आज सुबह टहलने निकलते-निकलते सात बजे गए। देर हो गयी तो एकबारगी मन किया छोड़ दें। लेकिन फिर चल ही दिए।
साइकिल की हैंडल पर जंग लग गया है। यह लिखते हुए Surendra Mohan Sharma शर्मा जी की याद आ गयी। वे इसे पढ़ते तो जरूर लिखते-'कंजूसी न करें, साइकिल नई ले लें।' पुरानी पोस्ट्स पर उनकी टिप्पणी देखता हूँ तो बरबस उनके साथ बातचीत की याद और मथुरा आने के वायदे पर बात होती थी। आज तो जन्माष्टमी है। आज तो जरूर वे कोई फोटो लगाते मथुरा के मंदिर का। क्या पता कल मथुरा में हुई मारपीट के बारे में भी कुछ लिखते-कहते-बताते। सच क्या है पता नहीं लेकिन कल खबर आई थी कि मथुरा में मिठाई की दुकान किसी गैर हिन्दू की थी इस बात पर कुछ लोगों ने दुकान वाले को धमकाया।
इसी क्रम में कल Asghar Wajahat असगर वजाहत जी ने पाकिस्तान यात्रा का संस्मरण लिखा था। वहां के कई हिंदुओ ने अपने नाम मुस्लिम जैसे रखे हैं। (https://m.facebook.com/story.php...)
लगता है कि दुनिया के सभी धर्म जैसे-जैसे पुराने और बुजुर्ग होते जाते हैं वैसे-वैसे उनके कुछ अनुयायी धर्म की मूल भावनाओ से दूर होते जाते हैं। कट्टर होते जाते हैं।
असगर वजाहत जी और अन्य लोगों के यात्रा संस्मरण पढ़ते हुए लगता है कि सब कुछ छोड़-छाड़कर दुनिया घूमने निकल लें। पूरा हिंदुस्तान से शुरू करके फिर ईरान, तूरान, यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड , अमेरिका सब घूम डालें। मंझा डालें। लेकिन बात लगने तक ही रह जाती है। अमल में नहीं आ पाती। दो-ढाई साल की बची नौकरी कहती है -'हमको निपटा के तब जाओ।' हम ठिठक जाते हैं। जबकि हमारे छोटे साहबजादे Anany Shukla दो-ढाई साल नौकरी करने के बाद घुमक्कड़ी के लिए इतना उत्साहित हुए कि कोरोना काल में नौकरी न छोड़ने की हर समझाइश को दर किनार करते हुए आ गए। कुछ दिन घर में दाना-पानी के बाद लेह, लद्दाख, कश्मीर टहल आये। इसके बाद अब फिर हरिद्वार और ऋषिकेश में फ़ोटो बाजी हो रही है। अनन्य के फोटो-वीडियो और कविताएं इधर देख सकते हैं।
घुमक्कड़ी का एक और मॉडल कल देखने को मिला। कल हमारी मुलाकात हमारे एक फेसबुक पाठक मित्र से हुई। वे और उनकी पत्नी भी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हैं। हफ्ते में पांच दिन काम करते हैं और वीकेंड के दो दिन जमकर घूमते हैं। पत्नी और बच्चे समेत। 'वर्क फ्राम होम' की सुविधा का लाभ उठाते हुए दनादन घुमाई कर रहे हैं। इस बीच अपने कार्यस्थान से 3000 किलोमीटर दूर यात्रा कर चुके हैं। इरादा पूरा हिंदुस्तान नापने का है।
मजे की बात पाठक मित्र हमारे फेसबुक मित्र भी नहीं थे। कल सन्देशा आया और मुलाकात हुई। फेसबुक मित्र भी बने। जमकर बतकही हुई। खूब बातें भी। फोटोबाजी भी। लेकिन फोटो यहां लगा नहीं रहे। क्या पता उनके दफ्तर वाले पूछने लगे कि बिना बताए कैसे घूम रहे।
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बहरहाल, बात टहलने की हो रही थी। सुबह के समय रामलीला मैदान में लोग टहल रहे थे। कुछ लोग गाड़ी चलाना सीख रहे थे। कुछ लोग सड़क किनारे बेंचों पर तसल्ली से बैठे बतिया रहे थे। कुछ लोग तेज-तेज और कुछ आहिस्ते- आहिस्ते टहलते हुए दिखे।
रामलीला मैदान के बगल में कैंट मैदान पर बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमारे देखते हुए एक बाल को हिट करने के चक्कर में एक खिलाड़ी पूरा घूम गया। गेंद उसके बल्ले पर आई नहीं। अलबत्ता वह इतनी तेज घूमा था कि विकेट गिरते हुए बचा। बचने के चक्कर में जमीन पर बैठकर मुस्कराया जिसके जबाब में लोग हंसे। वह थोड़ा और झेंपते हुए मुस्कराया और अगली गेंद को खेलने के लिए तैयार हो गया।
साइकिल के आगे एक बुजुर्गवार दाएं हाथ में एक बेंत लिए सड़क को ठोंकते चले जा रहे थे। उनके सड़क ठोंकने के अंदाज से लगा मानो पता लगा रहे हों कि कहीं कोई विस्फ़ोटक सुरंग तो नहीं है इधर।
गोविंदगंज क्रासिंग के पहले 'कामसासू काम्प्लेक्स' में काम करने वाले टेलर ओपी मिले। उनके हाल-समाचार लिए। ओपी घाटमपुर के पास एक गांव के रहने वाले हैं। दिन में पांच ओवरऑल सिल लेते हैं। खुद के खर्चे के बाद घर भेजते हैं सात-आठ हजार। सिलाई के अलावा जगह की रखवाली, देखभाल अलग से-जिसका कोई मेहनताना नहीं मिलता।
