खुदाबख्श लाइब्रेरी के सामने ओवरब्रिज बनता देखकर हमने वहां के एक कर्मचारी से पूछा -'इसके बनने से तो लाइब्रेरी की राह मुश्किल हो जाएगी।' जवाब में उसने कहा -'ओवरब्रिज बन जाने से आना-जाना आसान हो जायेगा। अभी सड़क बहुत संकरी है।'
लाइब्रेरी से बाहर निकलकर हमने दीपक को फोन किया। उनसे तय हुआ था कि दो बजे करीब हम वापस जाएंगे। अगर वो खाली होंगे तो उनके साथ ही लौटेंगे।
दीपक ने जबाब दिया कि वो पास ही हैं। थोड़ी देर में पहुंचेंगे लाइब्रेरी के पास। हमने बताया -'सामने की पट्टी पर कोने में मौजूद चाय की दुकान पर मिलेंगे।'
सामने की पट्टी पर किताबों की एक दुकान थी। उसमें ज्यादातर प्रतियोगिता दर्पण घराने की किताबें रखीं थीं। बगल में एक संकरी सुरंग नुमा जगह के बाहर पटना हाईकोर्ट के वकील का नामपट्ट लगा देखकर हमको लगा कि कभी ये यहां रहते होंगे। नामपट्ट अभी तक लगा रह गया होगा। लेकिन पूछने पर पता चला कि वकील साहब अभी भी वहीं रहते हैं।सोचा कि हाईकोर्ट का वकील ऐसी साधारण जगह रहता है। लेकिन फिर यह भी सोचा कि क्या पता अंदर कैसा घर हो। किसी को बाहर से जज नहीं करना चाहिए।
दीपक का इंतजार करते हुए नुक्कड़ की दुकान पर चाय पी। इस बीच पानी बरसने लगा। दीपक को फोन किया तो पता चला कि अभी दस मिनट की दूरी पर हैं। हमने सोचा कि मोटरसाइकिल से चलते हुए पानी में भीगने की बजाय ऑटो से चला जाये। लेकिन फिर यह सोचकर कि दीपक को बोल दिया है। वह आ रहा है। उसको बिना बताए ऑटो से निकलजाना वादाखिलाफी होगा। उसको लगेगा कि यूपी के लोग भी पलटू राम हो गए।
थोड़ी देर में दीपक आ गए। हम पीछे बैठ गए। चल दिये हवाईअड्डे की तरफ। भीड़ काफी थी सड़क पर। पानी तेज हो गया था। कुछ दूर चलने के बाद काफी भीग गए। एक बस स्टैंड के पास गाड़ी खड़ी करके हम दोनों स्टैंड की छत के नई नीचे खड़े हो गए।
पानी लगातार तेज होता गया। हमने दीपक से कहा -'हमारे लिए ऑटो बुलाओ। ऑटो से निकल जाएंगे।' उसने इधर-उधर देखा। मिला नहीं ऑटो। हम बारिश के रुकने का इंतजार करते रहे।
पानी बरसते हुए देख दीपक ने कहा-'आपके लिए छतरी ले लेते हैं।' हमने मना कर दिया यह सोचते हुए कि कोई बतासा थोड़ी हैं जो गल जाएंगे।
थोड़ी देर में पानी रुक गया। हम फिर मोटरसाइकिल पर बैठकर चल दिये।
रास्ते में दीपक ने अपने घर के हाल बताए। घर में पत्नी, दो बच्चे और बुजुर्ग पिता के अलावा छोटे भाई के बच्चे हैं ज़ो दो साल पहले कैंसर से ‘डेथ’ कर गया।सबको देखना पड़ता है। ग्रेजुएशन के बावजूद कोई नौकरी नहीं मिली तो मोटरसाइकिल से सवारी ढोते हुए काम चलाते हैं।
हमने सुझाव दिया कि तुम लोग हवाई अड्डे के बाहर मोटरसाइकिल खड़ी करते हो। कई लोग हो। देखभाल के लिए कोई लड़का क्यों नहीं रख लेते? इस पर वे बोले -‘ अरे इतना सहयोग रहता यहाँ तो बिहार इतना पीछे काहे रहता?’
हमने पूछा कि ऐसे मोटरसाइकल में सवारी ढोना तो व्यापारिक गतिविधि है। कोई पकड़ता/टोकता नहीं है?
क्या करें। कोई रोजगार नहीं तो कुछ न कुछ तो करना पड़ता है। पेटपालने के लिए चोरी करने से तो यही अच्छा है।
आते-जाते बातें करते हुए लगा कि दीपक की राजनीतिक समझ बहुत परिपक्व है। उन्होंनेकहा-'हमको लगता है कि बिहार के नेताओं को विकास करने की समझ नहीं है। सब खाली जीतने और कमाई के जुगाड़ की सोच रखते हैं।'
एयरपोर्ट पहुंचकर चाय पी। पैसे जबरियन दीपक ने दिए। दीपक को आने-जाने के पैसे देकर एयरपोर्ट की तरफ चल दिये। इस बीच बातचीत से दोस्ती टाइप हो गयी। दीपक ने कहा -'आप खाना नहीं खाये हैं। आपके लिए इडली ले आते हैं। पास ही बहुत अच्छी इडली मिलती है। दस मिनट लगेंगे।’
हमने मना किया। कहा -'एयरपोर्ट पर कुछ खा लेंगे।' इस पर दीपक बोले -'अरे एयरपोर्ट पर बहुत मंहगा मिलेगा। आप रुकिए आपके लिए चिप्स लेकर आते हैं।’हमने उसके लिए भी मना किया और चल दिए।
चलने के पहले हमने दीपक के साथ सेल्फी ली। बाद में दीपक को भेजी भी।
दीपक ने कहा -'अगली बार जब आइयेगा तो घर चलिएगा। आपको पटना घुमाएंगे।'
हम हां कह कर दीपक से विदा लेकर चले आये। हमको अपने बेटे Anany के घुमक्कड़ी के गीत 'निकल बेवजह' (लिंक कमेंट बॉक्स में) की पंक्तियां याद आईं -'निकल बेवजह। जा किसी अनजान शहर में एक नया दोस्त बना।'
दीपक से मुलाकात के बहाने अपनी पहली पटना यात्रा के दरम्यान हमने एक नया दोस्त बनाया।
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