Tuesday, February 27, 2024

पुस्तक मेले में मुलाकात, बातचीत और बुराई भलाई

 


पुस्तक मेले में अरविन्द तिवारी जी Arvind Tiwari से भी मिलना हुआ । मिलने की बात तो तय ही थी लेकिन मिलना काफी देर बाद हुआ। हम दोनों मेले में टहलते रहे। फोन पर संपर्क भी हुआ लेकिन मुलाक़ात तसल्ली से हुई।
हाल 2 के लेखक मंच पर किसी लेखक की किताब का विमोचन हो रहा था। वहीं हम लोग आराम मुद्रा में कुछ देर बैठे रहे। हमारे पास काफी किताबें देखकर अरविन्द जी ने हमारे पुस्तक प्रेम की तारीफ़ भी की। हम उनको उस समय कैसे बताते कि किताबें खरीद तो लेते हैं लेकिन पढना उतना कहाँ हो पाता है! अनगिनत किताबें पढे जाने के इंतजार में हैं!
आजकल पढ़ने की क्षमता काफी प्रभावित हुई है। बचपन में कभी किराए पर मिलने वाली किताबों की गुमटी पर खड़े-खड़े किताबें पढ़ डालते थे। एक-एक दिन में छुटके 'पल्प साहित्य' कहे जाने वाले उपन्यास निपटा देते थे। जबकि आज हाल यह है कि साल में पन्द्रह-बीस किताबें पढ़ना भी मुश्किल हो गया है।
अलबत्ता किताब अगर पसंद आ गयी तो खरीदने की कोशिश जरुर करते हैं। अक्सर इस कोशिश में कामयाब भी हो जाते हैं। इस कामयाबी का प्रतिशत तब और बढ़जाता है जब लेखक मित्र हो। तमाम काम साथ जुड़े लोगों की खुशी के लिए भी करने पड़ते हैं।
अरविंद जी से मुलाक़ात के पहले एक स्टाल पर प्रेम जनमेजय जी किसी किताब के विमोचन के मौके पर बातचीत करते दिखे। हमने दूर से देखा उस स्टाल पर भीड़ थी पाठकों की, पुस्तक प्रेमियों की और कुछ विमोचन दर्शियों की भी। हमने सोचा पास जाकर सुने कुछ लेकिन फिर किसी और दूकान में घुस गए। जब तक बाहर आये तब तक शायद विमोचन निपट चुका था।
पुस्तक मेले में विमोचन , खासकर स्टाल के भीतर होने वाले विमोचन, के दौरान होने वाली बातचीत में इस बात की पूरी गारंटी होती है कि क्या कहा सुना जा रहा है इसे अगल-बगल के लोगों के अलावा और कोई सुन न सके। फोटो अलबत्ता खूबसूरत आते हैं। आवाजें कम सुनाई देती हैं। वैसे भी आज आवाजें दब जाने का समय चल रहा है। बहुत शोर है। कोई कविता संग्रह निकालना होता तो उसका शीर्षक सूझ गया -'सन्नाटे का शोर' या फिर 'शोर में सन्नाटा।'
अरविंद तिवारी जी के साथ फिर काफी देर न्यू वर्ल्ड पब्लिस्केशन के स्टाल पर काफी देर बैठकी, बतकही हुई। आलोक निगम Alok Nigam भी आ गए अपना काम निपटा कर। ज्योति त्रिपाठी रुचि , Arifa Avis के साथ Anoop Mani Tripathi भी भी थे। सबकी उपस्थिति में कई किताबों का विमोचन भी कर डाला गया। विमोचित किताबों में अरविंद तिवारी जी और अनूप शुक्ल के चयनित व्यंग्य के साथ इन्द्रजीत कौर Indrajeet Kaur के चयनित व्यंग्य भी थे।
अरविंद जी ने साहित्यकारों से जुड़े कई किस्से भी सुनाये। इस बात की एक बार फिर से तारीफ़ की हम और आलोक पुराणिक जी उनके निमंत्रण पर आगरा आये थे और आने का किराया तक नहीं लिया था। आलोक पुराणिक जी Alok Puranik की इस बात के लिए और भी तारीफ़ की कि वे अपना टिफिन तक साथ लाये थे।
अब अरविन्द जी से हम कैसे कहते कि आलोक जी का टिफिन साथ में लाना आगरा वालों और व्यंग्यजगत से जुड़े लोगों के प्रति उनके भरोसे का इश्तहार था। आलोक जी को अपने मायके (आगरा) वालों पर पक्का एतबार था कि वे खिलाएंगे नहीं और खिलाएंगे भी तो पता नहीं क्या खिला दें इसलिए बेहतर है घर से खाना लेकर चलें।
न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से Dinesh Choudhary जी की किताबें 'परसाई के रंग में' और 'दीवार पर टंगी आवाजें' खरीदी। आरिफा के कहने पर किताबों के साथ फोटो भी खिचाई।
आरिफा ने चाय भी पिलाई अपने स्टाल पर। एक बार अपनी तरफ से और एक बार हमारे कहने पर। आशा है वे हमारे कहने पर पिलाई हमारे रायल्टी के खाते में नहीं चढ़ाएंगी ।
चाय की बात से याद आया कि मेले में स्टाल के अन्दर चाय बेचना शायद मना है। उसका तोड़ निकालने के लिए चाय वाले एक झोलानुमा चाय बेचने का इंतजाम लिए टहल रहे थे। झोले में चाय का बर्तन जिसकी टोंटी बाहर निकली थी। दूर से एकदम झोला टाइप दीखता चाय के बर्तन का फोटो आलोक ने लिया था।
चाय का जुगाडू बर्तन देखकर अंगरेजी के जुमले तुम मुझे चेहरा दिखाओ हम तुमको नियम दिखाएंगे (You show me the face , I will show you the rule) का उन्नत संस्करण सूझा -तुम मुझे कानून दिखाओ, हम तुमको उसका तोड़ बताएँगे (You show me the rule, I will tell you the way to break it) ।
काफी देर बैठकी, बतकही के बाद हम लोग विदा हुए। विदा होने के पहले डा सौरभ जैन और आलोक निगम के साथ चाय पी गयी। 50 रुपये की एक चाय। सौरभ ने अपने मीम बनाने से जुड़े कई किस्से सुनाये। थोड़ी बुराई-भलाई भी हुई। सौरभ को ट्रेन पकड़नी थी इसलिए ज्यादा समय नहीं मिल पाया बुराई-भलाई का।
समय की कमी जीवन के जरूरी आनंद से कितना वंचित करती जा रही है।
आलोक और सौरभ को विदा करके अपन मेट्रो स्टेशन की तरफ गम्यमान हुए।

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