जयपुर में Naresh Thakral और उनके घुमक्कड़ साथियों के साथ जंगल घुमाई से लौटे तो नरेश हमको जबरियन अपने घर ले गए। नरेश और हम लोग एक समय में मोतीलालनेहरू राष्ट्रीयप्रोद्योगिकीसंस्थान इलाहाबाद में रहे। वो हमसे एक साल बाद आये थे। फिर बीएचयू में भी साथ रहा। नरेश के एक पत्रकार मित्र थे -राकेश सरमा। वे एक बार नरेश से बनारस मिलने आये। हमसे भी उनकी दोस्ती हुई। बहुत दिनों तक उनसे पत्राचार होता रहा। पोस्ट कार्ड में खूबसूरत अक्षरों में पता लिखते थे -राकेश सरमा , पायल छवि गृह के पीछे।
नरेश के घर जमकर नाश्ता किया गया। बिटिया के विवाह की तैयारियां चल रही थीं। नरेश ठकराल निकल लिए इंतजाम देखने। अपन पेटपूजा करके वापस सर्किट हाउस पहुंच गए।
सर्किट हाउस में पहुंचकर ट्रेकिंग की निशानी देखी। जूते में तकरीबन किलो भर धूल बरामद हुई। उसको बास बेसिन में उलट कर जूते को ठोंक-ठोंक कर रेत मुक्त किया गया। नहा धोकर निकलने को तैयार हुए।
ट्रेन शाम को थी। Kush Vaishnav से मिलने की बात सोची। मिलने की तो Yashwant Kothari जी से भी सोची लेकिन पता चला वे नाथ द्वारा में थे। Neeraj Goswamy जी पंच परमेश्वर नाटक के रिहर्सल में व्यस्त थे। Prabhat Goswami जी से भी बात हुई थी एक दिन पहले। वे अपने घर के मांगलिक कार्यक्रम में व्यस्त थे। मिलना हो न सका।
कुश हमारे ब्लागिंग के दिनों के साथी रहे हैं। अनेक खूबियों से लैश। उनकी शादी में हम जयपुर गए थे शिवकुमार मिश्र जी के साथ। कुश हमारे पहले प्रकाशक हैं। हालांकि रुझान प्रकाशन के पहले हम आन लाइन अपनी किताब पुलिया पर दुनिया प्रकाशित कर चुके थे। लेकिन कुश ने हमारी किताबें नहीं छापी होतीं तो शायद ये किताबें न ही आ पातीं और न हम लेखक कहलाते। हमारी पांच किताबें उनके रुझान प्रकाशन से आईं। उनमें से दो को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से इनाम भी मिला। लेकिन प्रकाशन से रॉयल्टी अभी भी बकाया है। जब पूछते हैं तो प्रकाशक कहता है -'देंगे, रॉयल्टी भी देंगे। किताबें निकल जाएं तब सब हिसाब किया जाएगा।' हम इंतजार में हैं।
कुश को नई-नई चीजों को करने का भी शौक है। इसी सिलसिले में प्रकाशन का काम भी शुरू किया। रुझान प्रकाशन से आई कुछ किताबों को इनाम भी मिले। घड़ाधड किताबें भी आईं। लेकिन समय के साथ शायद मन उचट गया कुश का छपाई के काम से। इधर किसी नई किताब का हल्ला नहीं दिखता।
प्रकाशन के काम के बाद हाल ही में जयपुर में किताब की दुकान खोली कुश ने। उसको देखने और कुश से मिलने गए हम। बहुत थके होने के बावजूद लगा मिल लिया जाए, फिर न जाने कब आना हो गुलाबी शहर।
थोड़ी-बहुत भटकन के बाद कुश से मिलना हुआ। वही सदाबहार मुस्कान। दुकान पहली मंजिल पर थी। कुश को कहीं जाना था इसलिए दुकान बन्द कर दी थी। हमको दिखाने के लिए खोली कुश ने दुकान। बहुत सारी बातें हुईं। कुश ने बहुत जोर दिया लंच के लिए पास ही उनका घर है। लेकिन बहुत थका होने के कारण फिर गए नहीं। कुश को भी मीटिंग में जाना था कहीं। हम वापस लौटकर स्टेशन आ गए।
स्टेशन पहुंचकर लगा कि ट्रेन में अभी देरी है। सोचा शहर थोड़ा और देख लिया जाए। किताबों की दुकान के बारे में पूछने पर नरेश ठाकराल ने रजत बुक स्टॉल के बारे में बताया था। हम स्टेशन से रजत बुक स्टॉल के लिए निकल लिए।
किताबों की दुकान जिस जगह थी उसके पास ही ऑटो वाले ने उतार दिया। सामने ही एक ठेले पर कुल्फी बिकती दिखी। ठग्गू के लड्डू की कुल्फी का जुमला याद आया -'खाते ही जेब और जुबां की गर्मी गायब।' कुल्फी खाई। कुल्फी खाने के बाद पास ही 'रजत बुक स्टोर' था वहां पहुंचे।
दुकान के बाहर ही बोर्ड लगा था -'A book is the smartest hand held device's एक किताब हाथों में रहने वाला सबसे स्मार्ट उपकरण है।
दुकान में घुसते ही टोंक दिए गए। मास्क लगाकर आइये। मास्क लगाकर अंदर घुसे। हमारे बाद एक जोड़ा और आया। उसको भी बिना मास्क अंदर आने से मना किया गया। उनके पास मास्क था भी नहीं। दुकान की तरफ से दिया गया उनको मास्क। फिर वे दाखिल हो पाए किताबों के बीच।
जयपुर की पुरानी दुकान है रजत बुक स्टोर । ज्यादातर किताबें अंग्रेजी में। करीब एक घण्टे हम किताबों के बीच रहे। कुछ किताबें भी लीं। उनमें से एक आइंस्टीन के बारे में है। किताब जितनी दुकान पर खड़े-खड़े पढ़ी गयी उसके आगे अभी शुरआत होना बाकी है।
ट्रेन का समय होने पर हम किताबों का साथ छोड़कर स्टेशन आ गए और ट्रेन पर बैठकर वापस।
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