Wednesday, December 22, 2021

ज़िंदगी के स्कूल में



बुरहनपुर एक विवाह कार्यक्रम में हुए थे। बारात आने को थी । बारात का इंतज़ार सड़क पर टहलते हुए कर रहे थे। सड़क किनारे एक पुलिया पर दो लड़के सज़दा मुद्रा में मोबाइल में घुसे थे। अद्भुत तन्मयता से जुटे थे मोबाइल दर्शन में।
जिस तरह हम लोग मोबाइल में घुसते जा थे हैं , बड़ी बात नहीं कि आने वाली सन्तानें सर झुकाए पैदा हों।
वहीं सड़क किनारे एक बच्चा अपनी मुसम्मी के रस की दुकान समेट रहा था। रस निकालने वाली मशीन को खोलकर साफ़ कर रहा था। एक -एक पुर्ज़ा खोलते हुए उसको पानी से साफ़ कर रहा था। अपना काम इतनी गम्भीरता से कर रहा था कि देखकर लगा ही नहीं कोई बच्चा है।
बच्चे की गम्भीरता और ज़िम्मेदारी का भाव देखकर लगा कि खेलने - कूदने और मस्ती की उम्र में इतना ज़िम्मेदार होने को मजबूर है बालक।
बातचीत करते हुए पता चला कि अनीस नाम है बच्चे का। १२ साल उम्र। स्कूल भी जाता है। पाँचवीं में पढ़ता है। ठेला बच्चे के पिता लगाते हैं। शाम को बच्चा भी लगाता है ठेला। आज पिता अपनी पत्नी को दिखाने गये हैं। इसीलिए बच्चा अकेला है। दिन भर की कमाई हज़ार रुपए हुई।
ज़ूसर का एक-एक पुर्ज़ा साफ़ करने के बाद दुकान समेटने की प्रक्रिया में ठेला फुटपाथ पर चढ़ाने लगा। अकेले कठिनाई होते देख हमने भी सहयोग किया। एक तरफ़ से धक्का लगाया। हमारे सहयोग को स्वीकार किया बच्चे ने। खुद दूसरी तरफ़ गया। हमको अनुभवहीन समझते हुए बोला -“ छोड़ना नहीं।”
ठेला फुटपाथ पर चढ़ाकर नीचे ईंटे लगाए। वहीं लटकी मोमिया से ठेले को ढँककर चला गया। ठेले में फल और मशीन ऐसे ही रखी थी। हमने पूछा -“क़ोई ले नहीं जाएगा रात को ?”
वह बोला -“नहीं।”
बच्चा अपना काम करते हुए बहुत कम बोलता था। आवाज में इतनी गम्भीरता देखकर लगा कि कितनी कम उम्र में बड़ा हो हुआ बच्चा। पाँचवी में पढ़ने वाला बच्चा मजबूरी के चलते ज़िंदगी के स्कूल में दाख़िला लेकर कमउम्र में ही स्नातक हो गया।
ऐसे न जाने कितने बच्चे दुनिया में होंगे जो अपने सहज बचपने से वंचित हो बड़े हो रहे हैं। ऐसे बच्चों का कोई आँकड़ा नहीं मिलता। जुटाने की किसी को फ़िकर भी नहीं।

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