सुबह जगने पर पहले लोग जम्हूआई लेते थे। अब सबसे पहले मोबाइल देखते हैं।सोते समय मोबाइल का नेट अगर खुला रहा तो आये हुए सन्देश और नोटिफिकेशन अपने देखे जाने के इंतजार में दुबले होते हैं। अगर नेट बन्द रहा तो खुलते ही संदेशे भड़भड़ाकर , चुनाव के समय पार्टियों के लुभावने वायदों की तरह मोबाइल पर हमला कर देते हैं। भगदड़ मच जाती है संदेशों में। एक के ऊपर एक लदते-फदते मोबाइल पर गिरते हैं। न जाने कितने चुटहिल हो जाते होंगे।
मोबाइल बन्द करके किताब उठा ली। तीन-चार किताब हमेशा बगल में धरे रहते हैं। जब मन आये कहीं से भी पढना शुरू कर देते हैं। कई बार तो पढ़ी हुई चीज फिर पढ़ जाते हैं। रोचकता से ज्यादा भुलक्कड़ी का योगदान है इसमें। तमाम किताबें पढ़े जाने के इंतजार में हैं।
किताब कुछ देर पढ़ी। रोचक थी। लेकिन अचानक मोबाइल की याद आ गयी। फौरन खोल लिया। खोलते ही याद आया, बार-बार मोबाइल देखना बुरी आदत है। लेकिन लगा कि इतना भी बुरा नहीं। कौन कोई देख रहा है। अकेले में बुरा बनना चलता है। दुनिया में तमाम खराब माने जाने वाले काम इसी बहाने होते रहते हैं -'कोई देख थोड़ी रहा है।'
बहरहाल मोबाइल में एक पिक्चर के बारे में सूचना दिखी। रोचक लगी। मन किया देखें। लेकिन फ़िल्म की अवधि घण्टे भर से ज्यादा थी। बाद के लिए टाल दिया।
अगला नोटिफिकेशन स्पेंसर ट्यूनिक के फोटो शूट का था। स्पेंसर ट्यूनिक अमेरिका के फोटोग्राफर हैं। ( https://youtu.be/YXIOgCreeA0 )कई जगह लोगों के बिना कपड़ों के फोटो खींचते हैं। सैकड़ों,हजारों की संख्या में लोग बिना कपड़े उनके शो में शामिल होते हैं। इजरायल में ' ब्लैक सी' की बदहाली पर ध्यान दिलाने की मंशा से न्यूड फोटो ग्राफी की थी स्पेंसर ने। तमाम फोटो शूट कर चुके हैं तब से। अलग-अलग मुद्राओं में बैठकर, लेटकर, खड़े होकर बिना कपड़ों के शूटिंग में शामिल होते हैं। आदमी और औरत दोनों।
एक इंटरव्यू में स्पेंसर ट्यूनिक ने बताया -'लोग इसका विरोध करते हैं इससे मुझे अपने मुद्दे पर फोकस मिलता है।'
कई फोटो सेशन देखकर मुझे कौतूहल हुआ कि फोटोग्राफी के लिए इतना तामझाम करने के लिए लोग इनके पास अपने आप आते हैं या भुगतान करना होता है इनको। कई कौतूहल और भी। दुनिया कितनी बहुरंगी है।
कुछ देर बाद मोबाइल छोड़कर फिर किताब उठा लिए। कुछ देर पढ़ते रहे। लगा इसी गति से पढ़ते रहे तो किताब तो खत्म हो जाएगी आज ही। हम इस आशंका से दहल गए। किताब खत्म हो जाएगी तो बचेगा क्या ? बन्द कर दी किताब।
हमारे पास अनगिनत बेहतरीन किताबे इसीलिए अनपढी, अधपढी रखी हैं कि लगता है ये खत्म हो गयीं तो बचेगा क्या? किताबें बचीं हैं तो लगता है दुनिया बची है। लेकिन किताबें तो पढ़ी जानीं चाहिए। सही है। लेकिन लगता है साथ हैं तो पढ़ भी ली जाएंगी कभी न कभी। किताबें ताबीज की तरह तमाम अलाय-बलाय से बचाने का एहसास देती हैं।
लेकिन सबसे बड़ी किताब तो यह दुनिया है। इसको नियमित बांचते रहते हैं। देखते रहते हैं। अलटते-पलटते रहते हैं। रोज नए किरदार मिलते हैं।
कल एक आदमी हमारे रामलीला मैदान की पानी की टँकी पर चढ़ गया। अपने बेटों से आजिज था। बेटे उसको मारते-पीटते थे। पैसे के लिए। पुलिस आई ,लड़के आये, उतारा। जब तक यह हुआ,तमाशबीन जमा होते रहे।
परसों रात टहलने निकले। लोग शहर से आकर यहां की बेंचों पर बैठकर बतियाते दिखे। मैदान में अंधेरा। हाई मास्ट लाइट बन्द। लगा कि अनदेखी होने पर कितनी चीजें अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। कल रात जलती दिखी लाइट। मैदान खूबसूरत हो गया।
लौटते हुए रिक्शा स्टैंड पर एक आदमी बेंच पर सोता दिखा। पास ही स्कूटी खड़ी दिखी। स्कूटी से उतरे लड़के बगल की इमारत के पास खड़े किसी बात पर गाली गलौज कर रहे थे। बगल के मैदान में कुछ बच्चे बैडमिंटन खेल रहे थे। इन दोनों से बेखबर बेंच पर लेटा आदमी कम्बल ओढ़े आराम से सो रहा था।
यह तो कल-परसों की बात हुई। अब तो सुबह हो गयी। सूरज भाई सामने से पूछ रहे हैं -'दफ्तर नहीं जाना क्या आज?'
सूरज भाई तो खैर इसी तरह पूछते रहते हैं। कल एक मित्र ने पूछा -'सूरज देवता आपके भाई कैसे हुए?'
हमने सूरज भाई से पूछा क्या जबाब दें इसका ? बोले -'कह दो जैसे तुम्हारे लिए देवता हैं वैसे ही हमारे भाई हैं सूरज भाई।'
'वैसे हर बात का जबाब देना कोई जरूरी नहीं होता। मौन भी एक जबाब होता है' यह पुच्छला भी जोड़ दिया सूरज भाई ने अपने जबाब में।
हम कुछ कहें तब तक सूरज भाई आसमान में चढ़कर मुस्कराने लगे।
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