Wednesday, March 18, 2020

हम युद्द और शांति में देश की रक्षा तैयारियों में सहयोग कर रहे हैं- Hari Mohan




देश के रक्षा उत्पादन में आर्डनेन्स फैक्टरियों की अहम भूमिका रही है | आर्डनेन्स फैक्टरियों का 218 साल का गौरवशाली इतिहास रहा है भारत की सबसे पुरानी आर्डनेन्स फैक्टरी ’ गन एंड सेल फ़ैक्ट्री’ की स्थापना 1802 में काशीपुर, कोलकाता में की गई थी तब से देश की रक्षा जरूरतों के अनुसार अब तक 41 आर्डनेन्स फैक्टरियां स्थापित की जा चुकी है ।
18 मार्च 1801 में काशीपुर कोलकाता में गन एंड सेल पहली आर्डनेन्स फैक्टरी स्थापित की गई थी | इसीलिए प्रति वर्ष 18 मार्च को आयुध निर्माणी दिवस मनाया जाता है इसी संदर्भ में 15 मार्च 2020 को ओएफबोर्ड कोलकाता के अध्यक्ष एवं चेयरमैन श्री हरि मोहनजी के साथ श्रीरूद्रनाथ सान्याल संवाददाता इंडिया न्यूज़ ने साक्षात्कार लिया । साक्षात्कार का हिंदी अनुवाद आयुध वस्त्र निर्माणी, शाहजहांपुर के वरिष्ठ हिंदी अनुवादक श्री प्रकाश चन्द्र ने किया। साक्षात्कार के मुख्य अंश यहां पेश हैं।
सवाल: श्री हरिमोहन जी किसी समय भारत में 39 आर्डनेन्स फैक्टरियां थीं अब 41 आर्डनेन्स फैक्टरियां हैं, आर्डनेन्स फैक्टरियों के इतने विस्तृत नेटवर्क का सार क्या है ?
जबाब: रक्षा उत्पादन में आर्डनेन्स फैक्टरियां देश में 1801 से विद्यमान हैं, 1801 में पहली आर्डनेन्स फैक्टरी गन एंड सेल कॉशीपुर कोलकाता में स्थापित हुई थी और 1947 तक 15 आर्डनेन्स फैक्टरियां थीं। आजादी बाद और कुछ उसके और बाद में स्थापित की गईं । इस प्रकार इस समय कुल 41 आर्डनेन्स फैक्टरियां हैं। इस समय आर्डनेन्स फैक्टरी आर्गेनाइजेशन देश की रक्षा की रीढ़ है। देश की पहली स्टील इकाई 1904 में एम0एस0एफ0 ईशापुर में स्थापित की गई। आज जो विस्तृत नेटवर्क रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आपको दिखाई पड़ रहा है वह पूरे देश में फैला हुआ आर्डनेन्स फैक्टरियों का नेटवर्क है।
सवाल: आपके नियंत्रण में आर्डनेन्स फैक्टरियों में अभी हाल में क्या कुछ हाईलाईट् है ?
जबाब: परम्परागत रूप से आर्डनेन्स फैक्टरियां देश की रक्षा सेवा में एक संगठित सेटअप है। आर्डनेन्स फैक्टरियां देश की सुरक्षा की इंट्रीगेटेड रीढ़ हैं। इंट्रीगेटेड का अर्थ यह हुआ कि हम अपने विस्फोटक का निर्माण खुद कर रहे हैं। हम अपने हार्डवेयर का निर्माण खुद कर रहे हैं। अर्थात् अपने लिये विस्फोटक खुद बनाते हैं, स्टील खुद बनाते हैं। इस समय हम तोप आदि हथियारों के लिए खुद बना रहे हैं। जो भी हथियार हम बना रहे हैं उसकी पूरी मेटलर्जी हम ही तैयार करते हैं। तोप की बैरल्स का उत्पादन हम अपनी स्टील बनाने वाली यूनिट में कर रहे हैं। जब मैं इंट्रीगेशन शब्द का प्रयोग करता हूं तो उसका अर्थ यह है कि हमारे पास कई निर्माणियां हैं जो केमिकल्स एंड विस्फोटक की मेन्युफैक्चरिंग कर रही हैं।
