निशात बाग में लोग ही लोग थे। पिछले साल जब इसे देखने आए थे तो मौसम सुहाना था। इस बार गर्मी थी। पिछली बार हम अकेले थे। इस बार लोग साथ थे। पिछले साल की तमाम बातें याद आ गईं।
निशात बाग का अर्थ होता है- खुशियों का बगीचा। देखकर सही में मन खुश हो गया। दिल बाग-बाग हो गया।
निशात बाग जब बना तब मुगल बादशाह शाहजहाँ गद्दीनशीन थे। बाग को बनवाने वाले अब्दुल हसन रिश्ते में उनके ससुर थे। उनकी बेटी मुमताज महल शाहजहाँ की बेगम थीं। बाग की खूबसूरती से शाहजहाँ बहुत खुश हुए होंगे और उनके मन में तमन्ना रही होगी कि यह खूबसूरत बाग उनके ससुर उनको भेंट कर देंगे। तमन्ना क्या ऐसा सुना जाता है कि शाहजहाँ ने तीन बार इस बात की मंशा जाहीर की। लेकिन उनके ससुर साहब ने ऐसा नहीं किया। बादशाह शाहजहाँ को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने बगीचे में पानी की सप्लाई रुकवा दी। बाग सूखने लगा।
बादशाह शाहजहां द्वारा उनको भेंट न किए जाने पर बाग की पानी की सप्लाई रुकवा देने का काम उसे तरह का है जैसे किसी कालोनी का मेन्टीनेंस देख रहे किसी को परेशान करने की मंशा से किसी के घर की मरम्मत न कराएं पानी रोक दें, बिजली काट दें, सीवर लाइन चोक करवा दें। मनमानी का ये शाही अंदाज सदियों पुराना है।
शाहजहाँ का यह अंदाज उसी तरह का था कि जैसे लड़के वाले लड़की वालों से जिंदगी भर भेंट-उपहार की आशा लगाए रहते हैं। गनीमत है कि निशात बाग भेंट न देने पर मुमताज महल को परेशान करने के किस्से नहीं मिलते। हुए भी होंगे तो उस समय दहेज विरोधी कानून बना नहीं था। महारानी कहाँ एफ़ आई आर दर्ज करवातीं?
पानी की सप्लाई रुक जाने से निशात बाग उजाड़ होने लगा। पानी बादशाह ने रुकवाया था तो बेचारे अब्दुल हसन साहब करते भी क्या ! सुनते हैं एक दिन उदास निशात बाग में एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे। उनको उदास देखकर उनके वफादार नौकर ने शालीमार बाग से निशात बाग आने वाली पानी की सप्लाई खोल दी। पानी की आवाज सुनकर अब्दुल हसन ने घबड़ाकर नौकर से पानी की सप्लाई बन करनें को कहा। उनको डर था कि उनका दामाद बादशाह अपनी हुकूमअदूली से खफा होकर न जाने क्या बवाल करे?
लेकिन जब इस घटना के बारे में बादशाह शाहजहाँ को पता चला तो उसने नौकर और अपने ससुर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। बल्कि निशातबाग की पानी की सप्लाई चालू करवा दी। हो सकता है उनकी बेगम मुमताज महल ने भी कहा हो शाहजहाँ से –‘आपने मेरे पापा के बगीचे की पानी की सप्लाई क्यों रोक दी? फौरन चालू करवाइए उसे?’ उसकी बात मानकर ही शाहजहाँ ने अपना हुकूम वापस ले लिए हो।
अधिकार भाव से संचालित, मन माफिक काम न होने पर, नुकसान पहुंचाने वाले इस भाव से मनुष्य तो क्या देवता भी अछूते नहीं है। व्रत न करने पर पारिवारिक अहित, संपत्ति हरण और फिर व्रत करने पर सब कुछ बहाल हो जाने के किस्से इसकी पुष्टि करते हैं।
बहरहाल जो हुआ हो लेकिन आज के दिन निशात बाग में पानी की सप्लाई चालू है और श्रीनगर का यह सबसे बड़ा बाग मात्र 24 रुपए के टिकट पर आम जनता के देखने के लिए उपलब्ध है।
निशात बाग के पीछे एक झरना बहता है जिसका नाम गोपितीर्थ है। बगीचे में पानी इसी झरने से आता है। बगीचे में फूलों की दुर्लभ प्रजातियाँ , चिनार और सरू के पेड़ हैं। यह बगीचा इस इलाके का सबसे बड़ा सीढ़ीदार उद्यान है।
बगीचे में लोगबाग अकेले, दोस्तों-परिवार वालों के साथ टहल रहे थे। घुसते ही लोग फोटो खिंचवाने में जुट जाते। अलग-अलग पोज में फोटोबाजी। मियाँ-बीबी टाइप लोग एक-दूसरे से सट-सटा कर फोटोबाजी कर रहे थे।
बगीचे में घुसते ही बगीचे के सीन के साथ फ़ोटो खिंचाते लोग देखकर ऐसा लगा जैसे किसी मॉल में पहुँचकर लोग घुसते ही डलिया में सामान भरने लगते हैं यह सोचकर कि घर चलकर इसको कायदे से देखेंगे।
हमलोग ग्रुप में 20 लोग थे। सब लोग टहलते हुए एक बड़े लॉन में पहुंचे। सबने एक साथ फ़ोटो खिंचवाई। इसके बाद महिला साथियों ने रेल टाइप बनाकर अलग से फोटो खिंचवाई।
सबकी फोटो खिंचवाने के लिए पास बैठे कुछ युवकों में से एक का सहयोग लिया गया। फ़ोटो खींचने के बाद उसने पूछा -'कहां से आये हैं?'
