Sunday, June 19, 2022

'लिफ़ाफ़े में कविता' के पंच



पिछले साल Arvind Tiwari अरविन्द तिवारी जी का चौथा व्यंग्य उपन्यास आया – ‘लिफ़ाफ़े में कविता।‘ इसके पहले अरविन्द जी के तीन उपन्यास आ चुके हैं –दिया तले अंधेरा, हेड ऑफिस के गिरगिट और शेष अगले अंक में। ‘लिफ़ाफ़े में कविता’ का इंतजार काफी दिनों से थे। 'लिफ़ाफ़े में कविता' के बाद अब अरविन्द तिवारी जी के अगले उपन्यास का इंतजार है जो उन्होंने होटलों पर केंद्रित करके लिखना शुरू किया है !
हिन्दी के मंचीय कवि सम्मेलनों पर केंद्रित उपन्यास 'लिफ़ाफ़े में कविता ' की तमाम समीक्षाएं आ चुकी हैं। हमने भी एक ड्राफ्ट लिखा है। जब तक उसको फाइनल करें तब तक आप इस उपन्यास के पंच वाक्य पढ़ें । उपन्यास के बारे में भी जल्दी ही लिखने की कोशिश की जाएगी!
1. आज मंच पर कवि नहीं होते हैं। सरल भाषा का प्रयोग करूँ तो नौटंकीबाज कवि ज्यादा रुपए कमाते हैं।
2. आजकल गीतकार या वीर रस का कवि तभी मंच पर जमता है ,जब वह चुटकुलों से शुरुआत करता है।
3. सड़कें बहुउद्देशीय थीं, बरसात में नाले की भूमिका में आ जाती थीं।
4. सूअर और बंदरों का इलाज था ,मगर ये कवि लाइलाज बीमारी की तरह पूरे कस्बे में फैलते जा रहे थे।
5. जगतपुर के अधिकांश कवि ’हूट’ होने में अपनी सार्थकता समझते थे।
6. कवि सम्मेलन में कविता से बड़ी दारू है।
7. कवि सम्मेलन में कवि आदमी नहीं रहता, वह दारू में तब्दील हो जाता है।
8. कवि-सम्मेलनों की दुनिया की लिमिट बस सम्मान और अपमान के बीच रहती आई है। ये कवि-सम्मेलन की दुनिया के ओर-छोर हैं। इन्ही दोनों सीमाओं के भीतर उठा-पटक ,राजनीति, साहित्य वगैरह समाए हुए हैं।
9. मंचीय कवि की सीमा ‘अर्थ’ तक सीमित है। दोहा बड़ा न चौपाई,सबसे बड़ी कमाई।
10. मंच पर नए प्रयोग या नई लिखी कविता ,रक्षा विभाग के मिसाइल परीक्षण की तरह होती है।
11. भारत देश की यह विशेषता है कि यहाँ काम कोई भी हो, बिना सियासी ‘अप्रोच’ के संभव ही नहीं होता।
12. कविता की तरह रेलवे के टाइम-टेबल को रटना मंचीय कवियों के लिए जरूरी होता है।
13. कोई कवि जब चार मंचीय गीत लिख लेता है तो सबसे पहले रेलवे टाइम-टेबल खरीदता है।
14. मंदबुद्धि व्यक्ति नौकरी में तो चल जाता है, कवि सम्मेलन में चालक और शातिर होना पड़ता है।
15. दुनिया का हर कारोबार झूठ की बुनियाद पर खड़ा है। हर धंधे में मार्केटिंग करनी पड़ती है। कवि सम्मेलन भी इससे अछूते नहीं हैं।
16. मंच के कवि को अपमान की परवाह नहीं होनी चाहिए। यदि आप स्वाभिमान के चक्कर में पड़े तो कार्यक्रमों से हाथ धो बैठेंगे।
17. मंचीय कवि के लिए सबसे बड़ा पैसा होता है। वह पैसे के अलावा किसी के आगे नहीं झुकता। पैसे के आगे वह अपना परिवार, मित्र, गाँव-जवार, सिद्धांत आदि को छोड़ देता है।
18. इतिहास गवाह है, जब किसी मंचीय कवि ने पैसे के अलावा किसी से दोस्ती की है तो वह बरबाद होकर ही रहा।
