Tuesday, May 03, 2022

ईद के बहाने इधर-उधर की



आज ईद है। ईद की बात चलते ही मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह की शुरुआत याद आती है –“रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है।“ पिछले दो साल कोरोना की चपेट में रहे। त्योहार मास्क लगाकर और सामाजिक दूरी रखते हुए मनाए गए। ईदगाह कहानी वाले अंदाज में कहें तो –‘कोरोना के चपेट में पूरे दो साल रहने के बाद ईद आई है।‘
ईद की छुट्टी थी। सुबह तक अलसाये पड़े रहे। कौन हमको नमाज पढ़ने जाना था। लेकिन फिर अचानक मन किया कि चला जाए , देखा जाए ईदगाह, मेला और चहल-पहल। न जाने फिर कब ऐसा खुलापन मिले। क्या पता कोरोना की तरह कोई और बवाल आगे हल्ला बोल दे।
मन में ख्याल आते ही अपन ने उस पर अमल भी कर लिया। दो मिनट में निकल लिए। सबसे पहले इस्टेट की मस्जिद की तरफ गए। ज्यादातर लोग नमाज पढ़कर वापस जा चुके थे। कुछ लोग जिनके घर आस-पास ही थे मिल गए। उनसे गले मिलकर और ईद मुबारक कहकर ईदगाह की तरफ गए।
रास्ते में तमाम लोग आते-जाते-बतियाते-गपियाते-खाते-पीते-चुहलबाजी और हर उस मुद्रा में दिखे जिसे खुशनुमा कहा जा सकता है। कहीं लोग शर्बत पीते-पिलाते, कहीं कुछ और खाते-खिलाते दिखे। चलते-फिरते ठहरकर गले मिलते, दुआओं का आदान-प्रदान करते हुए भी। छोटे-छोटे बच्चे भागते-दौड़ते , रास्तों को गुलजार करते मिले। कुछ बुजुर्ग खरामा-खरामा टहलते , कुछ अपने घर के बाहर चबूतरों पर आरामफर्मा दिखे। जगह-जगह ठेलों पर तरह-तरह के पकवान भी बनते-बिकते दिखे।
ईदगाह की तरफ जाती सड़क पर सफेद चूने की लाइनें बनी हुई थीं। हर तरफ से लोग आ-जा रहे थे। ईदगाह के कुछ पहले गाड़ी आगे जाने की मनाही हो गई। हम उतरकर स्वतंत्र और ज्यादा बेतकुल्लुफ़ हो गए। गाड़ी में चलते हुए कोई नजारा जब तक देखो तब तक वह ओझल हो जाता है। पैदल चलने से फायदा यह कि हर नजारा तसल्ली से, ठहरकर,बार-बार देख सकते हैं - बिना पैसे।
मुफ़्त का नजारा देखते हुए हम आगे बढ़े। सड़क किनारे फुटकर दुकाने सजी हुईं थीं। कुछ में मिट्टी के खिलौने , कुछ जगह चाट-बतासे, हलवा-पूरी। ज्यादातर खाने-पीने की और ऐसे सामानों की दुकानें जिनको लोग आते-जाते खरीद सकें। सड़क किनारे मांगने वाले भी बैठे हुए थे। आते-जाते कुछ लोग इनको भी कुछ देते जा रहे थे।
वहीं टहलते हुए तमाम लोगों से मुलाकात हुई। कुछ को हम जानते थे, कुछ को मुलाकात और गले मिलने के दरम्यान बातचीत में पहचान गए। बाकी से भी विदा होने से पहले इत्ती जान पहचान तो हो ही गई कि फिर मिलने पर याद कर सकते थे –‘ईदगाह के मेले में मिले थे।‘
वहीं घूमते हुए विकास भारती Vikas Bharti से मुलाकात हुई। पिछले दिनों उनके कई फ़ेसबुक पर उनकी ऊर्जावान और मिलनसार पोस्ट देखी थी। रंगमंच से भी जुड़े हैं। उनका हाल में पोस्ट किया डांस भी याद था इसलिए फौरन पहचान में आ गए। मिलने पर उन्होंने मेरे पोस्टों का जिक्र किया कि वे नियमित पढ़ते हैं। हमारी पोस्टों का भी मामला मजेदार है। तमाम लोग मिलने पर मुझे बताते हैं कि वे मेरे पोस्ट्स नियमित पढ़ते हैं। जबकि मुझे लगता है कि बमुश्किल सौ लोग मेरी पोस्टस पढ़ते हैं। फिर ये देखने पढ़ने वाले लोग पोस्ट्स पर कैसे नहीं दिखते। हो सकता है फ़ेसबुक की कोई गड़बड़ी हो या फिर लोग मेरा मन रखने के लिए ऐसा कह देता हों। तमाम दोस्त जो हमको शायद कभी नहीं पढ़ते, मिलने पर पूछते हैं –‘और आपका कविता लेखन कैसा चल रहा है?’ इन मित्रों की नजर में लिखने का मतलब कविता लिखना ही होता है।
