1. बिना व्यवस्था में परिवर्तन किये, भ्रष्टाचार के मौके बिना खत्म किये और कर्मचारियों को बिना आर्थिक सुरक्षा दिये, भाषणों, सर्कुलरों, उपदेशों, सदाचार समितियों, निगरानी आयोगों के द्वारा कर्मचारी सदाचारी नहीं होगा।
2. राजनीति को नकारना भी एक राजनीति है।
3. हम छोटे-छोटे लोग हैं। हमारे प्रयास छोटे-छोटे हैं। हम कुल इतना कर सकते हैं कि जिस देश, समाज और विश्व के हम हैं और जिनसे हमारा सरोकार है, उनके उस संघर्ष में भागीदार हों, जिससे बेहतर व्यवस्था और बेहतर इन्सान पैदा हो।
4. आत्मविश्वास कई तरह का होता है- धन का, बल का, विद्या का, पर सबसे ऊंचा आत्मविश्वास मूर्खता का होता है।
5. मूर्खता के भी दर्जे हैं। अपढ़ता मूर्खता नहीं है। सबसे बड़ी मूर्खता है – यह विश्वास लबालब भरे रहना कि लोग हमें वही मान रहे हैं जो हम उनसे मनवाना चाहते हैं। जैसे हैं फ़ूहड़, मगर अपने को बता रहे हैं फ़क्कड़ और विश्वास कर रहे हैं कि लोग हमें फ़क्कड़ मानते हैं।
6. पता नहीं क्या बात है कि ऋषि, मुनि, सन्त, मनीषी भगवान के पास पहुंचने का रास्ता तो खोज लेते हैं, पर वहां अच्छे आदमी से पहले बुरा आदमी पहुंच जाता है। पता नहीं, यह रास्ते की खूबी है, भगवान की या रास्ते पर चलने वालों की।
7. सेवा ढंग से की जाय , तो वह धन्धा भी हो जाती है।
8. बुद्धिमान और ईमानदार वकील भूखे मरते हैं।
9. धर्म के मामले विज्ञान और बुद्धि से परे होते हैं। विज्ञान और बौद्धिक तर्क के स्पर्श से धर्म अशुद्ध हो जाता है।
10. धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन ’महाजन’ कहा होगा उस दिन मनुष्यता की हार हो गयी।’ महाजन’ कहना मनुष्यत्व की हीनता स्वीकार करके ही तो सम्भव हुआ।
11. अब समाजवाद आ रहा है। बेकारी बढ़ रही है, लोग या तो रिक्शा चलाना सीख रहे हैं या भूखा मरना ! विदेशों में हमारी वाह-वाह हो रही है, देश में हाय-हाय मची है। धीरे-धीरे भारत के नागरिक रिक्शावाले या भिखारी हो जावेंगे- याने सब एक ही आर्थिक स्तर पर आ जावेंगे। यही समाजवाद है – आर्थिक समानता !
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