19. बड़ा गुंडा बनने के लिए मरणासन्न पिटाई अपरिहार्य है ,जबकि बड़ा कवि बनने के लिए साधारण पिटाई से काम चल जाता है।
20. अगर आपको कोई पुरस्कार मिला है, तो अखबार में कहबर छपने के बावजूद मित्र आपकी उपलब्धि से अनजान रहेंगे।
21. अच्छी खबर मित्रों को फोन करके बतानी होती है ,जबकि बुरी खबरों को मित्र अपने आप सूंघ लेते हैं।
22. बुरी खबारे सूंघने के बरक्स ही कवियों को प्रतिभाशाली कहा जाता है।
23. साहित्यिक कवि के लिए जहां भावुक होना सद्गुण माना जाता है, वहीं मंचीय कवि के लिए दुर्गुण। विचार-विमर्श और गोष्ठी के चक्कर में पड़ा मंचीय कवि, अंतत: बरबाद हो जाता है।
24. साहित्यिक कवि पुन: आदमी बन सकता है, मगर मंचीय कवि के लिए आदमी बनने की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं।
25. मंचीय कवि तभी तक कवि है ,जब तक वह मंच पर बुलाया जा रहा है। बुलाया जाना बंद होते ही मंच का कवि मर जाता है।
26. मंच की सियासत दिल्ली की सियासत से कहीं ज्यादा जटिल है।
27. बुढ़ापा जवानी के कुकृत्यों को ढक देता है।
28. घर में जब पैसा आता है तो विचारधाराएं बदल जाती हैं।
29. एक ही तरह के भ्रष्टाचार से भ्रष्टाचारी ऊब जाता है , तो वह भ्रष्टाचार के अभिनव तरीके ईजाद कर लेता है।
30. साहित्य अकादमी का अध्यक्ष जिस विधा का साहित्यकार होता है ,वही विधा अकादमी पर हावी हो जाती है।
31. सरकारी पैसे को अधिकारियों से प्राप्त करना बेहद मुश्किल और जोखिम भरा काम होता है।
32. हर बड़े कवि-सम्मलेन में लोकल कवि को उसी तरह पहले पढ़वाया जाता है ,जैसे नक्सली क्षेत्र में महत्वपूर्ण ट्रेन के आगे ‘पायलट इंजन’ चलाया जाता है।
33. जब कोई कवयित्री श्रंगार के साथ ओज और हास्य भी पढ़ने लगती है, तो वह बड़ी बन जाती है।
34. मंचीय कवि जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है ,उसकी इंद्रियाँ बेलगाम होने लगती हैं।
35. कवि-सम्मलेन के कवि के पास अगर उपनाम नहीं है तो समझ लो वह सरकार के उस मंत्री के समान है ,जिसके पास कोई विभाग नहीं होता।
36. जिस दफ्तर का अधिकारी कवि होता है ,उसका चपरासी तक समीक्षक हो जाता है। उस दफ़तर के छोटे बाबू अपने को गुलाबराय और बड़े बाबू रामचन्द्र शुक्ल मानने लगते हैं।
37. अधिकारी कवि हो तो कर्मचारी को सिरदर्द के अलावा कोई दर्द नहीं होता।
38. वीरों का रक्त देश की सीमाओं पर बहता है ,जबकि वीर रस के कवियों का दारू के ठेके पर।
39. प्रकाशक कवि की कविता को नहीं, हैसियत को देखता है।
पुस्तक का नाम : लिफाफे में कविता (व्यंग्य उपन्यास) ;
लेखक : अरविंद तिवारी
विधा – उपन्यास ; संस्करण – 2021 ;
पृष्ठ संख्या – 192 ; मूल्य – 400/- रुपए
प्रकाशक – प्रतिभा प्रतिष्ठान, 694- बी, चावड़ी बाजार, नई दिल्ली 110006

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