Sunday, July 11, 2021

सीट रिजर्व है

 



शाम को टहलने निकले। सूरज भाई जाने की हड़बड़ी में थे। बिना बॉय बोले निकल लिए। मन में डर होगा कि बतियाना शुरू करेंगे तो उनकी बस छूट जायेगी। जबकि बात होती तो हम खुद उनसे कहते -'भाई जी आप निकलो। अंधेरा हो रहा है। तुमको किरणों, रश्मियों के साथ जाना है। जमाना खराब है। देर करना ठीक नहीं।'
रामलीला मैदान पर लोग अलग-अलग तरह से व्यस्त थे। कोई गाड़ी चलाना सीख रहा था, कोई क्रिकेट खेल रहा था। एक भाई जी स्कूटी की फुट रेस्ट को चौकी बनाये बैठे , मैदान पर लेटे दोस्त से बतिया रहे थे। दो बच्चे गले में बाहें डाले गपियाने में व्यस्त थे।
रामलीला मंच के पास कुछ नौजवान आपस में खड़े बतिया रहे थे। अंदाज सहज बकैती वाला। कुछ के हाथ में सिगरेट भी थी। एक नौजवान हाथ में पकड़ी सिगरेट पर इस अंदाज में उंगली फिरा रहा था जैसे बकैत लोग अपने कट्टे की नाल पर फिराते हैं।
नौजवानों के हाथ में सिगरेट देखकर हमने कल्पना कर डाली कि ये इसमें भरकर गांजा या चरस पीने के पहले वाले दौर में हैं। कल्पना में यह भी आया कि यह गलत काम है। हमको इनको टोकना चाहिए। लेकिन फिर लगा कि हम अकेले ये कई लोग। हमारे टोकने पर कहीं ये हमको ठोंक न दें। अकेले में कौन जानता है कि हम कौन हैं।
हम बिना उनके टोंके उनके पास से चुपचाप , मन में शंका करते हुए, निकलकर रामलीला मंच के पास जाकर खड़े हो गए। वहीं से फोन मिलाकर मंच के आसपास सफाई करने का निर्देश देने लगे। निर्देश देते हुए हमारे अंदर बहादुरी बिना अनुमति लिए घुसती चली गयी। हमको लगा कि इन नौजवानों से बतियाना चाहिए।
लेकिन न जाने क्या हुआ कि वे नौजवान वहां से खरामा-खरामा चलते हुए मैदान पार करके बाहर चले गए। शायद उनको मेरी उपस्थिति अखर रही हो। सिगरेट भी पिये और मजा भी न आये, क्या फायदा ऐसी सुट्टाबाजी का जिसमें इत्मीनान न हो।
मैदान में बेतरतीब टहलते हुए हम लोगों को देखते रहे। लोग यहां शहर से टहलने आते हैं। ताजी हवा, खुला मैदान, भीड़ मुक्त सड़क लोगों को सुकून देती है।
मैदान पर टहलने के बाद अपन सड़क पर टहलने लगे। सड़क के दोनों ओर बेंचों पर लोग बैठे हुए थे। कुछ लोग गाने सुन रहे थे, कुछ बतिया रहे थे। ज्यादातर लोग अफसोस मुद्रा में गर्दन झुकाए मोबाइल में डूबे हुए थे। आज दुनिया के अधिकतर लोग गर्दन झुकाए मोबाइल में घुसे रहते हैं।
गर्दन झुकाए मोबाइल में घुसे रहने की बात से याद आया कि जिराफ की गर्दन पहले लम्बी नहीं होती थी। बाद में गर्दन उचकाकर पेड़ों की पत्तियां खाने से उसकी गर्दन लम्बी हो गयी। जिस तरह पूरी दुनिया में गर्दन झुकाकर मोबाइल में घुसे रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है उसे देखकर डर लगता है कि आने वाली नस्लों की गर्दन कहीं पैदायशी झुकी न हो। झुकी हुई गर्दन वाली नस्ल 'मोबाइल नस्ल' के रूप में जानी जाएगी।
पास ही पम्प हाउस है। वहां मौका मुयायना करने पहुंच गए। पम्प हाउस के सामने खड़ी गाड़ियां हटवाई। पम्प आपरेटर से बतियाये। पता चला ग्रेजुएट कर रहे हैं। सेना में भर्ती की कोशिश भी चल रही है। उसके लिए दौड़ का अभ्यास भी करते हैं। गए साल भी सेलेक्शन हुआ था। लेकिन दौड़ प्रतियोगिता की सूचना समय पर मिल नहीं पाई। दौड़ में भाग नहीं ले पाए। सेलेक्शन रह गया।
सूचना के विस्फोट के इस युग में किसी नौजवान के इंटरव्यू की सूचना उस तक न पहुंच सके और वह नौकरी से वंचित रह जाये, इससे बड़ा विद्रूप क्या होगा? लेकिन इससे बिना निराश हुए नौजवान अभ्यास में जुटा है। आशान्वित है। यह आशा का भाव सुकूनदेह है।
सड़क के किनारे रखी बेंचों लोग बैठे हुए हैं। एक बेंच का आधा हिस्सा खाली दिखा। हमने सोचा थोड़ा इत्मीनान से बैठकर सड़क मुआयना करें। लेकिन बैठने से पहले ही एक बच्ची ने टोंक दिया-'यह सीट रिजर्व है।'
हमने हंसते हुए पूछा -'यहां कैसा रिजर्वेशन?' बच्ची ने बिना हंसे तरस मुद्रा में बताया-'आंटी बैठी थीं यहां पर। टहलने गयी हैं। वो देखिए आ रहीं। यहीं बैठेंगी।'
हम दूसरी सीट की तलाश में बढ़े। सामने एक बेंच दिखी जिस पर कोई नहीं बैठा था। सड़क पार करके बेंच के पास गए तो दिखा कि बेंच का एक पटरा टूटा हुआ था। उस 'दिव्यांग बेंच' पर भी एक भाई साहब अपने दोस्त के साथ लपकते हुये बैठ कम , लटक ज्यादा गए। हम बेंच को सहानुभूति वाले भाव से देखते हुए वापस हो लिए।

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