Saturday, July 16, 2022

गुलमर्ग में गंडोला राइड



'गुलमर्ग में गंडोला' मतलब 'ग' वर्ण की आवृत्ति के चलते अनुप्रास अलंकार हो गया। अलंकार तो हुआ ही साथ में गुलमर्ग यात्रा भी हो गयी।
न जाने कब से गुलमर्ग, पहलगाम, श्रीनगर सुनते आए थे। घूमने का, देखने का सुयोग अब बना।
अभी कुल जमा दो ही दिन हुये कश्मीर आये। लेकिन लगता ऐसा है न जाने कब से डेरा तम्बू यहीं जमा है। दो दिन में श्रीनगर में लगभग बगीचे और देखने के लिए मशहूर चीजें देख चुका। कुछ के बारे में लिखा। बाकी का उधार है। दिन भर घूमते हैं, रात को थक जाने के चलते लिखने का मन नहीं होता। फिर सुबह लिखते हैं तो जितना हो सकता है उतना लिखते हैं, इसके बाद घूमने निकल जाते हैं।
तमाम लोगों ने पूछा है -'अकेले क्यों आये?घर वालों को क्यों नहीं लाये?'
अकेले आने का कारण यही कि बहुत तेज घुमास लगी थी। कहीं भी निकल लेना चाहते थे। एक मित्र ने काश्मीर सुझाया तो यहाँ आ गए। पत्नी को आराम का मूड था। वैसे भी वो हर काम प्लान बनाकर , तसल्ली से , पूरा परफेक्शन के साथ करती हैं। हमारी तरह नहीं कि झोला उठाया चल दिए। अलबत्ता हमारी सब तैयारी उन्होंने ही कर दी। कहा -'जा बेट्टा जी ले जिंदगी, घूम ले कश्मीर।'
ग्रुप में घूमने के फायदे हैं लेकिन अकेले घूमने के भी कम मजे नहीं हैं।जहां मन आये चल दो, जहां दिल करे रुक जाओ। जिधर मन करे खा लो, रुक जाओ। मुझे तो पूरा मजा आ रहा है।
आज सुबह निकले श्रीनगर से गुलमर्ग के लिए। हल्की बारिश हो रही थी। लग रहा था गुलमर्ग में गंडोला राइड नहीं हो पाएगी।
अच्छा पहले गंडोला तो बता दें। गुलमर्ग में रोप वे ट्राली से यात्रा को गंडोला राइड कहते हैं। दुनिया में सबसे बड़े और उन है केबल कार प्रोजेक्ट्स में से एक है गुलमर्ग गंडोला। 1998 में पहला चरण पूरा हुआ , दूसरा दो साल के रिकार्ड समय मे पूरा हुआ। बिना गंडोला राइड के गुलमर्ग यात्रा अधूरी मानी जाती है।
अपनी गंडोला राइड कल ही ऑनलाइन बुक करा ली थी। 740 रुपये में।
आज सुबह नाश्ता करके निकले होटल से। पानी थोड़ा तेज हो गया था। लगा कि थोड़ा और जोर लगा देगा तो गंडोला राइड दाएं-बाएं हो जाएगी। लेकिन जो होगा देखा जाएगा सोचते हुए निकल ही लिए।
रास्ते में लाल चौक दिखा। श्रीनगर का चर्चित लाल चौक। जहां हम ठहरे हुए थे होटल में वहां से थोड़ी ही दूर पर है। अच्छा मार्केट भी है। लौटकर घूमेंगे तसल्ली से।
रास्ते में बारिश और तेज हो गई। पहाड़ों ने बादलों की चादरें ओढ़ लीं। घाटियां भी दिखनी कम हो गयीं।
कुछ ही देर में हम पहुंच गए गुलमर्ग।बाहर की गाड़ी अंदर नहीं जाने देते गुलमर्ग में आमतौर पर। लेकिन सेना की मेस में ठहरने की बात कहकर अंदर आये। सीधे गंडोला राइड के लिए भागे।
पानी मे भीग गए थोड़ा। लगा छाता ले लें। लेकिन जबतक कुछ और सोंचे तब तक गंडोला वाली जगह पहुंच गए। तमाम लोग गाइड लेने की जिद करने लगे। घुमा देंगे, जल्दी पहुंचा देंगे, लंबी लाइन है। केवल 1000 रुपये, 5 हंड्रेड ओनली। सबको अनसुना करके हम लाइन में लग गये। कुछ देर में ट्राली में।
