सुबह हुई। गर्म पानी के बाद चाय पी गयी। ऑनलाइन अखबार पढा। फेसबुक 'वॉक' किया। 'व्हाट्सएप वर्क आउट' किया। 'व्हाट्सएप वर्क आउट' मल्लब , गुड मॉर्निंग, सुप्रभात, हाउ आर यू, 'दिन बढ़िया बीते' घराने की कसरतें । कुछ ही देर में 'डिजिटल पसीने' से लथपथ होकर बाहर आ गए।
अखबार में कोरोना कहर के किस्से पढ़े। शहर में कल 77 केस मिले। उनमें 9 हमारी निर्माणी में। 4 अस्पताल में। 5 फैक्ट्री में। ये सब रैंडम सैम्पलिंग के बाद निकले परिणाम हैं। कल अस्पताल सैनिटाइज हुआ। आज फैक्ट्री होगी।
जो लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए उनके साथ रहे लोगों में सहज चिंता है। अरे इसके साथ तो हम भी रहे। उनके खुद के टेस्ट निगेटिव आए हैं लेकिन टेस्ट सैम्पल लेने के दो दिन के भीतर वे उनके सम्पर्क में रहे। क्या पता इस बीच फिर फिर संक्रमित हो गए हों। उनमें डर व्याप्त है। सबमें व्याप्त है। बचाव के लिए कुछ डर भी जरूरी है।
कोरोना के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। न जाने किसके सम्पर्क में आकर कोरोना हो जाये पता ही नहीं चलता। कोरोना टेस्टिंग का कोई फौरन वाला तरीका निकल आये तो बढ़िया। 'कोरोना चुम्बक' की तरह। आकर्षण-प्रतिकर्षण से फौरन पता चल जाए कोरोना मरीज। उनको अलग करके जरूरत हो तो इलाज किया जाए।
सब तरह के उपायों में कोरोना से बचाव के तरीको में मास्क का उपयोग, सुरक्षित दूरी , साफ़-सफ़ाई और इसके अलावा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना ही है। हर इंसान को कोरोना मरीज समझकर व्यवहार किया जाए तो ही बचाव है।
मास्क के प्रयोग की आदत पड़ने में बहुत देर हो रही है। लोग कुछ देर लगाते हैं फिर उतार देते हैं। मीटिंग में भी पढ़े-लिखे लोग तक बात करते समय मास्क मुंह से उतारकर गले मे, गर्दन में हैंगर की तरह लटका लेते हैं। चश्मे की तरह उतारकर मेज पर धर लेते हैं।
कामगारों की स्थिति तो और चुनौतीपूर्ण। कुछ मास्क लगाते हैं। बहुत नहीं लगाते। न लगाने वाले कामगार कहते हैं -'सांस नहीं लेते बनती, भाप बनती है, अभी उतारा, अब्बी पहन ही रहे थे, बस जरा उधरै गए थे।' एक मास्क , न पहनने के बहाने हजार। बरतने में समाज के लिए अच्छी होने के बावजूद ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता को लोग उतने मन से नहीं अमल में लाते। इसी तरह मास्क को जरूरी समझने के बावजूद अभ्यास में नहीं लाते। कोरोना से बचाव के लिए इसकी आदत सबको डालनी होगी।
हम जब राउंड पर जाते हैं तो लोग अपने-अपने मास्क जेब से निकालकर, डोरी से उतारकर , मेज से उठाकर मुंह पर चस्पा करने लगते हैं। जैसे गावों में ससुर, जेठ को आते देखकर बहुएं न चाहते हुए भी घूंघट कर लेती थीं वैसे ही कामगार लोग भी हमको देखकर मास्क धारण कर लेते हैं। खड़े होकर लोगों को इसकी जरूरत समझाते हैं तो उधर से भी इतनीं समझदारी की बातें आती हैं जिनको सुनकर लगता है ये तो बिना मास्क रह ही नहीं सकते। लेकिन सच हमारे लगने से उल्टा है।
