Saturday, June 04, 2022

साइकिल दिवस के बहाने



कल साइकिल दिवस था। अंतर्राष्ट्रीय साइकिल दिवस। चार साल पहले से (२०१८) शुरु हुआ साइकिल दिवस । यूनाइटेड नेशन की जनरल असेम्बली में तय हुआ कि ३ जून को मनाया जाएगा साइकिल दिवस तो मनाया जाने लगा।
साल की हर तारीख़ पर किसी न किसी ’दिवस’ का क़ब्ज़ा होता जा रहा है। जल्द ही ऐसा होगा कि साल की हर तारीख़ पर कोई न कोई दिन मनाया जाएगा। जो दिन ख़ाली होगा उसको ‘नो दिवस डे’ मनाया जाएगा।
सुबह शाहजहाँपुर साइकिल क्लब की तरफ़ से साइकिल दिवस मनाया गया। कैंट गेट पर इकट्ठा हुए। फूल, गुलदस्ता, फोटोबाज़ी की भरमार। एक बच्ची ने मुझे गुलदस्ता दिया। हम उसका नाम भी न पूछ पाए। मार्निंग क्लब के साथी डाक्टर अनिल त्रेहन जी और इंद्रजीत सचदेव जी ने भी गुलदस्ता दिया। फ़ोटो हुए। सड़क पर साइकिल वालों का ही क़ब्ज़ा जैसा हो गया। कारें बेचारी सहमी सी , बगलिया के निकल रहीं थीं। एक एम्बुलेंस भी देर में निकल पाई।
इंसान जब बहुमत में होता है तो अपने हर कदम को जायज़ मानता है, भले ही वह दूसरे के लिए नागवार हो या ग़ैर क़ानूनी।
फ़ोटो के बाद साइकिल दिवस के बारे में कुछ बोलने के लिए कहा गया। अचानक मोबाइल मुँह के सामने। हम साइकिल के बारे में सब भूल गये। २०१८ याद नहीं रहा। यूनाइटेड नेशन दिमाग़ से दफ़ा हो गया। फिर क्या कि विदेशी चीजें मौक़े पर साथ नहीं देतीं।
वो तो कहो सेहत, पर्यावरण , बचत सब इफ़रात में याद था तो भी बोल दिया अटकते हुए। सब टेप होकर इधर-उधर टहल रहा। आपको भी सुनना हो तो यहां दिए लिंक में है। देखिए। सुनिए।
बड़े-बड़े लोग जो इतिहास को भूगोल में और विज्ञान को अंधविश्वास में मिला देते हैं वो इसीलिए कि अचानक पूछने पर उनके दिमाग़ का फ़्यूज़ उड़ जाता होगा। रटा हुआ याद नहीं आता होगा। पुराना श्लोक है न
पुस्तक स्था तु या विद्या पर हस्तगतम धनम,
कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम।
पुस्तक में स्थित विद्या और दूसरे के हाथ हुआ धन मौक़ा पड़ने पर काम नहीं आता।
आजकल पुस्तक की जगह गूगल लिखना उचित होगा।
बहरहाल विस्तृत फ़ोटो ग्राफ़ी के बाद साइकिल चलाने के लिए निकले। क़रीब आठ किलोमीटर साइकिल चलाई। लौट के आए तो साइकिलों का जमावड़ा लगा था। अपर पुलिस निरीक्षक टी सरवन जी ने भी साइकिल चलाने से जुड़ी अच्छी बातें बताईं।यहाँ तक तो ठीक। लेकिन फिर पता चला कि उनकी टीम ने कुछ मोटर साइकिल वालों के चालान कर दिए। किसी की नम्बर प्लेट ग़ायब थी कोई एक में पाँच। हेलमेट न लगाना तो आम चलन है शहर में।
लौटते हुए वहीं एक आदमी दिखा। पटरे वाले जाँघिये के अलावा क़तई दिगम्बर। दीन-हीन कमजोर आवाज़। हमको देखते हुए चुप था। पहली बार दिखा वह वहाँ। कुछ बात करने की कोशिस की लेकिन समझ नहीं आया।
इस बीच किसी ने कहा -पचास रुपया कमा लिए अब तक।
हम कुछ समझ न पाए कि क्या कहें। साइकिल चलाते हुए घर आ गए।

https://www.facebook.com/share/p/AQFfK9U3RokHVpjV/

No comments:

Post a Comment