चार लोग थे ट्राली में। एक जयपुर का,एक दिल्ली का, तीसरा लोकल और चौथे हम। ट्राली चलते ही हम फोटो, वीडियो में जुट गए। नीचे घाटी, पहाड़, बादल, झरने और लोग दिख रहे थे। बीच बीच में कुछ झोपड़ियां भी दिखीं। उनमें लोग रहते हैं। मौसम ठीक रहने तक रहने के बाद सर्दी के मौसम में दूसरी जगह चले जाते हैं।
दिल्ली वाली सवारी बहुत वोकल थी। बोलती ही जा रही थी। शहर का असर। दिल्ली बड़बोली है। वह बीच में गाली-गलौज का छौंक भी लगाता जा रहा था। जिसके चलते जयपुर वाला कह रहा था -'साले इसका वीडियो क्या बनायें? अपलोड कैसे करेंगे?' अगला थोड़ी देर को चुप हो गया।
कुछ ही देर में हम ऊपर पहुंचे। ट्राली रुकी। हम निपटान सुविधा का उपयोग करने के लिए लपके। बेध्यानी में महिला शौचालय में घुसने को हुए। वहां मौजूद आदमी ने ध्यान दिलाया। हम जीभ दबाकर शरमाते हुए सही जगह पहुंचे। निपट कर सहज हुए। 10 रुपये फीस।
इस बीच बारिश थम गई। धूप निकल आई। सूरज भाई ने हमारा सब इंतजाम चौकस कर दिया। बड़ा ख्याल रखते हैं हमारा सूरज भाई। जहां पहुंचते हैं, मौसम ठीक कर देते हैं।
हमने एकाध फ़ोटो लिये अपने। फिर एक परिवार के पुरुष सदस्य को कैमरा थमा दिए इस अनुरोध के साथ कि पेट के ऊपर की ही फोटो लें। उनके साथ मौजूद लड़की ने मजे लिए -अंकल इतना स्मार्ट लग रहे। पूरी फ़ोटो खिंचवाईये।' हम शरमा गए। उसने फोटो तो खींचा लेकिन कैमरा कहां तक झूठ बोलता। फोटो जैसे हम हैं वैसी ही आई। लड़की की स्मार्ट वाली बात झूठ निकली। लड़कियां भी कम झूठ थोड़ी बोलती हैं।
वहां जगह-जगह लोग फ़ोटो खींच रहे थे। कोई घोड़े पर सवारी कर रहा था। कोई खरीदारी कर रहा था। भेलपुरी, कहवा, काफी जगह-जगह मिल रहा था।
जगह-जगह लोग कपड़े बेंच रहे थे। ग्राहकों को समझा, पटा रहे थे। जहां आदमी होता, बाजार लग जाता है।
एक चेन्नई के युवा दंपत्ति अपने छोटे बच्चे के साथ अकेले फ़ोटो खींच रहे थे। हमने उनकी फोटो खींच दी। दो मिनट में कई पोज। बहुत खुश हुए बालक लोग। इतने थैंक्यू बोले कि हम गिनती ही न कर पाए।
जमीन में कीचड़ हो गया था। जूता भीग सा गया था। लेकिन हम बचकर चलते रहे। भीगने को भी हुए, सर्दी भी लगी लेकिन थोड़ी ही देर में सब सामान्य।
एक दुकान पर बैठकर चाय पी। 40 रुपये की। पानी मुफ्त। एक पंजाबी परिवार वहां आया। उनमें तय नही हो पाया काफी देर कि मैगी प्लेन लें या वेज वाली। प्लेन 60 रुपये की,वेज वाली 100 रुपये की। आखिर में कुछ बीच का रास्ता निकला। आधी प्लेन, आधी वेज। हमको लगा अकेले घूमने का यही फायदा कि किसी काम के लिए मतविभाजन नही करना पड़ता।
