Thursday, April 21, 2022

चींटियों के बहाने



आज सोते में करवट लेते हुए जरा सा आंख खुली तो देखा तीन बजे थे। पलट के सो गए। सोचते हुए कि चार बजे उठेंगे। नींद खुली तो सवा पांच बजे गए थे। तय समय से सवा घण्टा लेट। सवा घण्टे का नुकसान का जिम्मेदार कौन ? इस बात पर पौन घण्टे मगजमारी करते रहे। सोचते रहे। इस बीच घड़ी छह बजे के आउटर पर जाकर खड़ी हो गयी। सोचने के चक्कर में सब घण्टे हवा हो गए। अब और नहीं सोचना, सोचते हुए जग गए।
बाहर निकलकर आये। हवा मज़ेदार। सुहानी। फर्स्टक्लास वाली। अहसास दिलाती हुई कि पहले आ जाते तो कितना मजा और ले पाते। लेकिन कहा गया है न -'समय चूकि पुनि का पछताने।'
चारो तरफ पक्षी हल्ला मचा रहे थे। कोई कुहू-कुहू कर रहा था, कोई केहू-केहू। कांव-कांव , आहो-आहो टाइप भी सुनाई दिया। लेकिन पक्षियों में आपस में मारपीट जैसा कुछ नहीं हुआ। न कोई दंगा-फसाद। न कोई पुलिस आई , न किसी का कोई घोसला गिरा। उनके यहां चुनाव नहीं होने का फायदा मिला उनको।
पक्षी की बात से मुझे नवम्बर महीने में जयपुर में देखी गयी चींटियों की याद आई। जमीन पर बने एक बिल से निकलती हुई, उसी में घुसती हुई चीटियाँ बड़ी तेजी से आती-जाती दिखाई दीं थी। बिल बिल्कुल ब्लैक होल सा लगा मुझे, जिसमें घुसती चीटियाँ कहाँ गयीं, मुझे पता ही नहीं चला। उस समय चींटियों के बारे में न जाने क्या-क्या सोचा था, पांच महीने में अब सब भूल गया। इस बीच नई-नई बातें सोच लीं। अब जब उस वीडियो को देखा तो वे नई बातें भी गुम हो गयीं। एक दम नई बातों की सरकार बन गयी। बातों का 'नया मन्त्रिमण्डल' गठित हो गया है।
इस बीच चींटियों के बारे में सरसरी तौर पर पढ़ा। रानी चींटी सर्वेसर्वा होती है। अपने जीवन में लाखों अंडे देती है। 20-25-30 लाख। मतलब दुनिया के तमाम देशों की आबादी के बराबर। रानी चींटी 20 साल लगभग जीती है, जबकि बाकी चींटियां 40-50 दिन। कितना अंतर होता है रानी चींटी और अन्य चींटियों में। यह भी पता चला कि चींटियां लगभग 9 करोड़ साल पहले से पायी जाती थीं। मतलब आदमी से भी सीनियर हैं चींटियां। 12000 तरह की चींटियां पाई जाती हैं। मतलब आदमी से कई गुना अधिक। अगर आदमी और चींटियों का साझा संसार बन जाये तो चींटियां बहुमत में होंगी। उनकी सरकार बन जाएगी। चींटियां बहुमत में होंगी। आदमी अल्पमत में।
चींटियों के संसार में शासन कैसे चलता है पता नहीं। यह भी पता नहीं कि उनके यहां नेट, टीवी, व्हाट्सअप वगैरह हैं कि नहीं, दंगे होते हैं कि नहीं उनके यहां, जातिवाद, परिवारवाद के क्या हाल हैं वहां, छेडछाड और लिंगभेद का भी अंदाज नहीं। बहुत कम जानते हैं अपन उनके बारे में।
जानने को हम इंसान के ही बारे में कितना हैं, जैसा समझते हैं वैसी ही धारणा बना लेते हैं अगले के बारे में।
है कि नहीं ?

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