1. डर जंगल की आग की तरह फैलता है। एक का डर दूसरे को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। निराशा बढ़ने लगती है और समझ ही नहीं आता कि आगे क्या?
पर, डर ही सब कुछ नहीं है। साहस भी, डर जितना ही संक्रामक है। किसी एक की हिम्मत चुटकियों में पूरे माहौल को बदल देती है। और फिर, अपनी शक्ति के बूते हम तो सब कर पाते हैं, जो कठिन समय में करना जरूरी होता है।
2. हम शक्ति को पूजते तो हैं, पर उसे समझते नहीं हैं। हम अपनी शक्ति को बेकार ही खर्च कर देते हैं। भूल जाते हैं कि हम सब अपनी सोच से कहीं ज्यादा साहसी और कहीं ज्यादा दूसरों को मजबूती देने में मदद कर सकते हैं। फिर प्यार ही तो है, जो बचा रहता है और हमेशा याद आता है। बेहतर है कि हम दूसरों को डर के बजाय अपना प्यार दें।
Poonam Jain दैनिक हिंदुस्तान के नियमित स्तम्भ 'जीने की राह' में।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10222149040888473
No comments:
Post a Comment