Thursday, September 22, 2022

नदी के पेट पर शंख बनाती लहरें



आज बड़े दिन बाद सुबह टहलने निकले। पैदल। सड़क पर आए तो लगा साइकिल से चला जाये आज। जहां लगा वहीं से लौट लिए। बीस कदम लौटने के बाद लगा आज पैदल ही सही। फिर लौट लिए। दुविधा में दो बार इधर-उधर हुए। अंततः पैदल ही निकले।
दुविधा का कारण विकल्प था। साइकिल और पैदल के विकल्प में एक चुनने में दुविधा। दुविधा का जन्म विकल्प की मौजूदगी से होता है। जितने अधिक विकल्प होंगे उतनी अधिक दुविधा होगी। तर्क का जामा पहनाया जाए तो किसी मामले में दुविधा की मात्रा विकल्पों की सँख्या के समानुपाती होती है।
गेस्ट हाउस के सामने ही तीन महिलाएं खड़ी बतिया रहीं थीं। सुबह की सैर के लिए निकली होंगी। उनके खड़े होने की स्थिति ऐसी थी कि अगर उनके खड़े होने के बिंदुओं को मिलाया जाए तो समबाहु त्रिभुज बन जाता। कमर पर हाथ रखे बतिया रहीं थीं। निश्चिंतता से। कमर पर हाथ रखकर खड़ा इंसान निश्चिन्तता का पर्यायवाची होता है।
सड़क पर दो कामगार महिलाएं खड़ी बतिया रहीं थीं। उनके चेहरे पर व्यस्तता पसरी थी। दुप्पटा गले और कमर के बीच किसी मेडल की तरह पहने महिलाएं जल्दी-जल्दी बतिया कर काम पर लग जाना चाहती थीं।
एक आदमी घुटन्ना पहने तेज साइकिल चलाता जा रहा था। सर नीचे लिए आदमी हर बार पैडल को लतिया सा रहा था। मानो जल्दी जल्दी चलने के लिए हड़का रहा हो -'अलसिया क्यों रहा है बे तू। जल्दी चल।' पैडल बेचारा चुपचाप पंजो के इशारे पर गोल-गोल घूम रहा था।
पार्क में एक आदमी मुंडी पैरों के बीच छिपाए योग कर रहा था। मुद्रा से ऐसे लग रहा था मानों अपने किये पर शर्मिंदा हो।
मुंह पैरों के बीच करके माफी मांग रहा हो कायनात से। वहीं पर एक महिला अपनी बच्ची के साथ खड़ी पार्क के चबूतरे की दीवार को धकियाती हुई कसरत कर रही थी। पास ही एक आदमी पार्क की रेलिंग को जोर-जोर से हिलाते हुए कसरत कर रहा था। लेकिन उसका अंदाज ऐसा जैसा लोहे की रेलिंग उखाड़कर घर ले जाना चाहता हो।
तिराहे पर तैनात सुरक्षा जवान अपनी राइफल नीची किये निर्लप्त भाव से चौकन्नी निगाह से इधर-उधर देखता ड्यूटी पर तैनात था।
पुल के नीचे की सड़क उखड़ी थी। गिट्टियां निठल्लों की तरह सड़क पर मुंह बाए पड़ी थीं। गिट्टियों के बीच की खाली जगह पर बरसाती पानी ने अपना तम्बू तान लिया था और कीचड़ में तब्दील होकर अपना जलवा बिखेर रहा था।
गंगापुल पर लोग तेजी से आ-जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि पूरा उन्नाव बरास्ते शुक्लागंज कानपुर में घुसा आ रहा हो। थोड़ा बहुत कानपुर भी रिटर्न गिफ्ट की तरह उन्नाव में घुस रहा था।
पुल पर से गुजरता एक आदमी अपनी बिटिया को स्कूल छोड़ने जा रहा था। बिटिया पीछे बस्ता लिए सतर्क बैठी थी। शुक्लागंज में खाये पान मसाले की पीक को अपने जिले में थूकने की मंशा से उसने स्कूटी चलाते हुए गर्दन को जिराफ की तरह लम्बी करके बीच सड़क पर पीक जमा कर दी। सड़क की बिना पैसे की रँगाई हो गयी। मुंह से पीक निकलने के कारण हल्की हुई स्कूटी फिर तेज हो गयी।
नदी का पानी लहराते हुए मस्त बह रहा था। किसी रईस की तरह 'जल-धन से पूर्ण' नदी निश्चिन्त होकर बह रही थी। पानी की लहरें नदी के पेट पर शंख जैसे बना रही थी। नदी के पेट पर बनते हुए शंख ' हर हर महादेव' मुद्रा में आगे बढ़ते जा रहे थे।
