सुबह नींद खुली तो घड़ी देखी। 6 बज गए थे। कुछ देर करवटें बदलते हुए सोचते रहे कि क्या करें अब? हर करवट पर नया विचार। उठें, लेटे रहें, मोबाइल देखें, व्हाट्सएप खोलें, पोस्ट लिखें, पढ़ें, कमेंट का जबाब दें, गुडमार्निंग यज्ञ पूरा कर लें, चाय पियें और भी तमाम चिल्लर विचार।
चाय की बात याद आते ही लगा इस पर स्थिर हुआ जाए। चाय पी जाएं। गेस्ट हाउस में चाय के लिए बोलते हुए डर लगा की सही में ले न आये। बाहर निकलना स्थगित हो जाएगा। लिहाजा निकल लिए।
निकलते ही गेट पर स्कूल बस दिखी। एक पिता अपने बच्चों को बस में बिठाकर घर वापस आ चल दिया। पीछे से एक बच्ची आई। साथ मे उससे भी छोटा बच्चा होगा। शायद भाई। उसने बच्चे को बस में बिठाया। बाय किया। बस चल दी तो बगल में नुक्कड़ पर बैठे ऑटो में बैठकर चल दी। शायद वह और इसका भाई अलग स्कूल में पढ़ते होंगे।
चाय की दुकान पर कल वाले लड़के की जगह एक महिला थी। उसको चाय के लिए कहकर आसपास का मुआयना करते रहे। महिला ने हाथ की उंगलियां फिराकर कुल्हड़ की धूल झाड़ी और फिर हल्के से उसको काउंटर पर पटक कर कुल्हड़ ने चाय डाली। हम पीते हुए उससे बात करते रहे।
पता चला कि कल जो लड़का चाय की दुकान पर था वह महिला का बच्चा था। सुबह कुछ देर दुकान पर बैठकर दमदम फैक्ट्री चला जाता है। ठेके में मजदूरी करता है। दिन में मां बैठती है दुकान पर।
चाय पीते हुए टहलते हुए बेंच पर आकर बैठ गए। कल के मौनी बुजुर्ग भी वहीं बैठे थे। हमने इनसे बात करने की कोशिश की तो भन्नाकर उठे और चल दिये। हमको लगा हड़काएँगे भी। लेकिन वो गुस्से में ही दुकान के काउंटर पर जाकर खड़े हो गए। महिला ने उनको चाय और एक बिस्कुट दिया और वो वहीं पर फूल बेचती महिला के बगल में बैठकर चाय पीने लगे।
मॉनीबुज़ुर्ग के भन्नाकर उठने और चाय लेकर दूर जाकर बैठ जाने की बात सोचते हुए हमें भाव साम्य न होने के बावजूद दुष्यन्त कुमार का शेर याद आया:
लाहूलूहान नजारों का जिक्र आया तो
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए।
आजकल यह बात हर जगह लागू है शायद इसीलिए याद आ गयी।
बगल में दमदम केंद्रीय विदयालय है। कुछ बच्चे स्कूल के बाहर खड़े दिखे। गेट खुला होने के बावजूद बच्चे बाहर खड़े थे। हमने पास में खड़ी दो बच्चियों से बातचीत करनी शुरू की यह पूछते हुए कि तुम लोग यहीं पढ़ती हो?
उन्होंने कहा -'हाँ।' उनके हां कहते ही बातों का सिलसिला शुरू हो गया।
पता चला कि स्कूल का समय आठ बजे से है। साढ़े सात के पहले स्कूल का गेट खुला होने के बावजूद अंदर नहीं जा सकते।
उन बच्चियों में कद से छोटी दिखने वाली बच्ची 10 में और बड़ी दिखने वाली बच्ची 8 में पढ़ती है। दोनों का फेवरिट विषय समाजशास्त्र है। एक की हावी डांसिंग है, दूसरी की पेंटिंग। पेंटिंग जब मौका मिलता है बनाती है।
कक्षा आठ में पढ़ने वाली बच्ची थोड़ा थकी सी लगी तो मैंने पूछा -'क्या रात देर तक जगी ?'
