शाहजहांपुर से वापस लौटने के पहले पंकज से मिलने गए। एक दिन पहले बातचीत के दौरान रागिनी Ragini ने बताया कि पंकज हमको याद करता है। उसी समय सोचा था कि जाने से पहले मिलेंगे पंकज से।
पंकज से मुलाकात कोरोना काल के दौरान हुई थी। गाने के शौकीन पंकज का अपना बैंड था -'शंकर बैंड।' उधार लेकर बैंड बनाया था। कोरोना काल में शादी-ब्याह में बैंड-बाजे बजे नहीं। काम बंद हो गया। कर्जा चुकाने के लिए बैंड के सब आइटम बेचने पड़े। रोजी-रोटी के लिए चाय की दुकान पर आ गए। गाने का शौक बरकरार रहा। जब भी जाते थे चाय पीने, पंकज का गाना जरूर सुनते थे।
कोरोना काल में तमाम लोगों के रोजगार तबाह हुए। होटल वाले, टूरिस्ट, ट्रांसपोर्ट और तमाम काम ठप्प हो गए। लोगों को लोन की किस्तें चुकाने के लिए गाड़ियां बेंचनी पड़ी। तमाम लोगों को लिए कोरोना एक भयावह याद की तरह है। लोग अभी भी उसके सदमे से उबर नहीं पाए हैं।
पंकज से सुबह मिलने के लिए गए। शाहिद रजा Shahid Raza जी को भी साथ ले लिया कहते हुए चलो बाहर चाय पीते हैं। गए जब तो पंकज का चाय का ठेला कहीं दिखा नहीं। हमे लगा शायद उसकी दुकान बंद हो गयी। लौट आये बिना चाय लिए।
शाहजहांपुर से चलते हुए हालांकि देर हो गयी थी लेकिन सोचा कि एक बार देखते हुए जाएं शायद पंकज की दुकान खुल गयी हो।
गए तो देखा दुकान खुली थी। पंकज के पापा थे दुकान पर। अब दुकान ठेले पर नहीं पक्की जगह थी। यह दुकान पहले किराए पर दी थी। किरायेदार का उधार था। वह चुकाकर उससे दुकान खाली करवाई और दुकान शुरू की। दुकान में बैठने की जगह भी थी। कुछ लोग अंदर बैठे चाय पी रहे थे। पीछे दुकान का नाम भी लिखा था -Yes tea.
पंकज ने बताया कि उनकी दुकान अब अच्छी चल रही है। बड़े भगौने में रखे दूध की तरफ इशारा करते हुए बताया -'सब दूध खत्म हो जाता है। शाम को फिर आता है। देर रात , ग्यारह-बारह बजे तक चलती है दुकान।
देर रात दुकान चलने के कारण ही सुबह देर से खुलती है दुकान।
पंकज ने बताया कि अब मम्मी की तबियत ठीक रहती है। बैंड वाले दोस्त जिससे थोड़ा मन-मुटाव था उससे भी फिर से दोस्ती हो गयी है। शादी के लिए मम्मी लड़की देख रही हैं। लड़की कैसी चाहिए पूछनी पर बताया -'जो घर में सबके साथ एडजस्ट करके चल सके।'
दांत कुछ साफ दिखे बालक के। पूछने पर बताया -'अब मसाला खाना बंद कर दिया। ' मुंह खोलकर दिखाया भी। मुंह में अधचुसा कम्पट जीभ की पिच पर पड़ा दिख रहा था।
मसाला खाना बंद कैसे किया ?पूछने पर बताया -'लगता था कि खराब आदत है। आप भी समझाते थे। फिर एक दिन सोचा नहीं खाना है। छोड़ दिया। अब तो महीनों हो गए खाये हुए।'
चलने के पहले गाना सुनाने को कहा। पंकज ने एक क्षण ठहरकर गाना सुनाया -'मेरा दिल ये पुकारे आ जा।' गाना सुनकर लगा कि गाना -गुनगुनाना कम हो गया है पंकज का। रोजी-रोटी की जंग में इंसान अपनी सबसे मनचाही आदत भी भुला देता है। हमने कहा -'गाते रहा करो।'
चलते समय सामने कहीं से आवाज आती सुनाई दी। लगा कोई बुला रहा है। इधर-उधर कोई दिखा नहीं। फिर देखा सड़क पार अपने घर के टेरेस से शुक्ला जी आवाज देकर इशारे कर रहे थे। बुला रहे थे।
शुक्ला जी फैक्ट्री से रिटायर हैं। बोलने-सुनने के मामले में दिव्यांग। लोग बताते हैं कि शाही तबियत के शुक्ला जी खुद सिगरेट नहीं पीते थे लेकिन दोस्तों को बुलाकर सिगरेट पिलाते थे। अनोखी आदत। पंकज की दुकान पर ही उनसे मुलाकात हुई थी। फिर अकसर होती रही। हमको देखकर सलाम किया। हमने भी नमस्कार किया। थोड़ी देर इशारे-इशारे में बात हुई। सब ठीक-ठाक का आदान-प्रदान हुआ और हम चल दिये कानपुर की तरफ।
https://www.facebook.com/share/p/1XKBPvBw2ZTwgfrP/
No comments:
Post a Comment