सुबह फिर बाहर सड़क पर आकर खड़े हो गए। लोग मास्क, बिना मास्क, हेलमेट/बिना हेलमेट सड़क पर गुजर रहे थे।
एक आदमी साइकिल के हैंडल पर कुछ चादरें लिए 'चिंतन मगन' चला जा रहा था। उसके चेहरे पर कमाई की चिंता थी। दो साइकिल वाले बिना मास्क आपस मे बतियाते चले जा रहे थे। चौकोर झोले लटके हुए हैंडल पर। पीछे एक दूसरा साइकिल वाले मुंह में जकड़े मसाले को कुचल-कुचल कर निपटाते हुये जा रहा था।
एक महिला फोन पर बतियाते हुए चली जा रही थी। बिना मास्क। हमारी ही तरफ आ रही थी। हमने मन में ठान लिया कि बगल से गुजरेगी तो मास्क न पहनने के लिए टोकेंगे। हम ठने हुए पर अमल कर पाते इसके पहले महिला की बातचीत पूरी हो गयी। उसने मोबाइल झोले में रखा और झोले से मास्क नुमा कपड़ा निकालकर चेहरे पर धारण कर लिया। हम टोंकने से वंचित रह गए। आपदा को अवसर में न बदल पाए।
महिला को टोंकने से वंचित रह जाने की कसर हमने दो मोटरसाइकिल वालों को बिना हेलमेट गाड़ी चलाने के लिए टोंककर पूरी की। एक तो मुंह में भरे मसाले के चलते कुछ नहीं बोला, लेकिन दूसरे ने सिद्धान्तत: मेरी बात से बिना अपराधबोध के सहमत हुए बताया कि हेलमेट था उसके पास लेकिन उसका एक दोस्त ले गया है, जिसका तबादला कानपुर हो गया है। संयोग कि तबादले वाले उसके साथी को कानपुर के लिए रिलीज करने का आदेश हमने ही दिया था। मतलब हेलमेट धारण न करने के अपराध के अप्रत्यक्ष दोषी हम ही साबित हुए।
सड़क बारिश से धुली थी। पार्क में लोग नहीं थे। एक ऑटो को दस साल के करीब का बच्चा उघारे बदन चलाते हुए चला जा रहा था। बड़ा होने के पहले ही जिम्मेदार हो गया बच्चा। सब जगह स्कूल बंद हैं लेकिन जिंदगी का स्कूल चल रहा है।
ऊपर आसमान में सूरज भाई भी दिखे नहीं। उनका भी लगता है लाकडाउन में वर्क फ्रॉम होम चल रहा है। सूरज भाई की बात से याद आया कि पूरी कायनात के तारे, आकाश गंगाएं एक दूसरे से दूर भागती जा रही हैं। क्या कायनात को भी कोरोना हुआ रखा है? क्या आकाश पिंडो का एक दूसरे से दूर भागते चले जाना 'सामाजिक दूरी' बनाए रखने का उपक्रम है?
यह भी कि ये जो ग्रह,उपग्रह, नक्षत्र एक-दूसरे की परिक्रमा करते फिर रहे हैं सदियों से वे क्या क्वाराइनटैंन किये गए हैं। एक दूसरे से सुरक्षित दूरी पर रहते हुए टहलने के आदेश के साथ।
इसी क्रम में सोचते रहे कि क्या गुरुत्वाकर्षण भी आकाश पिंडो के मास्क की तरह है। जैसे मास्क इंसान के मुंह से निकली छींटों को बाहर जाने से रोकता है वैसे ही गुरुत्वाकर्षण के चलते इंसान और चीजों को अपने हलके से बाहर जाने से रोकते हैं।
इसी तरह की न जाने कितनी उलट-पुलट बातें सोचते हुए इतना समय बीत गया। समय किसी के लिए रुकता भी कहां है। सब कुछ बीतने के लिए होता है। कोरोना काल भी खत्म होगा। तब हम इसके समय को अलग तरह याद करेंगे। लेकिन वह समय आने तक हमको सुरक्षित रहना होगा। मास्क पहनना होगा, दूरी बनाना होगा, सफाई रखनी होगी और अपनी प्रतिरोधक क्षमाता बढ़ानी होगी।
इसके बिना गुजारा नहीं होना।
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