विकास के साथ हमारे नामराशि अनूप कुमार जर्नलिस्ट Anoop Kumar Journalist से मुलाकात हुई। वकील, पत्रकार अनूप कुमार ने मुलाकात की फ़ोटो साझा करते हुए, शायद नामराशि होने की फायदा देते हुए, हमको सरल स्वभाव का धनी,खुशमिजाज, साहित्य प्रेमी, लोकप्रिय अधिकारी और परम आदरणीय बताया। हमको अच्छे से जानने वाले शायद इसको पढ़कर पूछें –‘ये कौन अनूप शुक्ल हैं?’
खाने पीने की तमाम दुकानों में ज्यादातर चाट-पकौड़ी की दिखीं। एक जगह मथुरा वृंदावन की स्पेशल ठण्डी लस्सी मिली। दुकान का नाम देखकर बिना लस्सी पिए ही तसल्ली मिल गयी। लोग आराम से लस्सी पीते हुए गर्मी से मुकाबला कर रहे थे।
ईदगाह में ‘संत कृपा जूस कार्नर ‘ भी दिखा। सन्तकृपा जूस कार्नर देखकर लगा हरिकृपा भी हो गयी क्योंकि कहते हैं न -'बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।' सारे पाप नष्ट हो गए :
एक घड़ी , आधी घड़ी, आधी में पुनि आधि,
तुलसी संगत साधु की हरै कोटि अपराध।
वो तो कहो कोई खोजी पत्रकार नहीं मिला वहां वरना खबर का शीर्षक बनाता -'ईदगाह में संत/हरि कृपा।'
वहीं एक जगह 'हलवा पराठा' बनते देखा। मुट्ठी भर मैदा को गोल-गोल फैलाते हुए पूरे तवे में फैलाकर फिर तेल में तलकर एक दम कुरकुरा पराठा बनते देखा। देखकर लगा कि कितना हुनर और अभ्यास का काम है। मैदा जब फैल जाता था तवे पर तब नाखून से उसमें निशान बनाते देखा। शायद हवा न भरे पाए बीच में इसलिए ऐसा कर रहा हो।
मैदा पराठा जरा सी जगह से शुरू होकर पूरे तवे तक फैलते देखकर मुझे 'मुगलों ने सल्तनत बक्श दी' कहानी/ नाटक का किस्सा याद आया। इसमें बताया गया था कि अंग्रेजों ने मुगलों से तंबू भर की जगह मांगी थी। बाद में वह तंबू कलकत्ते से होता हुआ पूरे देश में फैल गया। मुगल बेचारे कुछ नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने तंबू भर की जगह अंग्रेजों को देने का वचन दिया था। इस तरह अंग्रेजी हुकूमत पूरे देश में फैल गयी। पराठे बनने का वीडियो साथ में है।
पराठा बनने के बाद हलवे के साथ बिक रहा था। लोग खड़े-खड़े खा रहे थे। कुछ लोग बंधवाकर ले भी जा रहे थे।
बाजार में लैया-खील बताशे की दुकानें भी थीं। एक जगह एक बच्चा एक बुजुर्ग महिला के साथ खील बेंच रहा था। बच्चे और बुजुर्ग महिला को देखकर ऐसा लगा मानो हामिद अपनी दादी अमीना के साथ ईदगाह में आकर दुकान पर बैठ गया हो।
ईदगाह में नमाज पढ़कर लोग जा चुके थे। बाहर से देखा करीने से पीने के पानी का इंतजाम था। सुबह तमाम लोगों की भीड़ रही होगी। अब तो सब लोग घरों में और मोहल्ले में ईद मना रहे होंगे।
-आगे का किस्सा अगर पढ़ने का मन हो तो इधर पढ़िए:

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