(रेखा श्रीवास्तव जी की किताब 'ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक' बारे में आज पोस्ट । इस किताब में अपन की सपन-बयानी यहां पेश है)
हमको जब से अपने अधूरे सपने को बयान करने को कहा गया तब से हम खोज रहे हैं कि कोई सपना दिख जाये तो पकड़ के उसको बयान कर दें। लेकिन अभी तक कोई सपना मिला नहीं। परेशान हैं। लगता है हम सपना देखने वाले जमात के नहीं हैं। ऐसा कोई सपना नहीं याद आता जिसको पूरा करने की कसक मन में हो। इसलिये इस आयोजन में हमारी रिपोर्ट ’निल ’ मानी जाये।
वैसे सपने की जब भी बात चलती है तो मुझे रमानाथ अवस्थी जी की पंक्तियां याद आती हैं:
रात लगी कहने सो जाओ, देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का, रोना और तड़पना
इस परिभाषा के हिसाब से हमने सपने कभी नहीं देखे जो हमको रोते, तड़पाते हों। हम भरपूर नींद लेने वाले रहे हमेशा। अपनी क्षमता के हिसाब से हमें वह सब मिला जिसके हम हकदार हो सकते थे। समय, समाज हमारे प्रति बहुत मेहरबान रहा।
बचपन से आजतक कई चीजें समय-समय पर आकर्षित करती रहीं। वे या तो मिल गयीं या समय के साथ उनको पाने का आकर्षण खतम हो गया। हम वैसे भी बड़ा सपना देखने वाली पार्टी के आदमी नहीं हैं। अल्पसंतोषी हैं। शायद अपनी औकात जानते हैं इसलिये कसकन से बचने के लिये बड़ा सपना देखते ही नहीं। ऐसी सवारी को लिफ़्ट ही नहीं देते जो आगे चलकर कष्ट का कारण बने।
व्यक्तिगत जीवन में- नौकरी बजाते हुये अपने घर, परिवार, इष्ट-मित्रों से पूरी तरह संतुष्ट होने के चलते आराम से जिये जा रहे हैं। कोई ऐसी इच्छा नहीं जिसे पूरी करने के लिये मन में बेचैनी हो। कोई सपन कसकन नहीं। लेकिन कुछ इच्छायें जिनको पूरा करने का मन करता है।
जब से पढ़ना-लिखना सीखा तब से हमेशा यह इच्छा रही कि मैं दुनिया भर का उत्कृष्ट लेखन पढ़ सकूं। मुझे लगता है कि यह इच्छा हमेशा बनी रहेगी। लेकिन इसमें उतनी कसकन नहीं है। यह सिर्फ़ एक इच्छा है। जो कभी पूरी भी नहीं हो सकेगी बस यह है कि इसको आंशिक रूप से पूरा कर पायेंगे।
दूसरा, अपन का देश और दुनिया घूमने का मन है। देश भी अभी पूरा घूमा नहीं है। दुनिया तो शुरु ही नहीं की। लगता है यह इच्छा भी अधूरी ही रह जायेगी। लेकिन मन में एक बात यह भी है कि किसी दिन अचानक निकल पड़ेंगे और घूम डालेंगे दुनिया। पर ऐसा होता नहीं न जी।
कभी-कभी लगता कि हमें इस दुनिया ने बहुत कुछ दिया है। जितना मिला है और जितनी क्षमतायें हैं उसके हिसाब से यह महसूस होता है कि उसको वापस करने में कोताही बरती जा रही है। तमाम किस्तें बकाया हैं। कहीं से कोई नोटिस न आये इसका मतलब यह तो नहीं कि उधार चुक गया। लेकिन यहां भी कसकन वाला भाव नहीं। लगता है कि कोई हम अकेले डिफ़ाल्टर थोड़ी हैं। उधार भी चुकता हो जायेगा। कौन अभी कहीं भागे जा रहे हैं।
महीने भर से आपको अपने सपने बयान करने का काम उधार बाकी था। रोज सोचते थे कि आज करेंगें, कल करेंगे। आपके तकादे से यह सपन-उधार कसकने भी लगा था। लेकिन आज यह कसकन भी खतम हो गयी।
अक्टूबर, 2012 में लिखी पोस्ट
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10219119783998944
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