रास्तों पर जिंदगी बाकायदा आबाद है। |
सुबह साइकिल पर निकले। शाहजहांपुर में पहले दिन। शुरुआती पैडल डगमगाते हुए। इसके बाद सम पर चलने लगी।
एक मोटरसाइकिल पर तीन बच्चे सवारी करते हुए जा रहे थे। मास्क अलबत्ता लगाए हुए थे। मन किया कि रोककर कहें -'मोटर साइकिल पर एक के साथ एक का चलन है। तुम दो क्यों बैठे हो?' जब तक मन की बात पर अमल करें तब तक वे बाइक बहादुर अपनी बाइक रोककर गपियाने लगे। मन की बात पर अमल न हो सका। वैसे भी मन की बात सिर्फ सुनने के लिए होती हैं। अमल में कौन लाता है।
गुलमोहर का पेड़ लाल सुर्ख फूल लादे सड़क किनारे खड़ा था। हम उसके बगल से निकल गए बिना उसकी तारीफ किये। गुस्से में इतनीं जोर से हिला पेड़ कि कुछ बुजुर्ग गुलमोहर के फूल डाली-च्युत होकर सड़क पर आ गिरे। हड्डी-पसली बराबर हो गयी होगी फूलों की। अब फूलों के हड्डी के डाक्टर तो होते नहीं जो उनको भर्ती कराए कहीं। हम उनको अनदेखा करके निकल लिए।
सड़क पर टहलते लोग मुंह पर मास्क लगाए थे। कुछ कोई कपड़ा बांधे थे। फुटपाथ पर टमाटर, खीरा, आलू आदि बोरों में बंधे पड़े थे। जैसे उनको लाकडाउन में सामाजिक दूरी कायम न करने के अपराध में गिरफ्तार करके हाथ-पैर बांध कर डाल दिया गया हो। सब्जियां बोरों का सामूहिक मास्क पहने चुपचाप फुटपाथ पर पड़ी थीं।
कोरोना काल में सामाजिक दूरी बनाए रखना जरूरी हो गया है। याद आया कि आसमान में तारे, आकाशगंगाये सदियों से एक दूसरे से दूर भागते जा रहे हैं। ग्रह, नक्षत्र आपस की दूरी बनाये रहते हैं। तमाम साल साथ रहने के बावजूद कोई नजदीक नहीं आता। इसीलिए दुनिया बनी हुई है। लगता पूरी कायनात कोरोना ग्रस्त है। कोरोना से बचाव के चक्कर में ही तारे , आकाश गंगाएं एक दूसरे से दूरी बनाए हुए हैं। ग्रह , उपग्रह दूरी बनाए हुये हैं। धरती ओजोन-मास्क पहने हुए है। साफ बात है कि प्रकृति बहुत पहले से ही कोरोना से बचाव के उपाय अपना रही है। इंसान को तब अक़्क़ल आई जब मरना शुरु हुआ।
जीएफ कालेज, एसपी कंपाउंड , डॉक्टर शुक्ला का दवाखाना देखते हुए सड़क नापी। सड़क, पेड़, हवा, सब चुपचाप हमें गुजरते देखते रहे। चर्च भी सुनसान था। डीएम कम्पाउंड के आगे गोविंद गंज क्रासिंग बन्द थी। क्रासिंग का बन्द फाटक रेलवे लाइन पर मास्क की तरह जड़ा हुआ था। एक फल की दुकान खुली हुई थी। कोई ग्राहक नहीं आया था उस समय तक।
फल की दुकान से याद आया कि कल दिल्ली में एक आम वाले के आम लोगों ने लूट लिए। शायद लूटने वाले उसे अपने लिए लंगर मुफ्तिया व्यवस्था समझे हों। लेकिन आम वाले ने रोका-टोंका होगा, तब भी नहीं माने। हो सकता है वे पता लगने के बाद न्यूटन के जड़त्व के नियम को इज्जत देने के लिए लूटने के काम में लगे रहे। नियम कहता है -' कोई वस्तु अपनी अवस्था में तब तक बनी रहती है जब तक उस पर बाहरी बल न लगाया जाए।' लूटना शुरू करते ही वे इंसान से आइटम में बदल गए होंगे। कोई रोकने वाला नहीं था उनको इसलिए लूटते रहे। 21 वीं सदी में 17 वीं सदी के नियम का पालन करते हुए मन से भी वहीं पहुंच गए।
इस लूट की घटना से लगता है कि कोरोना ग्रस्त लोगों ज्यादा कोरोना उन लोगों को जकड़ रहा है जो इससे मुक्त हैं। पूरे समाज को कोरोना हो रहा है। बात, व्यवहार, आचरण और सोच में लोग बिना कोरोना की चपेट में आये सामाजिक आई सी यू में पहुंचे हुए लगते हैं।
पोस्ट आफिस के पास मां-बेटी दूर-दूर खड़ी हुई फोन पर बतिया रहीं थी। बाबा जी मोड़ पर आते दिखे। लोग मैदान पर कार चलाना सीख रहे थे।
लान पर घास के मैदान पर धूप खिली हुई थी। खिलखिला रही थी। उसको देखकर लगा कि भले ही पूरी कायनात कोरोना ग्रस्त हो गई हो लेकिन अपन के आसपास अभी भी जिंदगी पूरी तरह आबाद है।
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