उसने कहा -'हां, एक्जाम की तैयारी करनी है। उसी के चलते देर तक जगी। साढ़े बारह बज गए सोते सोते।'
बच्चियों ने बात करते हुए बताया कि उनकी ज्यादातर दोस्ती लड़कियों से है। फेवरिट सहेलियां भी लड़कियां ही हैं। लड़कों से दोस्ती न होने का कारण बताया कि ज्यादातर लड़के मतलबी होते हैं। काम के वक्त पूछते हैं और काम निकल जाने पर बात नहीं करते।
काम का मतलब स्कूल ने एसाइनमेंट और प्रोजेक्ट वर्क जैसे काम। एक ने बताया कि स्कूल में एक्टिविटी के समय लड़के मस्ती करते हैं। जब टीचर पूछते हैं तो ऐसा बताते है कि उन्होंने भी किया काम। कुछ लड़के अच्छे भी छोटे हैं । लेकिन ज्यादातर ऐसे ही। मतलबी। कुछ लड़कियां भी क्लास बंक करके मस्ती मारती हैं।
इस बीच दस में पढने वाली बच्ची की कुछ और सहेलियां आ गईं। वह उनसे बतियाने लगी। एक लडक़ी पीठ पर बड़ा बस्ता लादे थी। लड़की ने उसकी पीठ पर धौल मारा और उसके बस्ते पर भी। दोनों चहकते हुए बतरस में डूब गईं।
दूसरी बच्ची से बात करते हुए पता चला कि उसके मां-पिता नहीं हैं। दो साल की थी तब पिता नहीं रहे। पांच साल की उमर में मां भी विदा हुईं। नाना-नानी और अब मामा-मामी भी उसके अभिभावक हैं। उसकी बड़ी बहन और छोटा भाई भी साथ ही रहते हैं। बड़ी बहन भी आठ में पढ़ती हैं। इसका एडमिशन जल्दी हो गया। मामा बिजनेस करते हैं। मामा बच्ची के आदर्श हैं। वह भी बड़ी होकर बिजनेस करना चाहती है।
'मां-पिता की याद आती है, उनको मिस करती होगी?' पूछने पर बच्ची ने कहा -'हां, कभी, कभी जब अकेले होती हूँ तो सोचती हूँ। लेकिन फिर ठीक जाता है।'
बच्ची के नाम का मतलब है जिसे सब प्यार करें। हमने पूछा कि तुमको सही में सब प्यार करते हैं? उसने कहा -'हां, मुझे तो ऐसा ही लगता है।'
पक्की सहेलियों के बारे में पूछने पर उसने दो सहेलियों के नाम बताए उनमें से एक उसको पढ़ने में सहायता करती है। दूसरी परेशानी में सलाह देती है।
बच्ची से उसकी ताकत और कमजोरी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसकी जानने की इच्छा बहुत तगड़ी है। जब तक किसी चीज के बारे में पूरी जानकारी नहीं हो जाती तब तक लगी रहती है। कमजोरी के बारे में सोचते हुये बताया -'मुझको गुस्सा बहुत जल्दी आता है। हालांकि उतनी ही जल्दी शांत भी हो जाता है।'
इस पर हमने पूछा -'हम पर तो नहीं आ रहा गुस्सा।'
हंसते हुए उसने कहा-'नहीं, नहीं।'
हमने उन बच्चियों के फ़ोटो लेने के लिए पूछा। फोटो उनको दिखाए तो वे मुस्करायीं। हमको हाल में कश्मीर टूर में लड़कियों के लिए फोटो की याद आई। हमारी श्रीमती जी के साथ के फोटो उनको अच्छे लगे तो सबने अपने नम्बर और खाते बताकर फोटो उनको भेजने का अनुरोध किया था।