घोड़े वाले सवारियां पटा रहे थे। उनसे निर्लिप्त एक घोड़ा वहीं टहलते हुए घास खा रहा था। पत्थरों के बीच उगी घास को दांत बचाते हुए खाना हरेक के बस की बात नहीं। यह वही कर सकता है जिसको घास की कीमत पता है। घोड़ा दुबला-पतला था। घोड़ो के यहां कोई बीपीएल की स्कीम चल रही होती तो उसका लाभ उठाने की पात्रता हासिल कर सकता था। मिलना न मिलना अलग बात। कोई भी स्कीम आती है तो उससे जुड़े घपले साथ लाती है।
हमने यो ही जानने के लिए घोड़े की यात्रा की कीमत पता करने की कोशिश की। अगले ने निगाहों से मेरा एक्सरे करते हुए 1000 रुपये बताई।फौरन 50% डिस्काउंट देते हुए 500 रुपये बता दिए। हमने पूछा रात को घोड़े कहाँ रखते हो। उसने बताया नीचे उतर जाते हैं। सभी योग ऐसा करते हैं।
शाल बेचने वाले से हमने पूछा-'जिनको बेंच रहे थे, बेंच पाए शाल?' वो बोला -'हां हो गया मामला।'
बताया कि वे लोग पास के गांवों से लाते हैं शाल आदि। करीब सौ चूल्हे का गांव है। 3-4 किलोमीटर दूर है गांव। रोज पैदल आते हैं। घण्टा भर लगता है करीब। हमने सोचा हम भी पैदल आते तो 740 रुपये बचते। लेकिन अब क्या फायदा सोचने से। फिर भी ऑनलाइन बुकिंग से हमारे 100 रुपये तो बचे जो हमारी ट्राली में आये लोगों ने किसी एजेंट के माध्यम से लेने पर ज्यादा ख़र्च किये।
एक जगह फ़ोटो लेने के लिए खड़े हुए तो फिसल गये। हम तो सम्भल गए लेकिन हमारा आईफोन मुंह के बल घास में गिरा। जो मोबाइल सिवा डाटा, सिग्नल, नेटवर्क के अलावा किसी और चीज को मुंह नहीं लगाता था उसके मुंह में घास और संग में मिट्टी। समझ लो कितनी बेइज्जती महसूस हुई होगी। लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था। हमने मोबाइल की घास, मिट्टी और अदृश्य आंसू पोंछकर उसको प्यार किया। उसका मूड ठीक हो गया। चलने लगा। प्यार में बड़ी ताकत होती है।
एक परिवार में बच्ची फ़ोटो के लिए पोज देने के बजाय भाग रही थी। नीचे रेलिंग के पास तक पहुंच गई। उसकी माँ ने भागकर उसको पकड़ा । पीठ पर गुस्से से धौल जमाने के लिए हाथ उठाया। हाथ पीठ तक पहुंचते-पहुंचते गुस्सा प्यार में बदल गया। पीठ सहलाते हुए उसको प्यार करके फिर फ़ोटो खींचने लगी। इस बार बच्च्ची भी मनमाफिक पोज देने लगी।
लौटने का टाइम हो गया। हम वापस लौट लिए। लौटते में भी वही वीडियो, वही फोटो। अल्बतत्ता एक ट्रेकिंग करते बच्चों। का दल दिखा। वह ट्रेकिंग करते हुए ऊपर जा रहा था।
नीचे पहुंचते ही ड्राइवर का फोन आ गया। हमको निकलते ही कई ड्राइवरों ने घेर लिया लोकल राइड के लिए। लेकिन हम सबको मुस्कराते हुए मना करते हुए गाड़ी में बैठ गए। ड्राइवर हमको रहने की जगह छोड़कर नीचे लोकल जगह रहने चला गया। वह कल आएगा लेने। तब तक हम गुलमर्ग में मजे करेंगे।
अभी शाम के छह बजने वाले हैं। सूरज भाई जाने के पहले सारी धूप हमारे सामने के बगीचे में उड़ेलने कर मैदान को चमकाने के मूड में दिख रहे हैं। बहुत खूबसूरत दिख रहा है मैदान। पहाड़ और पूरी कायनात। आप भी देखिए हमारी पोस्ट की हुई तस्वीरों में। तब तक हम जरा बाजार तक टहल कर आते हैं।

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