Sunday, May 19, 2024

हमारे पास किताबें हैं



पिछले दिनों कई किताबें खरीदीं। पुरानी जो खरीद लिस्ट में थीं वो और नई जिनके बारे में पता चला। एक के बाद एक किताबें आई। उनको खोला गया। उल्टा-पलटा गया। कुछ को पढा भी गया। आधा-अधूरा। फिर रख दिया गया तसल्ली से पढ़ने के लिए।
तसल्ली से पढ़े जाने के इंतजार में तमाम तमाम किताबें अधपढी , अनपढी हैं। इनमें से कई क्लासिक की श्रेणी में आती हैं। उनको पढ़ने के मौके का इंतजार करते हुए न जाने कितने दिन , महीने और साल भी बीत गए। लेकिन लगता है कि पढ़ ही लेंगे। तसल्ली से।
पिछले दिनों जबलपुर गए तो वहां से भी तमाम किताबें ले आये। परसाई पर केंद्रित कांतिकुमार जैन जी के संस्मरण 'तुम्हारा परसाई' पहले पढ़ चुके थे लेकिन वहां दिखी तो खरीद ली। इसके अलावा परसाई जी की जीवनी 'काल के कपाल पर हस्ताक्षर' , ज्ञानरंजन जी की कई किताबें, उनको लिखे पत्रों के संकलन जिनका सम्पादन प्रियंवद जी ने किया है, स्वदेश दीपक जी की किताब 'जिन मांडू नहीं देखा' और दीगर किताबों के अलावा और कई किताबें खरीदीं।
किताबें खरीदते समय भी एहसास होता है कि पता नहीं इनको कब पढ़ पाएंगे, पहले की भी किताबें पढ़नी हैं। लेकिन जब किताब सामने दिखती है तो लगता है खरीद ही लो। पता नहीं बाद में मिले न मिले।
किताब पढ़ने वाले सभी लोगों के साथ लगभग ऐसा ही होता होगा। अपने पास कभी किताबें नहीं मिलती थीं, अब किताबें ही किताबें हैं लेकिन उनको पढ़ना नहीं हो पाता।
दो दिन पहले भी कुछ किताबें खरीदीं। किसी पोस्ट में चे गवारा की ' मोटर साईकिल डायरी' फ़िल्म का जिक्र पढा। फ़िल्म खोजी तो मिली नहीं। फिर सोचा किताब भी तो है। किताब ही ली जाए। आर्डर करने बैठे तो एक के बाद एक कई किताबें आर्डर कर दीं।
इस बार जो किताबें आर्डर की उनमें सबसे पहले आई गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की कहानियों की किताब ‘नदी झूठ नहीं बोलती ‘ बच्चों के लिए लिखी छोटी-छोटी कहानियां। पहले भी गिरिजा जी ने अपनी दो किताबें भेजी थीं। घर बदलने के क्रम में वे किताबों के बक्से में ही रह गईं अब तक। अब नए घर में खुलेगा बक्सा तब पढ़ी जाएंगी किताबें।
कल आई Pramod Singh जी की किताब 'बेहयाई के बहत्तर दिन।' प्रमोद जी किताब में चीन के किस्से हैं। देखना है ब्लाग में लिखे किस्सों से किताब के किस्से कितना अलग हैं। प्रमोद जी आसानी से समझ में आने वाली बात को अच्छी लिखाई मानने से परहेज टाइप करते हैं। उसकी झलक उनके लिखाई में भी दिखती है।
पिछले दिनों प्रमोद जी हमारे घर आये। किताबों की जामा तलाशी ली। मुझे लगा पूछेंगे की हमारी किताब दिखाओ। उन्होंने पूछा नहीं। पुण्य मिलेगा उनको।
'बेहयाई के बहत्तर दिन ' के साथ आई चे गवारा की किताब' मोटर साइकिल डायरी'। इसकी भूमिका चे गवारा की बिटिया ने लिखी है। हमारी हम उम्र है। किताब में नक्शा बना है चे ग्वारा के मोटरसाइकिल टूर का। मन किया लेटिन अमेरिका जाएं और किसी की मोटरसाइकल मय ड्राइवर किराए पर लें और वह रास्ता तय करें जिस रास्ते चे ग्वारा गए थे। लेकिन मन करना और होता है, सही में करना और।
आज अनिल यादव की किताब 'कीड़ा जड़ी' आई। संग में चे ग्वारा की 'मोटरसाइकिल डायरी' भी। लगता है गलती से दोबारा आर्डर हो गयी। लेकिन अच्छा ही लगा। भेंट में देने के लिए रहेगी पास में। 'कीड़ाजड़ी' भी शायद मेरे पहले से है। एक भेंट भी कर चुके हैं किताब प्रेमी की । मेरे पास जो है वो किताबों के बीच कहीं छिपी होगी। दूसरी भी रहेगी। काम आएगी।