इस बीच एक बच्चा हांफता हुआ आया और बच्ची से बंगला में बतियाने लगा। बच्चा बहुत हड़बड़ी में था। जल्दी-जल्दी बतिया रहा था। उसके उसके बोलने पर होंठ के बीच सफेद बहुत छोटी फुंसी उचकती दिखती थी। बच्ची उससे आहिस्ते से बतिया रही थी। कुछ देर में गेट खुल गया और बच्चे स्कूल जाने लगे। बच्ची भी 'अंकल नमस्ते' कहते हुए चली गयी।
हमने एक चाय और ली। दुकान की महिला ने चाय उसी कुल्हड़ में उड़ेल दी। जब कुल्हड़ भर गया तो मुझे याद आया कि मेरी एक मित्र को चाय की केतली से कप में डाली जाती चाय की धार और केतली से उठती भाप के फोटो बहुत पसंद हैं। यह बात याद आते ही हमने उस महिला से कहा कि चाय फिर से कुल्हड़ में डाल दो। उसमें गिरती चाय की धार की फोटो लेनी है।
महिला ने देखा कि कुल्हड़ तो काफ़ी भरा हुआ है। फिर भी उसने पतली धार से थोड़ी चाय गिराई कुल्हड़ में जिसका फोटो हमने खींच लिया। मुझे लगता है कोई पुरुष दुकानदार होता तो इतनी सहजता से यह न करता।
वहीं चाय की दुकान पर ही खड़े एक आदमी ने केतली से सीधे पानी मुंह में डाला। हमने उसका भी फोटो लिया। केतली उसके मुंह पर छा गयी।
समय बीतते हुए स्कूल आते बच्चे बढ़ते गए। बस से उतरते बच्चे, ऑटो से आते बच्चे, स्कूटर से बच्चों की भेजने आते अभिभावक। एक पिता अपनी बच्ची का हाथ बहुत मजबूती से थामे हुए सड़क पार करता हुआ स्कूल की तरफ चला गया। मन किया उसका 'फोटो उठा 'पाते।
एक और मम्मी अपनी बिटिया का हाथ पकड़े उसे घसीटते हुए स्कूल की तरफ आती दिखीं। एक स्कूटर से भाई बहन उतरे। बहन बड़ी थी। उसने छोटे भाई के कंधे पर दोनों हाथ रखकर उसको स्कूल की तरह ठेला। शायद मन में कह रही हो -'चल मेरी घोड़ी टिकटिक।'
चाय पीकर पैसे दिए। बाइस रुपये हुए थे। पैसे देते हुए हमने कहा हमारे पास तो बीस ही हैं। महिला ने दस का नोट लौटाया तो हमें लगा नाराजगी में या खुशी में लौटाया। लेकिन उसने कहा -'आपने तीस रुपये दिए थे।' दस के तीन नोट चले गए होंगे साथ-साथ। दो को जाते देखकर तीसरा बोला होगा, तुम लोगों के बिना कैसे रहेंगे अकेले। बड़े नोटों के बीच डर लगता है, दम घुटता है।
महिला जब दस रूपये लौटाए तो हमने कहा -'पूरे ले लो। ' उसने दो रुपये लेकर आठ लौटा दिये। सिक्के। कोलकता में अभी भी सिक्को का चलन बना हुआ है।
सड़क पार करते हुए ट्राफिक सिपाही ने हाथ देकर रोक दिया। कुछ देर बाद रास्ता खुल गया। उसके बगल में खड़े होकर देखा कंधे पर TFG का बिल्ला लगा था। TFG का मतलब पूछा तो बताया उसने ट्राफिक होमगार्ड।
सड़क पार करने के बाद पलटकर फिर देखा स्कूल की तरफ। ढेर के ढेर बच्चे स्कूल की तरफ बड़े जा रहे थे। बच्चों को देखकर लगा कि किसी भी समाज के भविष्य के लिए स्कूल जाते बच्चे सबसे सुनहरी आशा होते हैं।
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