हमारे पास सभी प्रकार के हार्डवेयर और एम्युनेसन निर्माणी की सुविधाएं हैं। हमारे पास सभी प्रकार के वीपेन और सभी प्रकार के रॉ-मैटेरियल बनाने की सुविधाएं हैं। हमें जो भी चाहिए होता है, ब्रास, स्टील, एल्मुनियम यह सब निर्माणियों में तैयार कर लेते हैं । हम अच्छी तरह से प्रोग्रेस कर रहे हैं, हम अच्छी तरीके से सेनाओं को युद्ध एवं शांति दोनों समय सपोर्ट करते हैं। ‘वार एंड पीस’ के कार्यक्रम में हमारी भूमिका रहती है। जब आप युद्ध का नाम लेते हैं, जब आप दुश्मन के साथ युद्ध लड़ रहे होते हैं तो आप अपने हथियारों से ही युद्ध लड़ते हैं, इसके लिए हम विभिन्न प्लेटफार्म पर ट्रेनिंग देते हैं।
युद्ध के लिए गोला-बारूद की जरूरत पड़ती है जिसकी हम आपूर्ति करते हैं। जो भी गोला-बारूद या जितनी मात्रा में हम बनाते हैं इसे आप अगले चालीस-पचास वर्षों तक प्रयोग नहीं कर सकते हैं। गोला-बारूद को केमिकल और एक्प्लोसिव से भरा जाता है, एक्प्लोसिव की अपनी सेल्फ लाइफ पांच या पन्द्रह साल तक की होती है। इसकी लाइफ सीमित होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि आप अधिक मात्रा में गोला-बारूद जमा करके युद्ध के समय प्रयोग नहीं कर सकते हैं। आपको जिस चीज की जरूरत है वह यह है कि जब युद्ध हो तो आपको अपने मोर्चे पर इसका स्टॉक सैनिको के साथ रखना चाहिए। आपको यह स्टॉक मध्य क्षेत्र में भी रखने चाहिए और जब युद्ध छिड़ जाए तो सैनिक इसका उपयोग करेंगे। यही वह क्षमता है जो आर्डनेन्स फैक्टरियों के पास उपलब्ध है। जब कहीं युद्ध होता है तो हम इन स्टॉक्स का प्रयोग करने में समर्थ होंगे और यहां तक कि हमारे पास ऐसी क्षमता और इन्फ्रास्ट्रक्चर है कि हम सेना को सीधे मोर्चे पर एम्युनिसन पहुंचाने में सक्षम हैं।
सवाल: मि0 हरिमोहन युद्ध के समय में रक्षा उत्पादन में ऐसा सेटअप तैयार करने में आप अवश्य एक्सपर्टाईज रहे हैं ?
जबाब: जब आप युद्ध के समय विषम परिस्थितियों में युद्ध कर रहे होते हैं तो उस समय आपकी राजनीतिक स्थिति का व्ययवहार भिन्न हो सकता है जिसके बारे में आप पहले से नहीं सोच सकते अधिकतर स्थितियों में अधिकतर चीजों के लिए, विशेषकर उपभोक्ता वस्तुओं के लिए आपको आत्मनिर्भर होना चाहिए।
हमारे देश के योजनाकार और दृष्टाओं ने काफी सोच-विचार किया है और उन्होंने पर्याप्त क्षमताओं की योजना बनाई है ताकि देश युद्ध के समय जवाब देने में सक्षम हो सके। यहां तक कि हमारे पास कई एम्युनिशन फैक्टरियां हैं। एक ही एम्युनिशन के लिए हमारे पास दो फैक्टरियां हैं। एक फैक्टरी अलग जगह स्थित है और दूसरी फैक्टरी दूसरी जगह स्थिति है। मान लीजिए यदि एक फैक्टरी पर बम गिरा दिया जाता है या किसी कारणवश बन्द हो जाती है ऐसी स्थिति में हमारी दूसरी फैक्टरी हमें सपोर्ट करेगी। हम आपके साथ यह भी जानकारी साझा करना चाहते हैं कि हमने इतना अर्जित ज्ञान, तकनीक, नवाचार, इन्फ्रास्ट्रक्चर संचित कर रखा है कि 97 प्रतिशत एम्युनिशन जो हम बना रहे हैं वह पूरी तरह स्वदेशी है। कुछ ऐसे एम्युनिशन हैं जिनको हमने अभी विकसित किया है या हाल ही में उनकी तकनीक का अधिग्रहण किया है। यह संभावित आयात पर निर्भर हैं अन्यथा हम एम्युनिशन के संदर्भ में आर्डनेन्स फैक्टरी के नाम के प्रोडक्ट में स्वतः पर्याप्त हैं।
हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि इस देश द्वारा लड़े गए सभी युद्धों में आर्डनेन्स फैक्टरियां सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमेशा खड़ी रही हैं।
कारगिल युद्ध के समय हमारी फैक्टरियों ने 24 घंटे काम किया है। कर्मचारी घर नहीं जाते थे, उन्हें फैक्टरी के अंदर ही खाने-पीने की वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती थी और उन्होंने लगातार काम किया और उस समय जो एम्युनिशन का उत्पादन किया जाता था वह सीधे युद्ध के मोर्चे पर भेजा जाता था। यह स्थिति थी, यही कारण था कि हमारे जनरल मलिक, जो उस समय चीफ आफ आर्मी स्टाफ थे, ने कारगिल के समय सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि कुछ कंपनियां जिन्हें आर्डर दिए गए थे वह सप्लाई नहीं दे सकीं जबकि आर्डनेन्स फैक्टरियों ने सेना को पूरी तरह से सपोर्ट किया।
सवाल: जब हम हाईलाईट के बारे में बात करते हैं तो हम स्वदेशी डिफेंस हाडवेयर पर अथवा न्यू 100 प्रतिशत डिफेंस हार्डवेयर मेन्युफेक्चरिंग पर फोकस करते हैं, यही समय था जब आप पूरी तरीके से डीआरडीओ पर रिसर्च कार्य के लिए निर्भर थे। अब आर्डनेन्स फैक्टरियों के कारण मैं समझता हूं कि सभी 41 आर्डनेन्स फैक्टरियों के पास अपने स्वयं रिसर्च यूनिट हैं। अतः इसके बारे में बताइए ?
जबाब: 20 साल पहले तक हम विशुद्ध रूप से उत्पादन करने वाले संस्थान थे। हमारे पास केवल उत्पादन में विशेष योग्यता थी उस समय हम टेक्नालॉजी, डिजाईन, गाइडेंस या तो डीआरडीओ से लेते थे या विदेशी निर्माताओं से लेते थे। लेकिन हमने अनुभव किया कि यदि हमारे पास अपनी डिजाईन नहीं है, क्षमता नहीं है, यदि हम अपना खुद का तकनीकी विकास नहीं करते हैं तो हम आगे नहीं बढ़ सकते हम आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन संगठन नहीं बन सकते। वर्ष 2006 के दौरान हमने सरकार के साथ विचार-विमर्श करके एक निर्णय लिया कि हम अपना रिसर्च एंड डेवलपमेंट भी स्वयं करेंगे और हमने प्रोडक्ट डेवलपमेंट शुरू कर दिया है। हमने प्रोडक्ट्स को अपग्रेड करना शुरू कर दिया है और इसका परिणाम यह हुआ है कि हम मात्र मेन्युफेक्चरिंग संगठन से एक आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन संगठन बन गए हैं। अब हमारे पास अपनी खुद की डिजाइनिंग क्षमता है और तकनीकी नवाचार की क्षमता है।
आपके साथ जानकारी साझा करते हुए मैं खुश हूं कि वर्ष 2006 से 2020 के इन 14 वर्षों में जो भी उत्पादन हम कर रहे हैं उसका 25 प्रतिशत टर्नओवर स्वदेशी विकसित उत्पाद हैं और हमारा काम जारी है। हम कई क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। जल्दी ही हमारे नए से नए उत्पाद सामने आएंगे।
सवाल: मि0 हरि मोहन कृपया मुझे यह बताइए कि आप मेक इन इंडिया अभियान में डीआरडीओ के साथ कैसे कोआर्डिनेट कर रहे हैं ?
