सूरज भाई सुबह-सुबह जम गए हैं आसमान में। आलथी-पालथी मार के बैठे हैं। आंगन में पंखा डुलाते हुए बैठी बुढ़िया की तरह हुकुम दे रहे होंगे -'ये छुटकी तुम इधर चलो, बड़की तुम चलो जरा भारत दैट इज इंडिया पर रोशनी फैला के आओ, ये मंझली तुम्हारी शिकायत मिली है कि तुम बहुत धीरे रोशनी करती हो। सबको बराबर रोशनी बांटना तुम्हारा काम है। रोशनी कोई राहत सामग्री थोड़ी है जो नेताओं, अधिकारियों की तरह जित्ती बांटो उससे ज्यादा खुद के लिए रख लो। आइंदा ऐसा किया तो किसी ब्लैकहोल में भेज दूंगा।'
मंझली मनचली नजरों से सूरज भाई को निहार रही है। उसको पता है कि सूरज भाई उसको कितना चाहते हैं। चुनाव में चंदा देने वालों को सरकार बनने पर उनके भले लिए नीतियां बनाने वाले जनप्रतिनिधियों से भी ज्यादा प्यार करते हैं सूरज भाई मंझली को। वह सूरज भाई को 'अदा पर फिदा' नजरों से निहारती रही। सूरज भाई भी उनको कनखियों से देखते हुए अनदेखा करते रहे। इस अलौकिक प्रेम की शोभा का वर्णन करने के लिए शब्द नहीं हैं किसी कवि के पास। इसके लिए किसी लफ्फाज नेता की सेवाएं लेनी पड़ेंगी।
ये तो अभी की बात। सुबह जब निकलने को हुए तो ऐसे दबे पांव अंधेरे की चादर आहिस्ते से हटाकर आये धरती की तरफ जैसे पुराने जमाने के आशिक अपनी माशूक से मिलने जाते थे। लेकिन कितना भी दबे पांव आये यहां की चिड़ियां तो जान ही गयी कि सूरज भाई आ गए। वे चहचहाते हुए गुडमार्निंग टाइप करने लगीं। दबे पांव आने वाले सूरज भाई चिडियों की चहचाहट सुनकर लाज-लाल हो गए। उनकी देखा-देखी दिशाएं भी लाल हो गयी। कुछ देर बाद सब सूरज भाई सामान्य हो गए। दे रोशनी के थान के थान धरती और उड़ेलने लगे। पूरे 12 घण्टे के वियोग की कमी पूरी करने लगे। धरती को भी 'रोशनी चम्पी' कराने में मजा आ रहा था।
उधर सुबह का हूटर बजा। पूरे शहर में हल्ला हो गया होगा। हूटर कर्मचारियों के लिए निर्माणी आने जाने का इशारा है। सुबह आने के लिए शाम को जाने के लिए। सुबह तो लोग आहिस्ते-आहिस्ते आते हैं। शाम को जाते समय हूटर बजते ही भीड़ की भीड़ फटाक से निकल लेना चाहती है।
हूटर से कायनात की शुरुआत की बात जुड़ती है। लोग कहते हैं कि सृष्टि की शुरआत बड़े धमाके से हुई। धमाका हुआ और ब्रहाण्ड बन गया। तारे-ग्रह-नक्षत्र बने। एक दूसरे से दूर भागते हुए पसरने लगे।
ऐसा लगता है कि ये जो बिग बैंग है न वो कायनात का हूटर होगा। इधर बजा उधर कायनात के कारखाने में काम करने वाले सारे तारे-ग्रह-नक्षत्र कांजी हाउस का दरवज्जा खुलने ओर भाग निकलने वाले जानवरों की तरह अदबदा कर भड़भड़ाते हुए निकल लिए होंगे। पूरी कायनात में फैल गए होंगे। बाद बाकी उसी से सृष्टि का निर्माण हुआ।
सुबह उठकर टहलने निकले तो हाथ का बैंड बता रहा कि रात 6घण्टा 14 मिनट सोए। उसमें 2 घण्टे 12 मिनट गहरी वाली नींद। बाकी हल्की नींद। मने नींद में भी दूध और पानी की तरह मिलावट। हल्की और गहरी नींद का गठबंधन भी बढ़िया दूध और पानी शादी में आराम वाली पत्ती और सपनों की इलायची डालकर बनी चाय की तरह है। पीकर आनन्द आ जाता है।
सपने की बात से याद आया कि रात फिर गड़बड़ सपना देखे। पूरा तो नहीं याद लेकिन कुछ ऐसा कि इम्तहान आ गया है। तैयारी नहीं है। कुछ आता नहीं। लगता है फेल हो जाएंगे। पूरे सपने भर फेल होने का डर हावी रहा। इतना डर गए कि हनुमान जी का प्रसाद भी नहीं मान पाए कि बजरंगबली नैया पार कराओ सवा रुपये का प्रसाद चढ़ाएंगे।
बहुत डर लगा इम्तहान के सपने से। अब कब्जे में कोई कोई चैनल हैं नहीं जो इम्तहान के डर से बचने के लिए रिया-सुशांत टाइप स्टोरी चलवा दें। तमाम देशों की सरकारें करती हैं ऐसा। भुखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने के लिए कोई सनसनाती हुई खबर चलवा देते हैं। मन किया सूरज भाई से पूछें कि उनके यहां मीडिया कैसे काम करता है। क्या उनके यहां भी सुशांत-रिया टाइप किस्से चलते हैं। लेकिन जब तक पूछे तब तक सूरज भाई और उचक गए थे आसमान में। गलत थोड़ी कहते हैं नन्दन जी:
जिसे दिन बताये दुनिया, वो तो आग का सफर है,
चलता है सिर्फ सूरज, कोई दूसरा नहीं है।
सपने के चक्कर में इतना सब कह गए। सपने कभी उपचार होते थे । रमानाथ जी कहते हैं:
रात लगी कहने सो जाओ,देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना।
और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने
देख जिसे तबियत मेरी घबराई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
सो न सका कल याद तुम्हारी,आई सारी रात।
लेकिन हमको तो फुल नींद भी आई, किसी की याद नहीं आई। लेकिन नींद के बहाने जगने पर क्या क्या लंतरानी हांक रहे। वास्तविकता से मुंह छिपाने के लिए सपने के कनकौवे उड़ा रहे। क्या यही आपदा में अवसर है।
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