के बाद जैसे लोग दूल्हे-दुल्हन के साथ, आगे-पीछे अगल-बगल खड़े होकर, ताकि सनद रहे वाली मंशा से फोटो खिंचा रहे थे ।
'चार्जिंग बुल' मतलब नथुने फड़काता , बलबलाता सांड। कांसे की करीब साढ़े तीन टन की इस मूर्ति का निर्माण प्रसिद्द मूर्तिकार द मोदिका ने किया था। द मोदिका 1970 में न्यूयार्क आये थे तो उनके पास एक चवन्नी तक नहीं थी। खाली जेब थे वो। बाद में इस शहर ने उनको पहचान दी। वे प्रसिध्द हुए। पैसे भी कमाए होंगे। इससे न्यूयार्क के प्रति उनके मन में 'आभार भाव' रहा होगा।
1987 में काले सोमवार को स्टॉक मार्केट धड़ाम हो गया था। लोगों के वैसे और हौसले डूब गए थे। इससे निराश हुए लोगों की हौसला अफजाई के लिए मोदिका ने इस सांड की मूर्ति की परिकल्पना की। बेदी मक्की आर्ट फाउंडेशन ब्रूकलिन ने उनकी कल्पना को मूर्ति में ढाला। मूर्ति बनने के बाद एक ट्रक में लादकर 14 दिसम्बर , 1989 को अवैध रूप से मैनहट्टन की फुटपाथ पर छोड़ गए जैसे रात के अंधेरे लोग अपने घर का कूड़ा दूसरे के दरवज्जे छोड़ जाते हैं।
3.6 लाख डॉलर की कीमत के सांड को फ्री फंड में छोड़ दिया अगले ने। ऐसे जैसे सांता क्लॉज गरीबों के घरों की खिड़कियों से उपहार गिरा जाता है। यह शहर के प्रति प्रेम के साथ-साथ अपनी कला के प्रदर्शन की ललक भी रही होगी। लोगों की भीड़ जुट गई इसे देखने के लिए। लेकिन इस तरह जमीन पर मूर्ति छोड़ देना अवैध है वहां भी लिहाजा सांड की मूर्ति हटा दी गयी। लेकिन फिर लोगों की इच्छा के चलते इसको दुबारा लगाया गया। लोग इसे देखने के लिए आने लगे। यह एक चर्चित स्थल बन गया।
खुल्ले में खड़ा नथुने फड़काता सांड खराब से खराब समय में भी हौसला बनाये रखने की भावना का संचार करता है। एक इंटरव्यू में शिल्पकार मोदिका न बताया- 'मैं लोगों को बताना चाहता था कि अगर आप अपने सबसे खराब समय में भी कुछ करना चाहते हैं तो उसे कर सकते हैं। आप उसे खुद कर सकते हैं। मेरे कहने का मतलब है कि आपको मजबूत होना चाहिए।'
स्टॉक मार्केट की ऊर्जा, ताकत और अनिश्चितता का प्रतीक है यह नथुने फड़काता खड़ा सांड।
बाद में मूर्ति में कुछ टूट-फूट हुई तो उसको भी आकर ठीक किया मूर्तिकार ने। मालिकाना हक भी लफड़े वाला है मूर्तिकार का। पहले तो चुपके से धर गया मूर्तिकार। बाद में इसके चित्रों के उपयोग पर पाबंदी लगा दी अगले ने। इस सांड की नीलामी भी करने की बात की मूर्तिकार ने इस शर्त के साथ कि मूर्ति वहीं रहेगी जहां है।
पूंजीवाद के विरोध के प्रतीक के रूप में भी इस मूर्ति का प्रयोग 'ऑक्युपाई वाल स्ट्रीट' आंदोलन में हुआ।
लोग सांड की मूर्ति के पास खड़े होकर, उसको छूकर, कुछ लोग तो उस पर चढ़कर फोटो खिंचा रहे थे। नथुने फड़काता यह सांड अगर जीवित सांड होता तो लोग इसके पास तक नहीं फटकते। छिटककर दूर भागते। लेकिन मूर्ति बन जाने पर लोग इसके ऊपर सवारी करते हुए फोटोबाजी कर रहे थे।
महापुरुषों के मूर्तियों में बदल जाने पर भी उनके साथ यही सुलूक होता है।
कोई चीज प्रसिद्ध हो जाने पर उसके साथ मिथक भी जुड़ते हैं। कांसे के इस चार्जिंग बुल के साथ भी यह मान्यता जुड़ गयी कि इसके नथुने, सींग और अंडकोष छूना भाग्यशाली होता है।
लोग मूर्ति के साथ खड़े होकर फोटो खिंचा रहे थे। कुछ उसकी पीठ पर चढ़कर सींग पकड़े हुए थे। कोई नथुने छू रहा था। झुकझुककर सांड के अंडकोष छूते,सहलाते दिखे लोग।
एक बुजुर्ग अपनी जीवन संगिनी को व्हील चेयर पर साथ लाकर फोटो खिंचा रहे थे। एक स्कूली बच्चा बहुत आहिस्ते से सांड की पीठ सहलाते हुए खड़ा था। बाद में पता चला कि बच्चा दृष्टिबाधित था। बिना आंख की रोशनी के वह विश्व की सर्वाधिक प्रसिद्द मूर्तियों में से एक को देख रहा था।
पास में ही न्यूयार्क फ़िल्म सिटी का आफिस था। अपन को शूटिंग में तो भाग नहीं लेना था इसलिए मूर्ति को देख-दाख कर निकल लिए।
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