Tuesday, October 03, 2023

श्रीनगर से सोनमर्ग



कश्मीर यात्रा के पहले दिन निशात बाग़ और डल झील देखे, घूमे। रात के खाने के दौरान सबसे परिचय, मुलाक़ात हुई| इसके बाद सब सोने चले गए।
अगले दिन सुबह सोनमर्ग जाना था। पिछली कश्मीर यात्रा में सोनमर्ग रह गया था। श्रीनगर से सोनमर्ग करीब 80 किलोमीटर दूर है| दो से ढाई घंटे की दूर। बस से जाना था। ड्राइवर और सहायक मिलाकर कुल 23 लोग।
सोनमर्ग मतलब सोने का घास का मैदान। तमाम जगहें हैं यहाँ देखने को। सबको देखने -घूमने में के लिए तो न जाने कितने दिन लगें लेकिन हम लोग सिर्फ़ एक दिन के लिए आए थे इसे देखने। एक तरह से पाला छूने। ज़्यादातर पर्यटन पाला छूने वाले ही होते हैं। कुछ घंटे के लिए देखी जगहों की यादों को जीवन भर सहेजते हैं। अपने -अपने यादों के हिस्से फ़्रीज करके देखते रहते हैं।
बस सबेरे ही होटल के बाहर लग गयी। सवा आठ बजे बस का फोटो और ड्राइवर का फोन नम्बर व्हाट्अप ग्रुप में आ गया। ड्राइवर का नाम आदिल। खूबसूरत, सुदर्शन जवान, तरासी हुई दाढी। बाद में पता चला कि ड्राइविंग के पहले अपना आर्केस्टा था। सेहत के कारण उसको बंद करके ड्राइविंग शुरू की।
बस भले सवा आठ बजे लग गयी लेकिन निकलते-निकलते दस बज गए। सब लोग चलो,चलो कहते हुए आराम-आराम से बैठे बस में तो पता चला ट्रिप लीडर नदारद।मालूम हुआ कि ट्रिप के एक सदस्य के लिए खाना लेने गए हैं होटल। अनन्य के आने के बाद बस चली सोनमर्ग के लिए।
बस स्टार्ट होते ही टूर भी स्टार्ट हो गया। साथ आये लोगों का आपस में छुटपुट परिचय तो हो गया था लेकिन तसल्ली से , तफसील वाली जानपहचान होनी बाकी थी। अनन्य ने सभी से अपने बारे में बताने को कहा।लोगों ने विस्तार से अपना परिचय दिया। कुछ लोग पहली बार ऐसी किसी यात्रा में निकले थे। उनको उनके बच्चों से जबरियन ठेल कर भेज था। ये बच्चे फिरगुन ट्रेवल्स के टूर का अनुभव ले चुके थे। उनको भरोसा था कि उनके घर वाले आराम से रहेंगे।
परिचय के बाद गानों की अंत्याक्षरी हुई। दो ग्रुप बन गये। गानों पर गाने गूंजते रहे बहुत देर जब तक कि गाने की जगह डांस ने नहीं ले ली। डांस का सिलसिला शुरू हुआ तो चलता ही रहा देर तक। डांस करते लोगों ने दूसरे लोगों को जबरियन उठाकर ठुमके लगवाए। तेजी से लहराती, चलती बस ने भी लोगों को उन लोगों डांस करने में सहयोग किया जिनका हाथ डांस में तंग था। उनके खड़े होते ही बस उनको हिला- डुला देती जिससे उनकी मुद्रा अपने आप डांस मुद्रा में बदल जाती।
दो ढाई घण्टे बाद बस एक जगह रुकी। ढाबे के पास। बस रुकते ही लोग लपकते हुए नीचे उतरे। ढाबे के बगल में ही नदी बह रही थी। लोगों ने बताया सिंधु नदी है। नदी इठलाती हुई अपने में मस्त बह रही थी। उसको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि इतनी दूर से लोग उसके किनारे पर खड़े हुए उसको देखते हुए फोटो खिंचाने , वीडियो बनाने में तल्लीन हैं।
नदी बेपरवाह अंदाज में बह रही थी। उसको इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि लोग उसको देखते हुए, घूरते हुए और उसको तरह-तरह से अपने साथ लेते हुए फोटोबाजी कर रहे थे। सैकड़ों सालों से ऐसे न जाने कितने लोग उसको देखते आ रहे हैं। ऐसे सबको देखे तो बह चुकी नदी।
नदियों के उद्गम छोटे-छोटे सोते जलस्रोत होते हैं। उद्गम से निकलते हुए अनगिनत जलस्रोत नदी के जल में इजाफा करते हैं। इन जलस्रोतों से पानी ग्रहण करती हुई नदी आगे बढ़ती है। सबके सहयोग से नदी समृद्ध होती है। नदी का सौंदर्य सामूहिकता का सौंदर्य होता है।
सोनमर्ग पहुंच कर बस रुकी। आगे की यात्रा स्थानीय गाड़ियों से की जानी थी। गाड़ियों में बैठकर हम लोग आगे बढ़े। करीब घण्टे भर की मोटरबाजी के बाद हम उस जगह पर पहुँचे जिसको देखने तमाम लोग सोनमर्ग आते हैं। इस जगह का नाम ज़ीरो प्वाइंट है।

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