1. हमारे देश में छोटा आदमी हमेशा ’सैम्पल’ के काम आता है, और कटता है बड़ों की भलाई के लिये।
2. सिंचाई विभाग में अगर करोंड़ों के घोटाले का हल्ला हो, तो १-२ क्लर्कों को तैयार रहना चाहिये, ’सैम्पल’ के रूप में बलिदान के लिये। बड़े इन्जीनियर , जो लाखों खा रहे हैं और ठेकेदार जो लाखों के झूठे बिलों का भुगतान करा रहे हैं, नहीं पकड़े जायेंगे।
3. इस व्यवस्था में कोई अकेला पैसा नहीं खाता। सब मिलकर खाते हैं- खानेवाले भी और उन्हें पकड़ने वाले भी। इसलिये वास्तविक बड़े भ्रष्टाचारी कभी नहीं पकड़े जायेंगे। पकड़े जाने लगें तो इस देश के तीन-चौथाई मन्त्री, सांसद और विधायक जेल में होंगे। लोकतन्त्र का ऐसा नाश भला कौन देशभक्त करना चाहेगा।
4. भ्रष्टाचार मिटाने की जितनी मशीनरी हैं, जितने विभाग हैं, सब खत्म कर दिये जायें। इनके रहते भ्रष्टाचार मिट नहीं सकता , क्योंकि इनकी समृद्धि के लिये भ्रष्टाचार जरूरी है। इन विभागों को बन्द करने से अरबों रुपये बचेंगे, जिनसे सिंचाई और बिजली की योजनायें चल सकती हैं।
5. भूत के पांव पीछे होते हैं, ऐसा कहा जाता है। कुछ लोगों के दिमाग के पांव पीछे होते हैं- ये मानसिक भूत हुये। इनके लिये जो बीत गया, वह परम श्रेष्ठ होता है, वर्तमान अत्यन्त हेय और उनकी यह कृपा है कि वर्तमान में जीकर वे उसे गौरवान्वित कर रहे हैं।
6. हर युग के भूत से वर्तमान की कुश्ती हुई है। कालिदास की अवहेलना जब केवल उनकी नवीनता के कारण होने लगी, तो उन्हें ललकारना पड़ा कि जो पुराना है वही श्रेष्ठ नहीं है।
7. कुछ लोग वर्तमान के सूर्य के प्रकाश में काम नहीं करना चाहते; भूत की चादर ओढ टांगे फ़ैलाकर सो जाते हैं। बौना आखिर अपने पूर्वज की छ: फ़ुटी तस्वीर कब तक दिखाता फ़िरेगा और इससे उसका कद कैसे बढेगा?
8. जो जितना सभ्य है, वह उतनी ही अधिक शोभा साधने की फ़िक्र में रहता है।
9. लोग भगवान को उस मूर्ख धनवान जैसा मानते हैं, जो जरा सी चापलूसी से फ़ूलकर थैली खोल देता है और जिसे कोई भी बुद्धू बना सकता है।
10. जो दूसरे के लिये है, वह खराब होना ही चाहिये। जो अच्छा है वह वह अपना है। खोटी सुपारी पूजा में , खोटा नारियल होली में, सड़ा माल भिखारी के कटोरे में, खोटा पैसा भिखारी के हाथ में।
11. इस जमाने में इन्द्र दधीचि के पास हड्डी मांगने आते तो दधीचि भी किसी सर्जन को बुलाकर कहते- देखो मेरे शरीर में ’फ़ाल्स रिब्स’ हैं, उनमें से एकाध टुकड़ा इसे काट दो, जिससे ये टल जायें। आज दानवीर कर्ण होता तो वह भी जाली नोट रखता। हरिशचन्द्र तो बिना अदालत एक कौड़ी भी उस ब्राह्मण को न देते।
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