Thursday, April 07, 2022

किताबें

 कल किसी सिलसिले में एक किताब खोज रहा था। किताब नहीं मिली लेकिन खोजने की प्रक्रिया में तमाम अनपढी , अधपढी किताबों से मुलाकात हुई। किताबें कुछ बोलीं भले नहीं लेकिन हमको लगा कि कह रही हों, क्या हमको अलमारी में रखने भर के लिए लाए थे? मन किया किताबों की अलमारी के पास खड़े होकर एक भावुक वक्तव्य रिकार्ड करके पोस्ट कर दें। लेकिन भावुकता का कोरम पूरा नहीं हुआ। स्थगित हो गया मामला।

तमाम अनपढी, अधपढी किताबें ऐसे जिगरी दोस्तों जैसी होती हैं जिनसे मिलने , बतियाने का बहुत मन करता है। लेकिन सोचते हैं तसल्ली से बैठेंगे। लेकिन फुरसत है कि मिलकर नहीं देती।
पिछले दिनों गीतांजलि श्री जी के उपन्यास रेतसमाधि को बुकर पुरस्कार के लिए नामित करने की खबर आई। मन किया उपन्यास खोजकर देंखे, पढ़ें। लेकिन किताबों की किस रैक में है, याद नहीं आया।
नामवर जी के बारे में संस्मरण लिखते हुए काशीनाथ जी ने लिखा है कि वे अपने बनारस में अपने घर में रखी किताबों के बारे में जानकारी देते हुए कहते थे -'फलानी रैक के फलाने नम्बर पर रखी होगी किताब। भेज देना।' अक्सर उनका अंदाज सही ही निकलता था।
एक सच्चे पाठक और किताब के संग्रही मात्र में यह अंतर होता है।
अब सोचा है कि घर में मौजूद किताबों की लिस्ट बनाएंगे। किताबें कहाँ रखीं हैं और पढ़ी हैं कि अधपढी हैं कि अनपढी इसके भी सूची। पढ़ें भले न सब लेकिन जब मन करें तब मिल तो जाएं।
वैसे भी पढ़ने की रफ्तार बहुत कम हो गयी है। कुल जमा एक-दो घण्टे पढ़ पाते हैं। दफ्तर और दीगर व्यस्तताएं किताबों से दूर रखती हैं।
इसके बावजूद कल दूधनाथ सिंह की 'नमो अंधकारम' जिसमें कुल जमा 116 पेज हैं दो दिन में खत्म की।
किताब की शुरुआत में पिकासो का कथन है -'यथार्थ के अनेक रंग होते हैं और उन सबको समेटने का अंत एक अंधेरे में होता है।'
किताब में गुरु के माध्यम से समाज के धतकरम के कुछ किस्से हैं। गुरु के किस्से बयान करते हुये कालिदास के बारे में निम्न जानकारी दी हुई है:
"तब धर्मप्राण ऋषिकुल ने उस शाप दिया-'तूने गुरु महेश्वर के संगोपन क्षणों का वर्णन किया है। तूने अदृश्य को देखा और अलेख्य को लिखा। तेरी उंगलियों में कोढ़ फूटेगा। अब तुझे कभी चैन नहीं मिलेगा। मित्रहीन , अकेला, बौराया हुआ तू किसी वनपथ पर मरेगा। तुझे चीलकौवे भी नहीं खाएंगे।'
उपरोक्त बात कालिदास रचित कुमार सम्भव के बारे में कही गयी है। इसमें शिवपार्वती के संगोपन क्षणों का वर्णन है। इसके बारे में हरिमोहन झा की खट्टरकाका में बीस-पच्चीस साल पहले पहले पढा था। हाल ही में कुमार सम्भव पढ़ने की उत्सुकता के चलते कालिदास ग्रँथवली मंगाई। किताब आते ही फटाक से कुमार सम्भव वाले अंश देखे। कुछ संगोपन क्षणों का वर्णन पढ़ते ही लगा कालिदास जी के लिए 'उपमा कालिदासस्य' क्यों कहा जाता है।
सोचा था आराम से पढ़ेंगे कालिदास ग्रंथावली। लेकिन तसल्ली मिली नहीं। यह भी अधपढी किताबों में शामिल हो गयी।
किताबें और भी पढ़ी हैं इस बीच। उनके बारे में भी लिखेंगे। जल्द ही। फिलहाल तो किताबों की सूची बनाने का मन है। देखिए कब तक बनती है।

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