आज दूसरी खेप में आई शिवमूर्ति जी की किताब 'अगम बहै दरियाव'। किताब का परिचय लिखा है -'आपातकाल से लेकर उदारीकरण के बाद तक करीब चार दशकों में फैली ऐसी दस्तावेजी और करुण महागाथा जिसमें किसान जीवन अपनी सम्पूर्णता में सामने आता है। किताब की कई लोगों ने तारीफ की थी। कुछ दिन पहले Vineet Kumar ने अपनी पोस्ट में जिक्र किया था। याद आया तो फिर मन किया ले ही ली जाए।
आज जब पढ़ना शुरू किया तो लगा कि पढ़ते रहें तो हफ्ते भर में पढ़ लेंगे। देखते हैं।
पिछले दिनों असगर वजाहत की किताब 'उम्र भर सफर में रहा' पढ़ी। इसके अलावा नीरजा चौधरी जी की किताब 'how prime ministers decide' का पहला अध्याय पढ़ा था। इसमें इंदिरा गांधी जी द्वारा आपातकाल लगाने से लेकर हटाने तक के किस्से विस्तार से बताए गए है। दूसरे प्रधानमंत्रियों के किस्से पढ़ने हैं अभी।
नीरजा जी की किताब का जिक्र अखबार में या कहीं और पढ़ा था। इसके बाद पुण्य प्रसून बाजपेयी जी की लाइब्रेरी में रखी दिखी। उसई समय सोचा था कि यह किताब लेनी है। संयोग से रिटायरमेंट के समय दफ्तर के साथियों ने भेंट देने के लिए किताबों की पसंद पूछी तो हमने यह किताब और दूसरी मार्खेज की Love in the time of Cholera' बताई थी। साथियों ने खोजकर किताब हमको विदाई समारोह में भेंट की।
Love in the time of Cholera पहले भी कहीं से डाउनलोड की थी लेकिन पढ़ नहीं पाए थे। गए दिनों Prabhat Ranjan जी ने संगत में Anjum Sharma जी से बातचीत में जिक्र किया कि 'कसप' लिखने के पहले मनोहरश्याम जोशी जी ने यह उपन्यास पढ़ा था। इसका किस्सा सुनकर हमारे मन में यह किताब पढ़ने की इच्छा हुई। किताब तो मिल हुई। देखते हैं कब तक पढ़ पाते हैं।
रिटायरमेंट के मौके पर तमाम उपहारों के साथ किताबें खूब मिलीं। Nirupma दीदी ने ने बहुत पहले ही रघुवीर सहाय रचनावली देने की लिए कहा था। वह मिली। इसके अलावा और भी कई मित्रों ने कई किताबें भेंट कीं। इन किताबों में रामचरित मानस, गीता की की भी कई प्रतियां हैं।
एक मित्र ने जावेद अख्तर की जीवनी Jadunama भेंट की। बहुत बढ़िया आर्ट पेपर में छपी किताब। हमने किताब का हर कोना छान मारा उसमें कहीं भेंट देने वाले का नाम नहीं लिखा। पता चलता तो स्पेशल धन्यवाद देते।
हमारे घर में हमको सबसे कीमती चीजें किताबें लगती हैं। पढ़ भले न पाए लेकिन लगता है कि हैं तो पास में। कभी न कभी पढ़ ही लेंगे। दीवार पिक्चर में शशि कपूर जिस तरह अमिताभ बच्चन से कहते हैं -'हमारे पास मां है।' हमसे कोई अगर कहे -'हमारे फलाना है, ढिमाका है, तुम्हारे पास क्या है?'
इस सवाल के जवाब में हम यही कहेंगे -'हमारे पास किताबें हैं।'
किताबों के बारे में इतनी बातें करने का कारण यह रहा कि आज Jagadishwar Chaturvedi जी की पोस्ट पढ़कर जानकारी हुई कि आज राष्ट्रीय पठन दिवस है। खोजने पर पता चला कि भारत में हर साल 19 जून के दिन राष्ट्रीय पठन दिवस मनाया जाता है. पुस्तकालय आंदोलन के जनक कहे जाने वाले पुथुवायिल नारायण पणिकर के सम्मान में हर साल 19 जून के दिन राष्ट्रीय पठन दिवस मनाया जाता है।
आज जबकि किताबें पढ़ने का चलन कम होता जा रहा है तब कोशिश करें कि किताबें पढ़ते रहें और उनकी चर्चा करते रहें। इससे पढ़ने का चलन कुछ तो बनेगा।

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