यह फोटो हमारे मित्र Rajeev Sharma ने भेजते हुए अपन से मजे लिए -'अगर इस फोटो में (डॉ शुक्ला का) इश्तहार न होता तो यह इमारत लन्दन में किसी जगह की इमारत लगती।'
यह इमारत कानपुर की लाल इमली की है। लाल इमली कभी ऊनी कपड़ों के लिए देश भर में प्रसिद्ध थी। फिलहाल वर्षो से ताला बन्दी की मार झेल रही है। अक्सर इसके फिर से चलने की बात चलती है लेकिन फिर ठहर जाती है। मिल नहीं चलती।
कानपुर की शान रही इस मिल के अलावा कभी कानपुर में अनेकों मिलें थीं। कानपुर पूर्व का मानचेस्टर कहलाता था। धीरे-धीरे मिलें बन्द होती गईं। मिलों के कामगार बेरोजगार हो गए। कोई रिक्शा चलाने लगा, कोई मजदूरी करने लगा। कभी भारत का मानचेस्टर कहलाने वाला शहर कुली-कबाड़ियों का शहर बन कर रह गया।
वैसे तो कानपुर में आई.आई.टी., एच. बी.टी.आई. , मेडिकल कॉलेज के अलावा कई रक्षा उत्पादन के संस्थान भी हैं, जिनमें कामगारों की संख्या दिन पर दिन सिकुड़ती जा रही है, लेकिन कानपुर के हाल-बेहाल होते जा रहे हैं। किसी शहर की सेहत उसकी लोगों को रोजगार और रोजी-रोटी मुहैया करा सकने की क्षमता से नापी जाती है। हालांकि अभी भी कानपुर के आस-पास रहने वाले लोग रोजी-रोटी की तलाश में कानपुर ही आते हैं लेकिन यह भी सच है कि मस्ती के अंदाज में 'झाड़े रहो कलक्टरगंज' कहने वाले शहर के दुश्मनों की तबियत अक्सर नासाज ही रहती है। ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि जिस शहर में कभी कपड़ा मिलों का जाल बिछा था, वह शहर अब मसाले- गुटखे-जर्दे के उत्पादन के लिए जाना जाता है।
कनपुरियों के पान मसाले के प्रचलित कई किस्सों में एक मसाला प्रेमी अमृत पीने का ऑफर यह कहते हुए ठुकरा देता है -'अभी मसाला खाये हैं।'
बहरहाल बात लाल इमली की इमारत और उस पर डॉ शुक्ला के इश्तहार की हो रही थी। यह भी तो हो सकता है कि यह इमारत लन्दन की ही कोई इमारत हो और उस पर वहीं के किसी डॉ शुक्ला का इश्तहार हो। आखिर लन्दन में भी तो डॉ शुक्ला हो सकते हैं।
लन्दन की बात चली तो याद आया कि प्रख्यात लेखक यूसुफी साहब ' खोया पानी' की भूमिका में लन्दन के बारे में लिखते हुए कहते हैं-'यूं लन्दन बहुत दिलचस्प शहर है और इसके अलावा इसमें कोई खराबी नजर नहीं आती कि यह गलत जगह स्थित है।'
यूसुफी साहब पाकिस्तान और लन्दन जाने के पहले कानपुर में भी कुछ दिन रहे, कानपुर के किस्से भी लिखे उन्होंने। लन्दन के गलत जगह बसे होने की बात कहते हुए वे कहीं यह तो नहीं कहना चाहते थे कि लन्दन को टेम्स नदी किनारे होने की जगह गंगा किनारे कानपुर में होना चाहिए। ऐसा होता तो कानपुर की लाल इमली लन्दन में ही कहलाती।
युसूफ़ी साहब भले ही ऐसा न सोचते हों लेकिन हमारे ऐसा सोचने में कोई फीस थोड़ी लगती है। है कि नहीं?
वैसे आपको लन्दन में किसी डॉ शुक्ला का पता हो तो बताइए । उनसे कहा जाए कि वे अपना इश्तहार किसी इमारत में लगवाकर फ़ोटो भेजें ताकि हम बता सकें कि लन्दन भी उतना गया बीता नहीं है- वहां भी डॉक्टर ( शुक्ला) मिलते हैं।
सूचना: 'खोया पानी' एक बेहतरीन किताब है। इसका लिंक कमेंट बॉक्स में।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10222516483874318
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