Monday, February 21, 2022

अरलिंगटन शहीद स्मारक



अमेरिका में वासिंगटन डी सी की लगभग सभी इमारतें दोपहर बाद तक निपटा डालीं। अमेरिका की संसद, कई सारे म्यूजियम और न जाने कितनी ऐतिहासिक इमारतें। जिन इमारतों को बनने में वर्षों लगे उनको एक दिन में देख डाला हमने। बनाने और देखने , निर्माता और दर्शक में अंतर तो होता ही है।
वासिंगटन डी सी देखने के बाद भी समय बच गया था कुछ। विनय ने बताया कि कुछ ही दूर अरलिंगटन शहीद स्मारक है। देखने लायक जगह। दिखाने वाले विनय ही थे सो हम चल दिए अरलिंगटन शहीद स्मारक देखने।
शहीद स्मारक वर्जीनिया स्टेट में स्थित एरलिंगटन काउंटी में है। वासिंगटन डी सी और अरलिंगटन काउण्टी ऐसे ही हैं जैसे कानपुर और शुक्लागंज। फरक सिर्फ इतना की कानपुर और शुक्लागंज के बीच गंगा नदी बहती हैं जबकि वासिंगटन डी सी से अरलिंगटन जाने के लिए पोटोमैक नदी पर करनी होती है। पोटोमैक नदी का पानी साफ-सुथरा देखकर लगा कि यहां के लोग नदियों की पूजा नहीं करते वरना ये भी अपने यहाँ की नदियों की तरफ पवित्र और गंदगीयुक्त हो जाती।
अरलिंगटन शहीद स्मारक में विभिन्न युद्धों में शहीद हुए लोगों के शव दफनाए गए हैं। कुछ शव दूसरे शव गृहों से लाकर भी यहां संरक्षित किए गए हैं। इस शहीद स्मारक की देखभाल अमेरिका का रक्षा विभाग करता है।
शहीद स्मारक की स्थापना 13 मई 1864 में हुई थी मतलब करीब 158 साल पहले। अरलिंगटन हाउस ,जहां यह स्मारक बना है, की स्थापना अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपाति जार्ज वासिंगटन के वंशजों ने की। अरलिंगटन हाउस नाम इंग्लैंड के ग्लूसेस्टरशायर स्थित गांव अरलिंगटन के नाम पर रखा गया जहां के मूल निवासी थे अरलिंगटन हाउस के शुरुआती निर्माता मालिक। शुरुआती दौर में मालिकाना हक के लिए अरलिंगटन हाउस के मालिकों और सरकार में मुकदमे बाजी हुई। लेकिन अंतत: अब यह इलाका सेना की देखरेख में है।
शहीद स्मारक में तमाम तरह के इलाकों में साफ-सुथरी सड़कों के दोनों शहीदों की कब्रें बनी हैं। उनको देखकर अनायास शाहजहांपुर के ओज कवि स्व: राजबहादुर विकल की पंक्तियाँ याद आ गईं :
विश्व के संताप सब बोये गए है।
धूल के कण रक्त से धोए गए हैं।
पांव के बल मत चलो अपमान होगा।
सर शहीदों के यहां बोये गए हैं।।
पूरा शहीद स्मारक 70 भागों में विभाजित है। इनमें से कुछ भाग भविष्य में विस्तार के लिए सुरक्षित रखे गए हैं।
आतंकवादी लोगों द्वारा 2001 में हवाई हमले में न्यूयार्क के ट्विनटावर को जमींदोज किए गए जाने के बाद अमेरिका ने जो हमले किए उनमें मारे गए सैनिकों को में दफनाने के लिए शहीद स्मारक का सेक्सन 60 निर्धारित है। सेक्सन 21 में विभिन्न युद्धों में शहीद नर्सों की कब्रें नर्स मेमोरियल के नाम से हैं। 3800 के करीब ऐसे लोगों को जो पहले गुलाम थे और गृह युद्ध में मारे गए सेक्सन 27 में दफनाया गया है। उनकी कब्रों के पत्थरों पर सिविलियन या नागरिक लिखा गया है। कुल मिलकर मरने के बाद भी शहीदों की कब्रों को अलग-अलग हिसाब से वर्गीकृत किया गया है।
