कल फैक्ट्री में गणतंत्र दिवस समारोह के बाद 'कामसासू काम्प्लेक्स' गए। यहां निर्माणी से सिलाई के ऑर्डर पाए लोगों के शेड्स हैं। दिहाड़ी सिलाई मजदूर काम करते हैं। दिन भर के दस से बारह घण्टे काम करते हैं लोग। बाहर से आये कुछ लोग तो निपटने, खाने और सोने के अलावा काम ही करते दिखते हैं। इतनी मेहनत के बाद दिहाड़ी 400 से 500 तक होगी।
कल काम की जगह पर उत्सव का माहौल था। कुछ लोग मैदान पर ईंटो का विकेट लगाए क्रिकेट खेल रहे थे। कुछ देख रहे थे। झाड़ियों के बीच क्रिकेट हो रहा था। लगान पिक्चर का सीन टाइप लग रहा था।
कुछ जगह काम भी चल रहा था। कोई ओवरऑल बना रहा था, कोई बैग किट। महिलाएं कपड़े फोल्ड करने के काम में लगीं थीं। हमने उनसे फिर कहा -'तुमको सिलाई करनी चाहिए, ज्यादा पैसे मिलेंगे।'
वे हंसने लगीं। एक ने कहा -'यहां औरतों को सिलाई का काम नहीं मिलता।'
शेड के अंदर ही कुछ लोग झंडा तैयार बना रहे थे। बाहर से तिरंगा झंडा खरीद कर लाये। प्लास्टिक की रस्सी से बांस पर बांधा। झंडा तैयार हो गया। उसे फहराने के लिए मैदान में लाया गया। मैदान में झंडा लगने की कोई जगह नहीं।
झंडा लगाने की कोई नहीं तो क्या? जुगाड़ बनाया गया। जमीन पर कुछ ईंटे जमाकर उनके बीच झंडे का डंडा जमाया गया। फिर भी हिलडुल रहा था झंडा। उसकी भी जुगत बनाई गई। एक मोटरसाइकिल मैदान में लाई गयी। उसके कैरियर से झंडा बांधकर तैयार किया गया-' कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए।' झंडा फहराने के लिए तैयार हो गया।
वहां मौजूद लोगों ने मुझसे झंडा फहराने के लिए कहा। मैंने कहा -'तुम लोगों ने तैयारी की। तुम लोग फहराओ। हम देखेंगे।'
लोगों ने नवीन को फोन किया। नवीन अपने शेड की सिलाई आदि का इंतजाम देखते हैं। चिनौर में रहते हैं। बोले -'अभी आते हैं।' लोगों ने कहा-'जल्दी आओ। जीएम साहब खड़े हैं।'
इस बीच लोगों से बात होती रही। एक ने कहा-'यहां झंडा फहराने के लिए स्थाई जगह बनवा दीजिए।'
दूसरे ने कहा -'बंदर पानी की टँकी का ढक्कन खोलकर उसमें नहाते हैं। पानी गन्दा कर देते हैं। उसका कोई इंतजाम करिये।'
इसके बाद बात दिहाड़ी पर आ गयी। लोगों का कहना था -'पिछले कई सालों से मंहगाई लगातार बढ़ रही है। लेकिन मजदूरी उतनी ही बनी हुई है। कैसे काम चलेगा? आप कुछ करिये।'
हमने बताया -'सिलाई का काम तो टेंडर से मिलता है। जो सबसे कम दाम लेता है उसको ठेका मिलता है। हम इसमें कुछ नहीं कर सकते।'
लोग बोले-'बात तो आपकी सही है। लेकिन सोचिए कि दिन पर दिन मुश्किलात बढ़ रही हैं। मजदूरी से पेट नहीं भरता। मजबूरी में करना पड़ता है।'
दूसरे ने बताया-'इसीलिए नई जनरेशन सिलाई का काम करना नहीं चाहती।सिलाई खत्म हो रही है।'
एक 65 साल के बुजुर्ग ने बताया-'उनके बेटे अपने पैरों पर खड़े हैं। सबकी शादी हो गयी। लेकिन खुद का पेट पालने के लिए सिलाई करनी पड़ती है।'
इस बीच ध्वजा रोहण की तैयारी होती रही। लोगों ने झंडे के बीच फूल भी लगा दिए। किसी ने पूछा -'जनगणमन आता है?'
'जनगणमन किसको नहीं आता होगा। जो भी स्कूल गया है उसको आता होगा। जो नहीं भी गया उसको भी आता होगा।'- किसी दूसरे ने जबाब दिया।
इस बीच नवीन आ गए। उन्होंने मुझसे झंडारोहण के लिए कहा। मैंने कहा-'तुम फहराओ। तुम यहाँ के इंचार्ज हो। अपने दल के।'
तब तक सब लोग इकट्ठा हो गए थे। काम करने वाले लोग भी आ गए। जो नहीं आये उनको बुलाया गया। लोगों ने जनगणमन गाना शुरू कर दिया। झंडा पहले से ही फहरा रहा था। जनगणमन गाने के बाद झंडे की डोरी खींची गई। बूंदी के लड्डू बंटे। बहुत दिन बाद खाये बूंदी के लड्डू।
इस दिहाड़ी मजदूरों द्वारा मनाया गया गणतंत्र। गणतंत्र ऐसे ही लोगों के कारण ही टिका हुआ है।
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