जबाब: वास्तव में आपके साथ खुलकर बात करना चाहूंगा कि आप 7 साल पीछे देखें तो हमारे पास इंडियन आर्मी, नेवी, एयरफोर्स का काफी वर्कलोड था और कभी ऐसा भी था आप जानते हैं कि हम डीआरडीओ को प्रोटोटाइप डेवलप करने में कोई रिस्पांस नहीं दे रहे थे। लेकिन दो साल पहले हमने एक निर्णय लिया कि हम पूरी तरीके से डीआरडीओ के साथ कोआपरेट करेंगे। डीआरडीओ जो भी प्रोडक्ट हमारे डोमेन में डेवलप करना चाहता है उन प्रोडक्ट्स के प्रोटोटाइप (नमूने) को हम पूरी तरीके से सपोर्ट करेंगे। हम इस सीमा तक जा रहे हैं कि जो भी नमूने डीआरडीओ बनाना चाहता है हम उसे अपनी लागत पर बनवाएंगे, इस प्रकार डीआडीओ प्रोडक्ट की लागत नीचे आएगी। होता यह है कि जो भी प्रोडक्ट वह डिजाइन करते हैं उसकी एक अलग प्रकार की क्षमता होती है लेकिन जो ज्यादा मात्रा में उत्पादन करना होता है उसकी एक अलग प्रकार की क्षमता होती है।
हां, होता क्या है कि एक पीस या दो पीस, पांच पीस प्रयोगशाला में बनाना बहुत सरल है लेकिन जब आपको एक ही पीस के हजार या लाख बनाने हों तो तकनीक पूरी तरीके से अलग होती है, तरीका भी पूरी तरीके से अलग होता है। जब आप किसी वस्तु की थोक में मेन्युफेक्चरिंग करना चाहते हैं तो उसकी तकनीक पूरी तरीके से अलग होती है। बल्क मेन्युफेक्चरिंग कम से कम लागत में होती है। देखिए एक पीस, दो पीस आप किसी भी लागत में बना सकते हैं लेकिन जब आपको हजार या लाख पीस बनाने होते हैं तो पूरी तकनीकी प्रक्रिया को आप्टिमाइज करना होता है। यह वह क्षेत्र है जिसमें हमें विशेष योग्यता है।
अतः हो यह रहा है कि आर्डनेन्स फैक्टरियों के इंजीनियर्स और डीआरडीओ के साइंटिस्ट्स प्रोडक्ट बनाने के लिए अब एक साथ मिलकर रिसर्च वर्क कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हमने डीआडीओ के साथ संयुक्त रिसर्च करके आर्मामेंट डेवलपमेंट रिसर्च इस्टेब्लिसमेंट लैब पुणे और हमारी स्माल आर्म्स फैक्टरी कानपुर ने 5.56 एमएम x 30 जेबीपीसी कार्बाइन विकसित की है इसको विकसित करने में लगभग 7 से 8 वर्ष लगे हैं। यह युद्ध क्षेत्र का वीपेन है जोकि हमारे सामने है। इन दोनों यूनिट के साइंटिस्ट्स और प्रोडकशन इंजीनियर्स ने एक साथ मिलकर काम किया है और इस वीपेन का निर्माण किया है।
यह हथियार अद्वितीय है और अद्वितीय केलिबर का है। यह केलिबर हथियार अपने प्रकार अद्वितीय हथियार है। वीआईपी सुरक्षा एवं शार्ट रेंज बैटल के लिए यह सर्वश्रेष्ठ हथियार है। इसका प्रयोग छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा नक्सलवादियों से मुकाबला करने के लिए बहुत ही कारगर तरीके से किया जा रहा है। सीआरपीएफ भी इस हथियार का प्रयोग कर रही है। बीएसएफ ने भी इस वीपेन को लेने के लिए इच्छा जाहिर की है। अन्य कई पुलिस फोर्सेज भी इसे लेने की इच्छुक हैं। यह हथियार हमारा स्वयं विकसित किया हथियार है यह शत-प्रतिशत स्वदेशी डिजाईन से तैयार किया हथियार है।
सवाल: कुछ तात्कालिक प्राथमिकताएं क्या हैं ?
जबाब: हम आपको कुछ और विस्तार से बताते हैं। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री ने देश से एक आह्वान किया है कि हमारे देश का 70 प्रतिशत रक्षा उपकरण जो हम प्रयोग कर रहे हैं उनको आयात किया जा रहा है। जहां तक डिफेंस इक्योजिशन की बात है यह लगभग 60 से 70 प्रतिशत इम्पोर्टेड है। कतिपय वस्तुएं ऐसी हैं जिनका हम देश में निर्माण कर रहे हैं। इनमें काफी संख्या में इम्पोर्टेड कंटेन्ट्स हैं, जैसे एयरक्राफ्ट जिसका निर्माण एचएएल में किया जा रहा है इसमें भी काफी इम्पोर्टेट कंटेन्ट्स हैं। कई तरीके के इलेक्ट्रानिक डिफेंस सिस्टम जिनको हम बना रहे हैं उनमें भी इम्पोर्टेड कंटेन्ट्स हैं। इस तरह कुल इम्पोटेड कंटेन्ट लगभग 60 से 70 प्रतिशत है।
अब हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया है कि हमें डिफेंस हार्डवेयर और इक्यूपमेंट्स इम्पोर्ट करना बंद कर देना चाहिए। आइए देश में टेक्नालॉजी लाएं और देश में ही उत्पादन करें और इस दिशा में काफी काम हो रहा है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि काफी संख्या में प्राइवेट इंडस्ट्रीज डिफेंस बिजनेस में रूचि दिखा रही हैं।

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