रिजवान मिले थे जयपुर में। जयपुर के पाकड़ वाले हनुमान मंदिर के पास पक्षियों के लिए दाना, पानी , रोटी का चूरा रखने रोज आते हैं। छोटे पक्षियों, चूहे आदि का दाना-पानी दूसरे न खा जाएं इसके लिए वहां रुककर रखवाली भी करते हैं। पांच-छह साल से आ रहे हैं नियमित। पांच-छह किलोमीटर दूर घर से आते हैं। घण्टे-डेढ़ घण्टे अपनी देख रेख में दाना-पानी देते हैं। बताया कि वहां एक नाग-नागिन का जोड़ा भी है वहां। दिखता रहता है।
पिताजी की देखभाल के लिए कोलकता से जयपुर आये रिजवान। कोलकाता में मछलियों को चारा देने का सिलसिला यहां पक्षियों को दाना देने से शुरू हुआ। पहले सड़क किनारे दाना डालना शुरू किया। वहां उसकी बर्बादी देखकर यहां हनुमान मंदिर के पास पेड़-पौधों के पास चिड़ियों , चूहों आदि को दाना देने लगे।
जीव मात्र से जुड़ाव और छोटे जानवरों के भोजन की बड़े जानवरों से रक्षा करने का भाव बहुत प्यारा है। रिजवान जैसे लोग हर समाज में सकारात्मकता की उम्मीद जगाते हैं।
रिजवान का मतलब होता है -जन्नत का दरोगा। रिजवान जैसे लोग जहां होते हैं वहां स्वर्ग बनता है।
वसीम बरेलवी जी लिखा है:
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
वसीम साहब ने जब यह लिखा होगा तो उनके जेहन में रिजवान जैसे लोग ही उभरे होंगे।
रिजवान से हुई बातचीत का वीडियो नीचे पोस्ट है।
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