घर-परिवार की बात करते हुए हम विदा हुए। आगे एक मिठाई की दुकान पर लोग बतियाते हुए यूपी-बिहार के लोगों को गरिया रहे थे। बातचीत और भाषा के कॉन्फिडेंस से वे लोग यूपी-बिहार के ही लग रहे थे। शायद इसीलिए उनके गरियाने से कोई बवाल नहीं हुआ।
क्रासिंग पार की दुकानें बंद थीं। कुछ दूध वाले अपने डब्बों में लाया दूध बेंच रहे थे। दाम पूछने पर बताया -' जौन भाव चाहो तौंन भाव मिल जैहै दूध।'
बातचीत करने पर खुलासा हुआ कि दूध के दाम 30 रुपये लीटर से 55 रुपये लीटर तक हैं। कुछ लोग शुध्द दूध पचा नहीं पाते वो लोग पतला दूध लेते हैं। पतला मतलब पानी मिला। पानी दूध वाले घर से मिलाकर लाते हैं। इतनी ईमानदारी से पानी मिला दूध बिकते देखकर आश्चर्य होना चाहिए लेकिन उनकी सहजता के आगे आश्चर्य टिका नहीं।
एक दूध वाले के मुंह पर चेचक के दाग थे और एक आंख रोशनी विहीन। पता चला कि बचपन में चेचक के कारण हुआ था ऐसा। गांव में किसी को कोरोना हुआ नहीं। टीके शुरू में नहीं लगे लेकिन अब लगवा रहे हैं लोग।
आगे मिठाई की दुकानों के आगे दूधियों की भीड़ लगी थी। वे आपस में चुहल करते हुए दूध नाप-बेंच रहे थे।
हम यह सब देख ही रहे थे कि एक सज्जन अपनी मोपेड बीच सड़क रोककर हमसे बतियाने लगे। हमने खुदको और उनको मोपेड समेत किनारे किया और तसल्ली से बात की। सज्जन यशपाल कुकरेजा जी हैं। उनकी डबल स्टोरी मार्केट में किराने की दुकान है। पिछले दिनों उनकी दुकान में चोरी हुई। उसी सिलसिले में चौकीदार के तैनात किए जाने की बात हुई।
यशपाल कुकरेजा जी निर्माणी के रामलीला मंचन से जुड़े रहे हैं। रावण का रोल करते थे। इसके अलावा जनक, दशरथ, मेघनाथ के रोल भी करते रहे हैं। रावण का रोल के लिए स्व. महेंद्रूजी प्रसिद्द थे। शाहजहांपुर के रंगमंच की शुरुआत करने में महेंद्रू जी का काफी योगदान है। महेंद्रू जी के शिष्य हैं कुकरेजा जी। इसके अलावा भी और खूब बातें हई सड़क पर खड़े-खड़े। यह भी कि तनाव के चलते डायबिटिक हो गए हैं कुकरेजा जी।
निष्कर्ष निकला कि आजकल जो डायबिटीज की बीमारी हो रही है बहुतायत में लोगों को उसकी जड़ में लोगों की जिंदगी में बढ़ता तनाव है। तनाव कम, सुगर खत्म।
कुकरेजा जी मिलने के बाद एक गली में मुड़े। वहां एक बुजुर्गवार कुर्सी पर बैठे स्टूल पर रखे रामचरित मानस का पारायण कर रहे थे। बातचीत से पता सिचाई विभाग से रिटायर्ड असिस्टेंट इंजीनियर हैं। रामदास नाम। उम्र 87 साल। रामचरित मानस के अलावा गीता आदि का पारायण करते हैं। रामदास जी के अनुसार -'भगवानों में सबसे श्रेष्ठ भगवान राम हैं।'
जम्माष्टमी के दिन मथुरा वाले यह सुन लेते तो कम से कम टोंकते तो जरूर। लेकिन किसी ने सुना नहीं। इसके अलावा रामदास जी ने रामनाम का विविध तरह से महत्व बताया। यह भी बताया कि राम जी को भक्त पसन्द हैं। भक्त से भी अधिक दास प्यारे हैं। हनुमान जी ने स्वयं को राम का दास माना इसीलिए वे राम जी के प्रिय हैं।
रामदास जी की बात सुनते हुए मैं आजकल समाज में बढ़ते भक्तों और भक्तिभाव में तारतम्य बिठाने की कोशिश कर ही रहा था कि पीछे से मोटरसाइकिल ने तेज हॉर्न बजाते हुए सड़क खाली करने का आदेश दिया। हम आगे बढ़ लिए।
लौटते हुए कैंट में तिकोनिया पार्क के पास दूरी का पुराना पत्थर देखा। उसमें लिखा था बरेली 46 मील, पुवायां 17 मील। यह पत्थर जब लगा होगा तब भारत में दूरियां मील में नापी जाती होंगी। पार्क में बन्दर कबड्डी खेल रहे थे। किनारे एक नाई की कुर्सी पड़ी थी। लेकिन हज्जाम और हजामत बनवाने वाले दोनों नदारद थे।
लौटते में कैंट मैदान पर मैच बदस्तूर जारी था। बेंचों पर बैठे लोग और तसल्ली में होकर अधलेटे से हो गए थे।
सूरज भाई हमको इतने दिन बाद सड़क पर देखकर मुस्करा रहे थे। देखादेखी हम भी मुस्करा दिए। वैसे भी मुस्कराने में अभी कोई ख़र्च नहीं लगता न कोई टैक्स। हंसी जीएसटी फ्री है इसलिए मुस्कराते रहने में कोई हर्जा नहीं है। वजह-बेवजह जैसे मन करे मुस्कराते रहिये। आगे जो होगा देखा जाएगा।
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