1. ज्ञानी कायर होता है। अविद्या साहस की जननी है।
2. आत्मविश्वास कई तरह का होता है- धन का, बल का, ज्ञान का। मगर मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।
3. सच्चा क्रांतिकारी कण्डक्टर, गेटकीपर, चपरासी वगैरह से ही संघर्ष करता है।
4. भारतीय लेखक एक साथ दो युगों में जीता है – मध्य युग में और आधुनिक युग में। वह कुम्भनदास की तरह घड़े बनाकर नहीं जीता, पर कहता है –’सन्तन कहा सीकरी सों काम।’ वह रैदास की तरह जूते नहीं सींता , न कबीर की तरह कपड़े बुनता है –मगर बात उन्हीं के आदर्शों की करता है।
5. आप तो बाजार में खुद माल की तरह बैठे हैं और खरीदार को दोष देते हैं कि कम्बख्त हम लोगों को खरीद रहा है।
6. सरकार का विरोध करना भी सरकार से लाभ लेने और उससे संरक्षण प्राप्त करने की एक तरकीब है।
7. सरकारें खुद चाहती हैं कि कुछ लेखक उनका विरोध करें। वे उन्हें पहचान लें और जो चाहिये दे दिवा दें।
8. अतिक्रांतिकारिता की बात करने वाले बुद्धिजीवी अक्सर –बुर्जुआ के एजेन्ट होते हैं। वे सामाजिक क्रांति की तर्कपूर्ण , योजनाबद्ध और यथाविधि प्रक्रिया में अडंगा डालते हैं।
9. पेचिश तो वादे करने वालों को हो रही है और बाथरूम के किले में बन्द होकर वे बचाव कर रहे हैं। बाथरूम पर हमला नहीं होता। इतनी लड़ाइयां हुई हैं, किले तोड़े गये, पर इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं है कि बाथरूम पर गोला दागा गया। हिटलर तो बेवकूफ़ था। आत्महत्या क्यों की? बाथरूम में घुस जाता।
10. बहादुरी की परिभाषा क्या है? डर हो तब दबे रहना और जब डर न हो, तब लट्ठ घुमाना।
11. क्या एक बेईमान की जगह पर दूसरा फ़िट करना ही दूसरी आजादी है, क्रांति है? क्या हम जुते हुये घोड़े हैं? पहले कोचवान को दूसरे ने ढकेल दिया और खुद बैठकर हांकने लगा। चाबुक मारकर कहता है –दौड़ रे घोड़े , क्रांति हो गयी। हमारी शायद यही नियति है कि एक बेईमान के हाथ से दूसरे बेईमान के हाथ में ट्रान्सफ़र होते रहें। यह बेईमानी का ’रोलिंग प्लान’ अनवरत योजना है।
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