नदी के पानी में जगह-जगह बुलबुले भी बन रहे थे। गोया नदी का पेट गुड़गुड़ कर रहा हो। गैस बन रही हो नदी के। डकार लेते हुए गैस छोड़ती जा रही हो। नदी जब चलती है उद्गम से तो दुबली-पतली, छरहरी, अल्हड़ सी होती है। आगे बढ़ते हुए रास्ते ने न जाने कहाँ-कहाँ का कूड़ा करकट खाती हुई बहती है। एसिडिटी हो जाती होगी नदी के। डाइजीन खाते रहना चाहिए नदी को। ज्यादा एसिडिटी से माइग्रेन हो सकता है नदी को। भयंकर सरदर्द का कारण। इन्जेक्शन लगवाने पड़ेंगे ठीक होने के लिए।
पुल पर बढ़िया हवा हवा बह रही थी। पानी के ऊपर बहते हुए ऐसे भी हवा का मूड चकाचक हो जाता है। आज धूप न होने के कारण और भी मस्त लग रहा था। हमारे बालों को छेड़ती हुई हवा बहुत शरारती लग रही थी। लेकिन ऐसी शरारतों का बुरा भी तो नहीं माना जा सकता है।
इस बीच वहां बच्चों को ले जाने वाली स्कूल वैन वहां खड़ी हो गयी। सीएनजी खत्म हो गयी थी वैन की। दूसरी वैन के इंतजार में सब रुक गए। वैन में बच्चे आगे-पीछे करके ठूंसे हुए थे। बारह-पन्द्रह बच्चे होंगे।
बच्चे सेंट एलाओसिस में पढ़ते हैं। इम्तहान चल रहे हैं बच्चों के। हर दूसरे बच्चे के हाथ में उसकी नोटबुक। एक बच्ची ने बताया वह सातवीं में पढ़ती हैं। केमिस्ट्री का इम्तहान है आज। साढ़े सात बजे से। देरी होने से छूट सकता है। ज्यादा देर होगी तो पापा को फोन करेगी। पापा ने कहा है कोई परेशानी हो तो फोन करना। फौरन आ जाएंगे। फोन स्कूल ले जाना एलाउड नहीं है। वैन वाले भैया के फोन से करेगी। पापा, मम्मी भैया सबके फोन नम्बर याद हैं।
बात करते हुए बच्ची वैन से बाहर आ जाती है। साथ में उसकी सहेली भी। बताती है -"पहले सेंट मेरी में एडनिशन लेने वाले थे। वहाँ सिर्फ लड़कियां पढ़ती हैं।फिर यहाँ भी लड़कियों को भी परमिशन हो गयी तो यहीं आ गए। लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते हैं सेंट एलाओसिस में। यहां गर्ल्स की बहुत रेस्पेक्ट है। कोई छू नहीं सकता गर्ल्स को।" बच्ची के मन में अपने स्कूल की अच्छाई के प्रति गर्व का भाव है। 45 बच्चों में सिर्फ पांच लड़कियां हैं क्लास में।
वैन में कक्षा छह में पढ़ते बच्चे ने बारिश के बारे में अपने विचार बताये -"स्कूल में रहते एक बूंद नहीं बरसेगा। घर पहुंचते ही बरसने लगेगा।"
बच्चों के फोटो लिए तो कुछ ने वी का निशान बनाया। कुछ ने मुंह पीछे कर लिया। एक छुटकी बच्ची चुपचाप सारे कार्यकलाप को मासूमियत से देखती रही। नीचे उतरी तो बात की। अपर्णा है नाम बच्ची का। कक्षा एक में पढ़ती है। फोटो ली तो और मासूमियत पसर गयी चेहरे पर।
इस बीच दूसरी वैन आ गयी। बच्चे फटाफट सवार होकर चले गए। हमने हाथ हिलाकर सबको बाय बोला और बेस्ट आफ लक बोला इम्तहान के लिए। बच्चों ने थैंक्यू अंकल बोला। सुनकर नदी का पानी लहराया। शायद नदी मुस्कराई हो।
लौटते हुए एक आदमी दोनों हाथ जेब में डाले आते दिखा। देर तक हाथ जेब में डाले रहा। देखा तो जेब में घुसी हथेली से पैंट ऊपर उठाए थे। पेंट ढीली थी। बेल्ट थी नहीं। पैंट को नीचे सरकने से बचाने के लिए जेब में घुसी मुट्ठी से खूंटी की तरह पैंट को थामे हुए थे। उसकी मुट्ठी निर्दलीय विधायकों की तरह पैंट की सरकती हुई अल्पमत की सरकार को संभाले हुए थी।
आगे सड़क पर एक महिला दोनों हाथों में भरी पानी पानी की बाल्टियां लाती दिखी। पानी की कोई बूंद नीचे छलक न जाये इसलिए बहुत सावधानी से चल रही थी सड़क पर।
बीच सड़क पर एक गाय अपने बछड़े को दूध पिला रही थी। बछड़ा दूध पी रहा रहा था। गाय बछड़े को जीभ से सहलाती हुई अपना वात्सल्य प्रकट कर थी। एक महिला गोद में बिनी हुई जलाने की लकड़ियां लिए हुए चली जा रही थी।
सुबह हो गयी थी।

https://www.facebook.com/share/p/2CE8dtjWZVeX3neQ/

No comments:

Post a Comment