Saturday, December 04, 2021

लड़कियां इमली ज्यादा खाती हैं



'लड़कियां इमली ज्यादा खाती हैं, लड़के ज्यादातर मीठा खाते हैं, रामदाना, लईया पट्टी खाते हैं'
यह बात बताई रामकुमार राठौर ने जो मिले गोविंदगंज क्रासिंग के पार। ठिलिया पर इमली, चूरन, चटनी और दीगर सामान लादे चले जा रहे थे। ठिलिया पर रखे रिकॉर्डर पर गाना बज रहा था -'खुश हूं मेरे आंसुओं पे न जाना।'
करीब 35 साल से ठिलिया लगा रहे रामकुमार स्कूलों के बाहर सामान बेंचते हैं। छह महीने इमली, चूरन बेंचते हैं। बाकी दिन आइसक्रीम। लड़कियां और महिला टीचर्स इमली ज्यादा खाती हैं। लड़के मीठा सामान ज्यादा पसंद करते हैं। एस पी कॉलेज के लड़के अलबत्ता इमली पसन्द करते हैं। मतलब एसपी कालेज के लड़के स्वाद की पसन्द लड़कियों से मिलती है।
इमली गांव वालों से लेते हैं। ठिलिया लगाने के अलावा केटरिंग का काम भी करते हैं। काम ले लेते हैं, अगर खुद नहीं जा पाते तो भाई-भतीजों को भेज देते हैं। स्कूलों के अलावा गलियों में भी फेरे लगा लेते हैं। इतवार को छुट्टी रहती है।
मुंह टेढ़ा और एक आंख बाहर को निकली देखकर हमने कारण पूछा। पता चला बचपन में फालिज मार गया था। बहुत इलाज कराया लेकिन ठीक नहीं हुआ।
तीन बच्चियां हैं रामकुमार की। तसल्ली से सब बातों के जबाब देते रहे रामकुमार। सामान लगाते रहे। स्कूल खुलने के पहले दुकान सजा लेनी है। सुबह घर से निकलते हुए ऐसे ही सब सामान भर लिया था। निकल लिए थे।
रामकुमार से मिलने के बाद यह विचार मन में आया कि फालिज मारने के बाद चेहरा बेतरतीब सा हो गया लेकिन रोजी-रोटी के लिए किसी के मोहताज नहीं। तीन बच्चियां भी हैं। लेकिन अगर यही कहानी किसी महिला के साथ होती तो क्या उसका घर बसता ? उसकी जिंदगी कैसी गुजरती?
आगे ही एक महिला सड़क पर झाड़ू लगा रही थी। सड़क का कूड़ा किनारे लगाते हुए कुछ सोचती जा रही थी। वहीं सामने से एक कुत्ता लंगड़ाता हुआ चल रहा था। उसके एक पैर में चोट लगी थी। शायद कोई गाड़ी चढ़ गई हो। ऐसा अक्सर होता है। क्या पत्ता कुत्ते अपनी चौपालों में इस बात और चर्चा करतें होंगे कि नहीं कि इंसान की इस मनमानी का कैसे मुकाबला किया जाए?
गोविंदगंज क्रासिंग पर ही आते-जाते कई ट्रेनें दिखीं। एक ट्रेन आधी निकली तब तक दूसरी तरफ से दूसरी दिख गयी। शाहजहांपुर बालामऊ पैंसेजर चलते हुए अचानक रूक गयी। गार्ड के डिब्बे के पीछे के डिब्बे में एक महिला सवारी चढ़ी। गार्ड ने तसल्ली से चढ़ने की हिदायत दी। सवारी चढ़ने के बाद गाड़ी चली।
लौटते में भी क्रासिंग पर ट्रेन मिली। स्कूल के लिए जाते बच्चे, सुबह की सैर को निकलते लोग और बिजली विभाग की लंबी सीढ़ी ले जाता आदमी दिखा। ऊपर पुल पर कारें और दीगर सवारियां गुजर रहीं थीं। पुल के नीचे बने मंदिर के सामने सड़क पार से एक आदमी मंदिर के देवी-देवाताओं को दूर से 'रिमोट प्रणाम' कर रहा था।
सड़क पर कुत्तों और बन्दरों में कुछ देर खौखियाहट होती दिखी। दोनों में शायद वर्चस्व की लड़ाई होगी। दोनों की पूंछे झंडे की तरह खड़ी हो गईं। लेकिन जल्द ही दोनों पक्ष शांत होकर साथ टहलने लगे। जानवरों और इंसानों में शायद यही अंतर होता है। जानवर अपनी लड़ाई बेफालतू आगे नहीं बढाते।
फुटपाथ के पास बने घरों में से एक घर के सामने कुछ लोग अलाव ताप रहे थे। अलाव की आग बुझ थी। लेकिन गर्मी शायद बाकी होगी। बुजुर्ग महिला छोटे बच्चे को दुलराते हुए उससे खेल रही थी। बच्चा भी मुस्करा रहा था।
सड़क पर दो बच्चियां टहलती दिखीं। वापस लौट रहीं थी सैर करके। एक बच्ची दूसरी को उलाहना दे रही थी -'तुम रोज जल्दी वापस चलने को कहती हो।'
सामने से तेजी से सीतापुर वाले मुंशी जी आते दिखे। बोले -'आज देर हो गयी। बुजुर्ग आदमी हूँ। कभी देर हो जाती है।' मुंशी जी ने यह भी बताया कि 35 साल से टहल रहे हैं, बिना नागा। यही तो एक आदत है जो बनी हुई है।
स्कूल के बच्चे साइकिलों, ऑटो में जा रहे थे। कई ऐसे लोग भी होंगे जो बच्चों को स्कूल पहुंचाने का काम करते होंगे लेकिन उनके खुद के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते होंगे।
निकलने के पहले सुबह की सैर वाले साथी मिले। मैदान पर चबूतरा बन जाने से खुश थे साथी। बेंच भी जल्द ही बन जानी चाहिए।
बगल से सूरज भाई आसमान से मुस्कराते हुए देख रहे थे। शायद कह रहे हों -'बढ़िया जा रहे हो। ऐसे ही टहलते रहो।'

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