हमने बताया -'कश्मीर से।'
उसने कहा-'कश्मीर से तो नहीं लगते। बोली से लगता नहीं।'
मतलब बोली भी इंसान का परिचयपत्र होती है। निवास स्थान प्रमाण पत्र।
फ़ोटो के बाद बगीचे की सैर की गई। बगल में खड़ी कुछ महिलाएं सनस्क्रीम के बारे में गुफ़्तगू कर रहीं थीं। किसी ने कहा -'कितनी भी पोत लो। लेकिन जरा देर में पिघल जाती है।'
आगे पानी के झरने के पास खड़े होकर लोगों ने फोटो खिंचवाई। हमारे ग्रुप के कुछ लोगों ने पानी में पड़े पत्थरों पर पैर रखकर दूसरी तरफ जाने की कोशिश की। उनकी जीवनसँगनियो ने उनको टोंका-'फिसल जाओगे।' कुछ मान गए। एकाध लोग नहीं माने और आहिस्ते से पत्थरों पर पैर रखकर पार हो गए। विजयी भाव चेहरे पर। उनकी जीवनसँगनियाँ अब उनको मुस्कराते हुए देख रहीं थी।
आखिर तक जाकर हम लोग लौट लिए। आहिस्ते-आहिस्ते टहलते हुए । हम तो टहलने आये थे। स्थानीय लोग तसल्ली से बाग में चादर बिछाए बैठे थे। पारिवारिक पिकनिक मना रहे थे।
एक महिला अपने परिवार के साथ लेटी हुई डंडी लगी गोल वाली लेमनचूस मुंह मे घुमाते हुए चूसती हुई तसल्ली से आपस में बतिया रही थी। जिस अंदाज में वह लेमनचूस मुंह में घुमा रही थी उसे देखकर मन किया उससे बात करके उसका वीडियो बनाएं। लेकिन फिर हिम्मत नहीं हुई। देखकर ही काम चलाया। आप भी कल्पना करके काम चलाइये।
पानी के फव्वारों में कुछ बच्चे भीगते हुए टहल रहे थे। उनके घर के लोग उनको देखे हुए थे। एक बच्चे ने तो एक फब्बारे के पानी निकलने वाली जगह पर उंगली रखकर उस फब्बारे का पानी बंद कर दिया। ऐसा लगा बच्चे ने फब्बारे का टेंटुआ दबा दिया हो। फब्बारे का दम घुटने लगा। उसका पानी बच्चे की उँगली के अगल-बगल से निकलकर छटपटाने लगा। थोड़ी देर में बच्चे ने फब्बारे से उंगली हटा ली। फब्बारा फिर से पानी बाहर फेंकने लगा।
बगीचे में तरह-तरह के फूल लगे हुए थे। एक सूरजमुखी का फूल बड़ा सा खिला था। उसके साथ लोगों ने फोटो भी खिंचाई। गेंदे के गबरू जवान फूल देखकर हमने घर में बगीचे का काम करने वाले को फोन किया कि यहां तो खूब फूल खिले हैं। वहां तुम बताते हो -'अभी मौसम नहीं आया।' उसने कहा -'आप वहां से बीज लेते आइये। हम लगाएंगे।'
बगीचे की खूबसूरती देखकर सोच रहे थे पुराने जमाने में बादशाह लोग कितने मजे में रहते थे। हुकूमत दिल्ली में और बीबी को उपहार में देने के लिए कश्मीर में बगीचा बनवा दिया।
बगीचे की कहानी बताई तो साथ की कुछ महिला साथियों ने कहा-'वो लोग अपनी बीबियों का ख्याल रखते थे। उनको बगीचे गिफ्ट करते थे। यहां हमारे ये तो एक गुलदस्ता नहीं देते कभी।'
इस शिकायत के जबाब ने दिया गया तर्क इतना लचर और काबिल-ए-खारिज था कि उसको न लिखना ही बेहतर। आप खुद अंदाज लगा लें।
करीब घण्टे भर निशात बाग की सैर करने के बाद हम बाहर आ गए और बस की तरफ बढ़ लिए।
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