Thursday, July 16, 2020

बहुत दिन बाद आये

 

मिठाई की दुकान के पास सड़क पर पंकज बाजपेयी


कल पंकज बाजपेयी से मिलना हुआ। बहुत दिन के बाद। सुबह कहीं टहल न जाये अपने ठीहे से इसीलिए जल्दी निकल लिए। बीच सड़क पर डिवाइडर के पास दिखे। सड़क पार करते हुए।

हमको देखते ही तसल्ली की चाल लपककर चलने में बदल गयी। पास आते हुए बोले-'बहुत दिन बाद आये। कहां चले गए थे?' पास आकर सोशल डिस्टेंसिंग की इज्जत करते हुए हाथ 45 डिग्री झुकाकर दूर से ही पैर छुए। पंकज बाजपेयी यह 'दूर प्रणाम' का तरीका कोरोना प्रकोप के बहुत पहले अमल में लाते रहे हैं। क्या उनको कोरोना के आने का पूर्वाभास था ? क्या पता , पता हो। उनके आदमी सीआईडी में हैं। उनको सब पता रहता है।
बताया कि शाहजहांपुर चले गए हैं तो बताया -'शाहजहाँपुर, बरेली के पास।' मतलब उनको जगह का अंदाज है।
पास खड़े होकर पूछा -'माल किधर है?'
माल मतलब -जलेबी, दही।
हम बोले -'ला नहीं पाए आज।'
बोले -'कोई बात नहीं। तुम हमको नमकीन, मिठाई, बिस्कुट दिला देना। आज बहुत दिन बाद आये हो। खूब चीजें लेंगे।'
हम बोले -'दिलाएंगे। आओ पहले चाय पीते हैं।'
चाय की दुकान पर लोगों ने बताया -' पिछले दिनों दस-पन्द्रह दिन बीमार रहे। घर में रहे। फिर अपने आप ठीक हो गए। कमजोर हो गए। अबकी आप बहुत दिन बाद आये।'
कोरोना के चक्कर में दुनिया कितनी ही बदल गयी हो लेकिन पंकज बाजपेयी वैसे ही। खुला सीना, खुला चेहरा। ऐसी की तैसी कोरोना की।
वैसे 'ऐसी की तैसी कोरोना की' वाला जज्बा हर जगह देखने को मिला। जिधर देखो उधर लोग खुले मुंह आते-जाते बोलते,बतियाते दिखे। पहले जैसे लोग सर पर कफ़न बांध कर निकलते थे वैसे अब मुंह खोल कर घूमते हैं। कोरोना आएगा, चेहरे से टकराएगा। दुम दबाकर , घायल होकर भाग जाएगा। कानपुर के किसी आडियो में यह किस्सा चला भी -'कोरोना यहां आकर फंस गया है। पान मसाले के बीच सांस की नली में उसका दम घुट रहा है। बचेगा नहीं कानपुर में कोरोना।'
पंकज बाजपेयी से पूछा कि मास्क क्यों नही लगाते तो बोले -'गन्दगी हो जाती। नुकसान करता है। इसलिए नहीं लगते।'
कोहली के हाल पूछे। बच्चे पकड़वाने वाले कोहली। बोले -'वो कोहली पकड़ गया। अब केवल विराट कोहली बचा है। वह खेलता उससे कोई खतरा नहीं।'
मोबाइल बोले -'बढ़िया वाला लेव। हम तुमको दिला देंगे। गाड़ी बढ़िया है।'
काफी देर इधर-उधर की बातें हुई। फिर सामान की बात चली। जो बोले वो दिलाया। फिर बोले -'इससे कह दो हमको समोसे दे देगा जब बनेगें। और ये वाली मिठाई।' वह भी हो गया।
इसके बाद बोले कि इससे कह दो हमको रोज मिठाई, समोसे दे दिया करेगा। हमने कहा ठीक। दुकान वाले नीरज बोले -'हम इनको 15 रुपये का सामान रोज दे दिया करेंगे।'
पंकज बोले- ' पन्द्रह नहीं पच्चीस।'
बात आखिर में बीस पर टूटी। तय हुआ कि बीस रुपये का सामान नीरज पंकज को दे दिया करेंगे। देने के समय कभी-कभी बात भी कराएंगे।
पंकज और नीरज। दोनों का मतलब एक -कमल। नीरज पोस्ट ग्रेजुएट हैं। नौकरी की तलाश में कई जगह फार्म भर चुके। कहीं होता नहीं, कहीं इम्तहान कैंसल हो जाता। कोरोना ने दुकानदारी भी चौपट कर रखी है। देश की पूरी जनता के यही हाल। बेहाल है।युवाओं के लिए तो और कठिन काल।
चलते समय पंकज बोले -'हमको जलाने वाले नोट देकर जाओ। हम तुमको सर्टिफिकेट देंगें।'
हमने पूछा -कित्ते रुपये?
बोले -'पचास।'
हमने दस-दस के नोट गिने। चालीस हुए। पूछा -'हो गए पचास।'
पंकज बोले -'हां।'
हमको चलते देख पंकज ने 'दूर प्रणाम किया।'
हम चल दिये। दस रुपये मारकर पंकज के। पंकज लपककर सड़क पार करके दूसरी तरफ चल दिये।
वो तो कहो पंकज सहज विश्वासी हैं। हमारी इज्जत भी करते हैं। किसी चंट सोशल मित्र के साथ ऐसा किया होता तो वो अब तक स्क्रीन शॉट, वीडियो लगाकर हमारी जितनी भी इज्जत है उसको उतार के उस पर अपनी बहादुरी और सच्चाई का झंडा फहरा चुका होता।
पंकज बाजपेयी की बातें लगभग एक जैसी ही होती हैं। कोहली, खतरा, जासूस, नोट जलाना, सामान, मिठाई, नमकीन, मम्मी जी।लेकिन उनसे मिलना हर बार नया लगता है। कम से कम समझदारों की तरह चालाक तो नहीं। एजेंडा साफ है -'सामान दिलवाओ, पैसे देओ।' नहीं भी मिला तो यह नहीं कि नाराज होकर बात न करें। यह सब चोंचले चालाक जनप्रतिनियों के होते हैं जो जनता की सेवा का मौका कब्जियाने के लिए जनता की ऐसी-तैसी करते रहते हैं।
राजतंत्र में राजा लोग राज्यों पर कब्जे के लिए आक्रमण करते थे। तलवार, तोपखाने, सैनिक का प्रयोग होता था। लोकतंत्र में जनता की सेवा के मौके लूटने के लिए युध्द होते हैं। पैसा, मीडिया और माफिया इस युध्द के हथियार हैं।
हर बार कु तरह इस बार भी पंकज बाजपेयी ने सिर्फ बच्चों जैसी जिद की -'नहीं, दिलवाओ, हम लेंगे। लेकिन फिर हमने जो कहा उसको मान लिया।' आज के समय में ऐसा सहज व्यवहार भी कहां मिलता है लोगों में। जो ऐसे सहज रहते हैं उनको लोग खिसका हुआ कहते हैं। समाज का संतुलन बनाये रखने के लिए ऐसे खिसके हुए लोगों की बहुत जरूरत है।
हम वापस लौट आये।

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