जरा सा जुगनू भी चमकने लगता है अंधेरे में,
ये अंधेरे का बड़प्पन नहीं है तो और क्या है जी!
आज उजालों के गीत बहुत गाये गये!
इसी बहाने गरीब अंधेरे निपटाये गये।
अंधेरे ने रोशनी से जरा सी छेड़छाड़ की,
उजाले ने रपटा लिया उसे बहुत दूर तक!
असल में अंधेरे की अपनी कोई औकात नहीं होती,
इसकी पैदाइश तो उजालों में जूतालात से होती है।
-कट्टा कानपुरी
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