शहीद स्मारक में प्रवेश करते ही ‘स्वतंत्रता की घंटी’(Freedom bell) मौजूद है। अमेरिका के भूतपूर्व, वर्तमान एवं भविष्य के सैनिकों के सम्मान में यह घंटी बजाई जाती है। सुबह 8 से शाम 5 बजे तक पर्यटक सैनिकों के प्रति प्यार एवं सम्मान प्रकट करने के लिए इसे बजा सकते हैं। हमने भी घंटी बजाकर सैनिकों के प्रति समान प्रकट किया। फ्रीडम बेल का निर्माण 2001 में गिराये गए ट्विन टावर के लोहे और तांबे से हुआ है।
शहीद स्मारक में तमाम तो हमारे जैसे पर्यटक थे जो मात्र घूमने के लिहाज से आए थे। इसके अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की भी थी तो अपने से संबंधित किसी शहीद के स्मारक पर फूल चढ़ाने आए थे। कुछ शहीदों की कब्रों पर बाकायदा सैनिक सम्मान देते हुए दर्शन करने वाले लोग भी दिखे। कुछ घुड़सवारों की टुकड़ी, कोई सैनिक मार्च करती हुयी गारद भी दिखी।
शहीद स्मारक में ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जान एफ़ कैनेडी और उनकी पत्नी जैकलीन कैनेडी तथा उनके बच्चों बेटे पैट्रिक और बेटी एराबेला की कब्रें हैं। इनको देखने सबसे ज्यादा लोग आते हैं। इनकी कब्र के पास लगातार ज्योति जलती रहती है। कैनेडी अमेरिका के 35 वें राष्ट्रपति थे।
1961 से 1963 तक अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान शीतयुद्ध के दौर में रूस और क्यूबा से संबंध सुधारने में उल्लेखनीय काम किया। तीन साल बाद इस उनकी हत्या कर दी गई। उनके देशभक्ति और मानवता के उद्गार उनकी कब्र के सामने पत्थर पर उत्कीर्ण हैं :
“मेरे प्यारे अमेरिका साथियों यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है, यह सोचो की तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो ! विश्व के मेरे साथियों यह मत पूछो कि अमेरिका तुम्हारे लिए क्या करेगा ! बल्कि यह सोचो की हम सब मिलकर पूरे विश्व के मानव की मुक्ति के लिए क्या कर सकते हैं?”
आज से करीब साथ साल पहले के जान एफ़ कैनेडी के यह उद्गार किसी कल्पना की ही बात रह गई है। जब केनेडी ने यह कहा था तब सोवियत संघ रूस और अमेरिका विश्व के दो ताकतवर ध्रुव थे। आज सोवियत संघ विखंडित हो चुका है और कभी उसका अंग रहे देश रूस और यूक्रेन में युद्ध छिड़ा हुआ है। देश के लिए क्या कर सकते हैं जैसी बातें तो लगभग सारी दुनिया में किताबी हो चुकी हैं।
जान एफ़ कैनेडी की समाधि के सामने ही विशाल एम्फिथिएटर है। शहीद स्मारक में पर्यटक के तौर पर आने वाले लोगों की खुले में सभा के लिए यह एम्फिथिएटर बनवाया गया था । मैदान से थोड़ी ऊंचाई पर स्थित इस जगह से पूरे शहीद स्मारक का नजारा दिखता है।
लौटते में शहीद स्मारक के प्रवेश द्वार पर स्थिति विभिन्न प्रसिद्ध युद्धों से संबंधित चित्र देखे। एक सैन्य टुकड़ी सम्मान पूर्वक वापस आते दिखी। शायद शहीद स्मारक से संबंधित कोई ड्रिल पूरी करके लौट रही थी वह टुकड़ी। वहीं एक युवा नौसैनिक की मूर्ति भी मौजूद थी जिसके साथ हमने भी फ़ोटो खिंचाई।
अरलिंगटन शहीद स्मारक अपने में अनूठा स्मारक है। शहीदों के सम्मान में बनाए गए इस शहीद स्मारक को देखकर लौटते हुए याद आ रही थी बचपन में पढ़ी यह कविता:
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा।“
अरलिंगटन शहीद स्मारक ने इस कविता को पूरे मन से अंगीकार किया है। वहां शहीदों की चिताओं को देखने लोग रोज आते हैं।

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