सुबह साइकिल का ताला खोलने के लिए चाबी घुमाई। खुला नहीं। अकड़ गया। आगे-पीछे किया तो और अकड़ गया। लगा अब खुलेगा नहीं। तुड़वाना पड़ेगा। एक और कोशिश की तो हाथ में आ गया। साइकिल से समर्थन वापस ले लिया। लगता है कोरोना के डर से 'सामाजिक दूरी' बनाने के लिए निकल लिया बाहर। जान है तो जहान है।
दरबान गुमटी पर बैठा मोबाइल में गाना सुन रहा था। घण्टी बजाने पर जोर से नमस्ते किया। हमें लगा कहीं कंधा न उखड़ गया हो। पर वह सलामत था।
सड़क पर लोग टहल रहे थे। पार्क में कसरत कर रहे थे। एक आदमी हाथ ऊपर किये जिस पोज में खड़ा था उसे देखकर लगा वजन उठौवा कसरत में आसमान को उठा लिया हो। नीचे करने में हिचक रहा था वह। कहीं किसी के सर पर न गिर पड़े आसमान।
एक भाई जी सड़क पर टहल रहे थे। एक ही हाथ हिला रहे थे। दूसरा लटका हुआ था। शायद पैरालिसिस के चलते दूसरा हाथ बेकार हो गया हो। दोनों हाथ का काम एक हाथ से ही करने से मामला धीमा हो गया था। चेहरे पर चिंता। इनका हाथ तो पैरालिसिस के चलते गड़बड़ हुआ। लेकिन समाज में तमाम लोग बिना पैरालिसिस ही 'लटक मुद्रा' धारण कर लेते हैं। खून मिल ही रहा है दिल से।काहे को हिलना डुलना । इन्हीं 'लटक मुद्रा' वाले लोगों के चलते समाज को पैरालिसिस हो रहा है।
एक महिला अपनी 'पच्चल' हाथ में सड़क पर टहल रही थी। शायद चप्पल टूट गयी हो या फिर उसको डर हो कि कहीं उसकी चप्पल से सड़क गन्दी न हो जाये।
दो लड़के मोबाइल हाथ में लिए बेंच पर बैठे कुछ सुन-सुना रहे थे। उनके सामने एक लड़का हाथ ऊपर किये धीमे दौड़ रहा था मानों प्रकृति ने उसको 'हैंड्स अप' बोल दिया हो। वह जान के खतरे को देखते हुए हाथ ऊपर किये दौड़ा जा रहा था।
बेंचों पर रखे कांटे वैसे ही थे। कांटे भी सूख गए थे। मुरझाये हुए कांटे शायद पेड़ से अलग होने के दुख में दुखी हों। अपनी जड़ से अलग होने का दर्द कांटे को भी होता है। 'दहिजरा कोरोना' के चलते कांटों को पेड़ से अलग होना पड़ा। क्या पता गाना भी गा रहे हों:
'हमसे का भूल भई, जो ये सजा हमका मिली।'
आगे एक भाई जी फुटपाथ पर अंगौछा बिछाए कसरतिया रहे थे। अनुलोम-विलोम करते हुए सड़क की तरफ ताकते भी जा रहे थे। शायद कहना चाह रहे हों -'हल्के में मत लो हम योगा कर रहे योगा। अनुलोम-विलोम।'
लेकिन सड़क पर केवल टहलने वाले और योग करने वाले ही नहीं थे। एक भाई जी अपनी बहुत स्वस्थ कमर को दोनों तरफ हिलाते हुए शरीर से अलग टाइप करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन कमर 'जनम-जनम का साथ है, हमारा-तुम्हारा' कहते हुए शरीर से जुड़ी रही। हमारे दिमाग में गाना बजने लगे -'आरा हीले, छपरा हीले, कलकत्ता हीले ला, कि तोहरी लचके जब कमरिया'।
तन्वंगी कमर के लिए आरक्षित गाना स्वस्थ कमर पर आरोपित करते हुए अटपटा सा लगा। लेकिन फिर कमरों के समानता के सिद्धान्त की बात याद आ गयी। हर तरह की कमर को लचकने का एक समान अधिकार है।
मोड़ पर दो लड़के मोटरसाइकिल धकियाते हुए ले रहे थे। हमें लगा पेट्रोल खत्म हो गया होगा। लेकिन पूछा तो बताया कसरत कर रहे थे। मोटरसाइकिल धकियाते हुए वर्क आउट। हमको लगा कि और ज्यादा वर्कआउट करना हो तो कार धकियाते निकलने लगेंगे लोग। पेट्रोल के बढ़ते दाम इसमें सहयोग भी करेंगे।
बहरहाल हम साइकल पर ही वर्क आउट करते हुए वापस आ गए। सूरज भाई इतनी जोर से चमकते हुए मेरे मुंह पर लाइट मार रहे थे कि चेहरा चौंधिया गया अपन का। झटके मुंह फेर लिया। बगीचे की हरियाली सुकून देती लगी। सूरज भाई हमारी पीठ पर किरणों, रोशनी और उजाले की धौल मारते हुए हंसने लगे। पूरी कायनात खिलखिला उठी। सुबह हो गयी।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10220641121191423
No comments:
Post a Comment